Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 98
________________ क्षमापना-पर्व आत्माराधना के महान् पर्व दशलक्षण के सुअवसर पर उत्तमक्षमा आदि दसविध धर्मों की पुनीत आराधना के परिणामस्वरूप अनुभूत निर्मलभावों से समस्त प्राणीजगत् के प्रति हुये अपने ज्ञात एवं अज्ञात अपराधों के लिये प्राकृतविद्या-परिवार विनम्र क्षमाप्रार्थी है। __ प्राकृतविद्या के जिज्ञासु-पाठक-समुदाय का उदार सहयोग एवं प्रेरणा हमें अपने प्रगति-पथ के लिये पौष्टिक-पाथेय की भाँति अमूल्य सम्बल देती रही है। हम यथाशक्ति सावधानीपूर्वक सामग्री का प्रकाशन एवं पारस्परिक व्यवहार करने की नैष्ठिक चेष्टा करते हैं: फिर भी हमारे लेखन, प्रकाशन या व्यवहार से हमारे सुधी-पाठकों को जो भी असुविधा हुई हो, उसके लिये भी हम विनम्र क्षमाप्रार्थी हैं। –सम्पादक ** ज्योति-पर्व दीपावली के सुअवसर पर अभिनंदन शासननायक भगवान् महावीर स्वामी के पावन 2600वें जन्मोत्सव-वर्ष में सम्पूर्ण देश और विश्व में जैन एवं जैनेतर-समुदाय के लोग अत्यंत हर्ष और उल्लासपूर्वक भगवान् महावीर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का श्रद्धासहित स्मरण कर रहे हैं। आगामी मास में भगवान् महावीर का 2528वाँ मांगलिक-निर्वाणदिवस आनेवाला है। __ प्रकाशपर्व दीपावली के सुअवसर पर प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से अपने सभी पाठकों एवं सहयोगियों के प्रति हार्दिक मंगलकामनायें समर्पित हैं। तथा हम भावना करते हैं. कि यह पुनीत-पर्व आप सभी के जीवन में अंतरबाह्य ज्ञानालोक को व्याप्त कर मोह और अज्ञान के तिमिर को अत्यंत दूर कर दे। ___कुरीतियों एवं अज्ञानतापूर्ण संस्कारों से बचकर हम सभी निर्मल-तत्त्वश्रद्धान, यथार्थ तत्त्वज्ञान के साथ-साथ निर्दोष शास्त्रानुकूल आचरण करते हुये अपने जीवन को, भविष्य को एवं सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र को ज्योर्तिमय कल की ओर ले जाने का संकल्प करें, और मोक्षपद के पथिक बनकर निर्वाण-प्राप्ति की ओर अग्रसर हों; ऐसी पुनीत-भावना –सम्पादक 0096 प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001

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