Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ ती यांतरं // मामादाय ययौ तस्मा-त्साधुबाई तदा व्यधां // 7 // जवांतरानुरागेण। मय्यरज्यत नृपतिः // आविश्चकार च रहो / मनोऽभिप्रायमात्मनः // 5 // बंध्वोर्माम विरोधोऽनू-दि. चरित्र ति निर्जाग्यया मया // कुबुष्ट्या न च तस्योक्तं / स्वरूपं स्वपतेः पुरः // 6 // आकाशगामि नीविद्या-शक्तिमांस्तादृशः पुमान् // स्वरूपे विदिते तेन / नैव पापेन, हन्यते // 7 // यद्येव मकथयिष्यं / विरोधं मा कृथाः प्रनो // नवांतर श्व क्वेश-करं स्थान मिदं त्यज // 7 // अकरिष्यत्स शुझात्मा / स्त्रिया अपि वचो मम // उक्ते हितेऽत्र नो धीमा-न वक्तारमपेक्षते // ए॥ अहमेवानवं मूढा / परं निर्जाग्यशेखरा // अथवा लंध्यते केन / दुर्लध्या नवितव्यता // 10 // धिग्मे रूपमिदं स्वामि-मारणानर्थकारणं : // धन्यास्ते येन जायते। कर्मबंधनिबंधनं // 19 // ध्यायंती चिरमित्यादि / शोकव्याकुलमानसां // अशकन्निव तां दृष्टुं / / / रविरस्तं ययौ तदा // 12 // निसां मदनरेखाप्य / दणं श्रोता घनाध्वना // सिंहव्याघ्रादिवृत्कारैर्जजागारं जयातुरा // 13 // पूर्वा दिगिव मार्तमं / रत्नं रोहणभूरिव // सुखेन || सुषुवे सूनुं / सार्धरात्रौ शुनप्रनं // 14 // निस्सीमोत्तमविमोपमकरं नेत्रांबुजोखासक। || . P.P.AC. Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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