Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 104
________________ ही निबन्धों का अध्ययन कर पाया हूँ; इन निबन्धों में संश्लेषणात्मक और विश्लेषणात्मक दोनों ही पद्धतियों में तथ्यों का निरूपण हुआ है, जिससे गूढ-विषय भी सरलता से हृदयंगम हो जाता है। -डॉ० जयप्रकाश तिवारी, इन्दिरानगर, लखनऊ (उ०प्र०) ** 0 प्राकृतविद्या का जनवरी-जून 2001 का संयुक्तांक प्राप्त हुआ। इतनी उत्तम-सामग्री प्रकाशित करके आपने पत्रिका के स्तर में उतरोत्तर-वृद्धि ही की है। यह आपकी लगन का साक्षी है। पृष्ठ 124 पर आपने 'मध्य प्रदेश का जैन शिल्प' शीर्षक ग्रंथ की समीक्षा की। 'राजस्थान के जैन शिल्प' पर भी एक सुन्दर-ग्रंथ प्रकाशित करना चाहिये। कुछ योजना बना सकें, तो मैं भी सहयोग दे सकूँगा। 1953 से आज तक इसी क्षेत्र में कार्यरत हूँ। इसप्रकार के ग्रंथों हेतु श्रेष्ठ-चित्रों का प्रकाशन ही अपेक्षित है। ___-रत्नचन्द्र अग्रवाल (पूर्व महानिदेशक, पुरातत्त्व विभाग), जयपुर ** ● 'प्राकृतविद्या' के अक्तूबर-दिसम्बर 2000 ई० व जनवरी-जून 2001 के दोनों अंक यथासमय प्राप्त हुये, प्राप्ति की सूचना देने में विलम्ब हुआ, किंतु पत्रिका के दोनों ही अंक पाते ही आद्योपान्त पढ़कर छोड़ सकी। आपकी शोध-पत्रिका निश्चित ही उत्कृष्टकोटि की है। पत्रिका के दोनों अंकों में लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों के शोधपूर्ण लेख हैं, यदि नाम लेना चाहूँ, तो प्रत्येक का ही नाम लेना होगा। डॉ० उदयचन्द जैन की आधुनिक प्राकृत अत्यंत ललित व सरल है। संस्कृत में लेखन में अनवरत चालू है, परन्तु प्राकृत में संभवत: दो-तीन शतकों बाद डॉ० उदयचन्द जी पुन: प्राकृत में लिख रहे हैं, जो हर्षद भी है, प्रेरक भी। __ भगवान् महावीर की 2600सौंवी जन्म-जयन्ती और महिला-सक्षमता-वर्ष में भगवान् महावीर के साथ सक्षमतम महिला गणिनी चंदना पर संयुक्त-विशेषांक निकालना आपकी समुचित दूरदृष्टि का परिचायक है। __ आचार्य श्री विद्यानन्द जी के आशीर्वाद और आपके भगीरथ प्रयास (संपादकीय के अतिरिक्त अनेक लेख लिखने का विशेष-दायित्व देखते हुए) से यह पत्रिका निरन्तर प्रगति के सोपानों पर चढ़ती रहेगी, यह आशा और कामना है। दोनों अंकों के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद –डॉ० कुसुम पटोरिया, नागपुर ** ® प्राकृतविद्या का 'महावीर-चन्दना' विशेषांक मिला, अंक उत्कृष्ट है। 'प्रगति आणि जिनविजय' में इस अंक की समीक्षा करूँगा। पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी का 'सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव' लेख अतीव प्रसन्नता देनेवाला है। सुभाषचंद्र अक्कोले, कोल्हापुर ** 0 प्राकृतविद्या का 'महावीर-चन्दना' संयुक्तांक बहुत ही रोचक लेखों से सजा हुआ है। विशेषत: 'वइसालीए कुमार वड्ढमाणो' और 'भगवान् महावीर और उनक जीवनदर्शन' यह डॉ० ए०एन० उपाध्ये का लेख तथा 'सर्वोदय तीर्थमिदं तवैव' यह आचार्य विद्यानन्द मुनि जी का लेख बहुत ही रोचक हो गये हैं। बाहुबली पार्श्वनाथ उपाध्ये, अनगोल ** 10 102 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001

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