Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ जैन तथा अन्य पुराणों में भी इसीतरह के प्रमाण हो सकते हैं, किन्तु नवीं शती के सुप्रसिद्ध जैनाचार्य जिनसेन ने अपने महापुराण (17/76) में जो कहा है, उसे उद्धृत करना आवश्यक है— ततोऽभिषिच्य साम्राज्ये भरतं सूनुमग्रिमम् । भगवान् भारतं वर्षं तत्सनाथं व्यधादिदम् । । इसतरह के प्रमाणों के आधार पर अब उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए, अर्थात् वे भ्रान्तियाँ मिट जानी चाहिए, जो दुष्यन्तपुत्र भरत या अन्य को इस देश के नामकरण से सम्बद्ध करते हैं। तथा विद्यालयों, कॉलेजों के पाठ्यक्रम में निर्धारित इतिहास की पुस्तकों में भी इससे संबंधित भ्रमों का संशोधन करके इतिहास की सच्चाईयों से अवगत कराना बहुत आवश्यक है। ‘पुराण विमर्श' नामक अपने बहुप्रसिद्ध - ग्रन्थ के सप्तम - परिच्छेद (प्र० चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी) में मैंने इन्हीं सब प्रमाणों के अध्ययन के बाद लिखा भी था कि— 'प्राचीन निरुक्ति के अनुसार 'स्वायम्भुव मनु' के पुत्र थे 'प्रियव्रत', जिनके पुत्र थे ‘नाभि’। ‘नाभि’ के पुत्र थे 'वृषभ', जिनके एकशतपुत्रों में से ज्येष्ठपुत्र 'भरत' ने पिता का राजसिंहासन प्राप्त किया और इन्हीं राजा भरत के नाम पर यह देश 'अजनाभवर्ष' से परिवर्तित होकर ‘भारतवर्ष' कहलाने लगा । जो लोग दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर यह नामकरण मानते हैं, वे परम्परा - विरोधी होने से अप्रामाणिक हैं । 1 सितम्बर 1993 में वाराणसी के 'श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्थान' में एक व्याख्यानमाला का मैंने उद्घाटन करते हुए इस देश का प्राचीन नाम 'अजनाभवर्ष' का सम्बन्ध प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर तथा ऋषभ के ज्येष्ठपुत्र भरत के नाम पर 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध होने की बात कही, तो वहाँ उपस्थित अनेक उन जैनधर्मावलम्बियों तक को बहुत आश्चर्य हुआ था, जो इन तथ्यों से अपरिचित थे। - प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के बाद तेईस तीर्थंकर और हुए। इसतरह जैनधर्म में चौबीस तीर्थंकरों की एक लम्बी परम्परा इसप्रकार है- 1. ऋषभदेव, 2. अजितनाथ, 3. संभव, 4. अभिनन्दन, 5. सुमति, 6. पद्मप्रभं, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. चन्द्रप्रभ, 9. पुष्पदन्त, 10. शीतलनाथ, 11. श्रेयांसनाथ, 12 वासुपूज्य, 13. विमलनाथ, 14. अनन्तनाथ, 15. धर्मनाथ, 16. शान्तिनाथ, 17. कुन्थुनाथ, 18. अरहनाथ, 19. मल्लिनाथ, 20. मुनिसुव्रत, 21. नमिनाथ, 22. नेमिनाथ, 23. पार्श्वनाथ तथा 24. महावीर । इन सभी तीर्थंकरों के विषय में एक बात विशेष उल्लेखनीय है, वह यह कि ये सभी तीर्थंकर ‘क्षत्रिय’ थे। इनमें सप्तम सुपार्श्वनाथ, अष्टम चन्द्रप्रभ, ग्यारहवें श्रेयांसनाथ और तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ – इन चार तीर्थकरों की जन्मभूमि का गौरव 'वाराणसी' नगरी को है। ऋषभ के बाद ऐतिहासिक तीर्थंकरों में जिनकी अधिक प्रसिद्धि है— उनमें नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं चौबीसवें तीर्थंकर महावीर वर्धमान हैं । इन सबका परिचय तद्-विषयकसाहित्य में द्रष्टव्य है। प्राकृतविद्या�जुलाई-सितम्बर 2001 35

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116