Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 40
________________ लेना कठिन-कार्य है। शरीर द्वारा अहिंसा-पालन अपेक्षाकृत आसान है, वाणी द्वारा कठिन है और मन द्वारा तो नितान्त-कठिन है। तीनों में सामञ्जस्य बनाये रखना और भी कठिन साधना है। इस देश में 'अहिंसा' शब्द को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। यह ऊपर-ऊपर से निषेधात्मक शब्द लगता है; लेकिन यह निषेधात्मक इसलिए है कि आदिम सहजात-वृत्ति को उखाड़ देने से बना है। अहिंसा बड़ी कठिन-साधना है। उसका साधन संयम है, मैत्री है, अद्रोह-बुद्धि है और सबसे बढ़कर अन्तर्नाद के सत्य की परम-उपलब्धि है। अहिंसा कठोर-संयम चाहती है, इन्द्रियों और मन का निग्रह चाहती है, वाणी पर संयत-अनुशासन चाहती है और परम-सत्य पर सदा जमें रहने का आविसंवादिनी-बुद्धि चाहती है। सबसे बड़े अहिंसा व्रती भगवान् महावीर से बड़ा अहिंसाव्रती कोई नहीं हुआ। उन्होंने विचारों के क्षेत्र में क्रान्तिकारी अहिंसकवृत्ति का प्रवेश कराया। विभिन्न विचारों और विश्वासों के प्रत्याख्यान में जो अहंकारभावना है, उसे भी उन्होंने पनपने नहीं दिया। अहंकार अर्थात् अपने आप को जगह प्रवाह से पृथक् समझने की वृत्ति बहुतप्रकार की अहिंसा का कारण बनती है। सत्य को 'इदमित्थं' रूप में जानने का दावा भी अहंकार का ही एक रूप है। सत्य अविभाज्य होता है और उसे विभक्त करके देखने से मत-मतांतरों का आग्रह उत्पन्न होता है। आग्रह से सत्य के विभिन्न-पहलू ओझल हो जाते हैं। सम्पूर्ण मनीषा को नया मोड़ ___मुझे भगवान् महावीर के इस अनाग्रहीरूप में जो सर्वत्र सत्य की झलक देखने का प्रयासी है, परिवर्तीकाल के अधिकारी-भेद, प्रसंग-भेद आदि के द्वारा सत्य को सर्वत्र देखने का वैष्णवप्रवृति का पूर्वरूप दिखाई देता है। परवर्ती जैन-आचार्य ने स्याद्वाद के रूप में इसे सुचिंतित दर्शनशास्त्र का रूप दिया और वैष्णव-आचार्यों ने सब को अधिकारी-भेद से स्वीकार करने की दृष्टि दी है। भगवान् महावीर ने सम्पूर्ण भारतीय मनीषा को नये ढंग से सोचने की दृष्टि दी है। इस दृष्टि का महत्त्व और उपयोगिता इसी से प्रकट होती है कि आज घूम फिरकर संसार फिर उसी में कल्याण देखने लगता है। सत्य और अहिंसा पर उनको बड़ी दृढ़ आस्था थी। कभी-कभी उन्हें केवल जैनमत के उस रूप को जो आज जीवित है, प्रभावित और प्रेरित करनेवाला मानकर उनकी देन को सीमित कर दिया जाता है। भगवान् महावीर इस देश के उन गिने-चुने महात्माओं में से हैं, जिन्होंने सारे देश की मनीषा को नया मोड़ दिया है। उनका चरित्र, शील, तप और विवेकपूर्ण विचार, सभी अभिनन्दनीय हैं। | "ब्राह्मी परब्रह्मसम्बन्धिनी सरस्वती वेदपुराणादिरूपा विद्या।" – (टिप्पणी) | 10 38 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001

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