Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 322
________________ छन् // 35 // मित्रेण जिनदत्तेन / नार्या मदनरेखया // समं कुमार श्रायासी रससंमोदः || खमंदिरं // 40 // युग्मं // इति प्रियप्रसादेन / संपूर्णोत्तमदोहदा // गर्नेऽनकं वहंती सा / निन्ये सुखमनेहसं // 41 // व्यतीसेष्वष्टमासेषु / वसंत? समागते॥ युगबाहुः प्रियायुक्तो। 321 // रम्यमुद्यानमासदत् // 42 // तत्रान्यान्यमनोझवन्यसुमनःश्रेणीः स रहून् घनाः। कुर्वाणो मुकुट स्फुटं विरचयन् केलीगृहं सस्पृहं // क्रीमन् वसजया समं समरसैरात्मानमाहादयन् / सर्व वासरमत्यवाहयदसौ सौख्यान्निमेषोपमं // 43 // अस्तं गते दिवाधीशे। विस्तृते चं तमश्चये // अथाल्पपरिवारस्य / गमनं नोचितं मम // 4 // तदत्रैव वसाम्यद्य / विचिंत्ये ति कुमारकः // कृत्वा केलिगृहे केलि / सुष्वाप सुखनिद्रया // 45 // अथो मनोरथो राजा / बलं नित्यं विलोकयन् // स्थितमपपरीवारं / कुमारं ज्ञातवानिशि // 46 // श्रयं हवसरः सारः / कुमारों यदि हन्यते // तमस्तोमनृता रात्रि-रपि मेऽत्र सहायिनी // 4 // तदिदं साधयाम्यय / सद्यो गत्वा वनातरं // पश्चान्मदनरेखां तां / जोदये निःशंकमानसः // // | एवं विचित्य ऽष्टात्मा / कृपाणे पाणिना वहन् // निःकृपो नृप आयासी–देकाकी तत्र P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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