Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 22
________________ में सामुद्रिक-शास्त्र के अनुसार एक चक्रवर्ती सम्राट् के सभ लक्षण दीख पड़े। बालकों ने जब उसे बताया कि वह ग्राम-मयहर मोरिय का दौहित्र है, नाम चन्द्रगुप्त है, तो चाणक्य को यह समझने में देर न लगी कि 'यह वही बालक है, जिसकी माता का दोहला उसने युक्ति से शांत किया था।' वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और बालक के अभिभावकों से मिलकर, उन्हें उनके वचन का स्मरण कराके बालक को अपने साथ लेकर उस स्थान से चला गया। ____ कई वर्ष तक उसने चन्द्रगुप्त को विविध अस्त्र-शस्त्रों के संचालन, युद्ध-विद्या, राजनीति तथा अन्य उपयोगी ज्ञान-विज्ञान एवं शास्त्रों की समुचित शिक्षा दी। धीरे-धीरे उसके लिए बहुत से युवक और साथी भी जुटा दिये। ई०पू० 326 में भारतभूमि पर जब यूनानी सम्राट सिकन्दर महान् ने आक्रमण किया, तो उसे स्वदेश-भक्त चाणक्य का हृदय बहुत दु:खी हुआ, किन्तु उसने शिष्य चन्द्रगुप्त को सलाह दी कि वह यूनानियों की सैनिक-पद्धति, सैन्य-संचालन और युद्ध-कौशल का उनके बीच कुछ दिनों रहकर प्रत्यक्ष-अनुभव प्राप्त करे। सिकन्दर के ससैन्य देश की सीमान्त के बाहर निकलते ही चन्द्रगुप्त ने पंजाब के वालीकों को उभाड़कर यूनानी-सत्ता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, यूनानियों द्वारा अधिकृत प्रदेश के बहुभाग को स्वतन्त्र कर लिया, और ई०पू० 323 के लगभग चाणक्य के पथ-प्रदर्शन में मगध-राज्य की सीमा पर अपना एक छोटा-सा स्वतन्त्र-राज्य स्थापित करने में भी सफल हो गया। ___ई०पू० 321 के लगभग चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने एक छोटे-से सैन्यदल के साथ . छद्मवेष में नन्दों की राजधानी 'पाटलिपुत्र' में प्रवेश किया और दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। चाणक्य के कूट-कौशल के बावजूद नन्दों की असीम-सैन्यशक्ति के सम्मुख ये बुरी तरह पराजित हुए और जैसे-तैसे प्राण बचाकर भाग निकले। नन्द की सेना ने इनका दूर तक पीछा किया। दो बार ये पकड़े जाने से बाल-बाल बचे। चाणक्य की तुरत-बुद्धि और चन्द्रगुप्त के साहस तथा गुरु के प्रति अटूट-विश्वास ने ही इनकी रक्षा की। एक दिन रात्रि के समय किसी गाँव में एक वृद्धा के झोंपड़े के बाहर खड़े हुए इन दोनों ने उस वृद्धा द्वारा अपने पुत्रों को डाँटने के प्रसंग में यह कहते सुना कि "चाणक्य अधीर एवं मूर्ख है। उसने सीमावर्ती प्रान्तों को हस्तगत किये बिना ही एकदम साम्राज्य के केन्द्र पर धावा बोलकर भारी भूल की है।” चाणक्य को अपनी भूल मालूम हो गयी, और उन दोनों ने अब नवीन-उत्साह एवं कौशल के साथ तैयारी आरम्भ कर दी। विन्ध्य-अटवी में पूर्व-संचित अपने विपुल-धन की सहायता से उन्होंने सुदृढ़ सैन्य-संग्रह करना शुरू कर दिया। पश्चिमोत्तर-प्रदेश के यवन, काम्बोज, पारसीक, खस आदि तथा अन्य सीमान्तों की पुलात, शबर आदि म्लेच्छजातियों की भी एक बलवान् सेना बनायी। वाह्नीक उनके अधीन थे ही, पंजाब के मल्ल (मालव) गणतन्त्र को भी अपना सहायक बनाया और हिमवतकूट' अथवा 'गोकर्ण' (नेपाल) के किरात वंश के ग्यारहवें राजा पंचम' उपनाम 'पर्वत' या 'पर्वतेश्वर' को भी विजित 00 20 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001

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