Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ का सर्वाशाप्रसरत्प्रजापरिगतं सन्नंदनं नंदन // तत्स्वांतांतरवर्तिदुःखतमसो विध्वंसनायोत्सुकं / रात्रावप्युदितं दिनेशमिव सा दृष्ट्वा प्रहृष्टाजनि // 15 // आगत्य वनदेवी निः। सूतिकर्म चरित्रं विनिर्ममे // देवाः कर्मकरा नूनं / नवेयुः पुण्यकारिणां // 16 // अंतरंगे बहिःस्थे च / नष्टे 30 // तमसि किं मया ॥ईतीव नंदनालोक-मुदोऽस्या अगमत्तमी // 17 // तया सूतं सुतं दृष्ट्वा / प्रजाद्योतितदिक्तटं // स्पर्धयेव हरित्पूर्वा / सुषुवे तीदणदीधिति // 27 // प्रातः सरोवरं गत्वा ।प्रदाय वसनानि सा // यावझावति देहं स्वं / धावतिस्म तदामहान् // 15 // एको जखगजेंसो प्राक् / निर्गत्योच्चमशुमया // तां पद्मिनीमिवोत्पाट्यो-बालयामास लीलया // // 20 // प्रियं दृष्टुमियोध्वं सा / बजती गगनांगणे // दृष्टा विद्याभृतैकेन / समागत्यांतरा धृता // 1 // समानीय विमानांतः / स्थापिता- साप्यचिंतयत् / / विग्विधे त्वां यहिधेयं / मुखमेवोत्तरोत्तरं // 22 // मृते पत्यौ सुतं दृष्ट्वा / हृष्टाजूवं किमप्यहं // देवैतदपि सोढे न / | त्वया निःकारणारिणा // 23 // दीनानना विचिंत्येति / विद्याधरमुवाच सा॥ बलाढालगजो-!! क्षिप्ता / विधृता जवतांतरे // 24 // सुकुमालः स बालो मा / शृगालादिनिरद्यते // जातः / Jun Gun Aaradhak rust

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