Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
View full book text
________________ प्रत्येक इति स्तुत्वा युगादीशं / कुमारः प्रणिपत्य च // उत्पत्य सप्रियोऽचाली-जिनदत्तान्वितस्ततः // 31 // गत्वा विद्याबलेंनाशु / स श्रीरैवतपर्वत / तत्र नेमिजिनं नत्वा-त्यर्च्य च स्तुचरित्रं तवानिति // 35 // तथाहि-श्रीनेमिनाथं जिनपं स्तवीम्यदं / सोजाग्य जाग्यपतिनाप्रना. वहं // राजीमतीरंजनराज्यरंजितं / जितेंजियं विष्टपराज्यरंजितं // 33 // विश्वैकवीरं समरांगणध्धुर--मनंगमाघात्य समाधिनासिना // नूनं रतिः प्रीतिरिति त्वया विनो। स्त्रसेवकेन्यः प्रददे तदंगात् // 3 // त्वयांगजो नाथ हतस्तथापि / यशोऽत्र ते चित्रमिदं महत्तमं // निघ्नन् जनोत्तापकर निजांगज-मपि प्रजुः कैनै हि वर्ण्यतेऽथवा // 35 // राजीमती सा दयितोग्रसेनजा--किशोऽपि मे स्नेह श्तो गलिष्यति // एवं विचार्येव विचरणाग्रणीनवान्न चिक्षेप जिनेश तत्र तं // 36 // एवमादिप्रकारेण ।नुत्वा नेमिजिनेश्वरं ॥उत्पत्याष्टापदं प्रातो / नतस्तत्र जिनानपि // 37 // अष्टापदाचलनरेंद्रकिरीटतुल्या / अष्टापदोपमबलाः सुविशालनेत्राः // अष्टापदोपरि परिस्थितिकृजिनेंता / अष्टापदो मम हरंतु कुकर्मरूपाः // // 30 // संमेतशिखरिस्वर्ण-गिरिनंदीश्वरादिषु // यात्रा संसूत्र्य सर्वत्र / देहे पावित्र्यमु. HTTER T E MAAAAC Gunka

Page Navigation
1 ... 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356