Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 95
________________ यूनीकोड ने देवनागरी के 'हलंत' को 'विराम' बना दिया -विनोद वार्ष्णेय 'यूनीकोड' भारतीय भाषाओं की कंप्यूटर-तकनालॉजियों के विकास में बाधा बना हुआ है। लिपियों के विश्वस्तरीय मानकीकरण के नाम पर 'यूनीकोड' कंसोर्शियम बनाया गया था। लक्ष्य था कि दुनिया की समस्त लिपियों-संबंधी सोफ्टवेयर एक ही मानक-कोड 'यूनीकोड' के आधार पर तैयार हों। . लेकिन 'यूनीकोड' ने भारतीय-भाषाओं के खिलाफ कई अन्याय किये हैं। 'सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय' की ओर से भाषायी-तकनालॉजी मसले पर पिछले दिनों आयोजित एक बैठक में भाग लेने आये विशेषज्ञों के अनुसार भारत को 'यूनीकोड' का बहिष्कार कर देना चाहिए, जिस तरह चीन और जापान ने किया है। उधर इस मसले पर सरकारी-राय है कि हमें 'यूनीकोड' स्वीकार कर लेना चाहिए; क्योंकि भविष्य में प्रचलन इसी का होने वाला है। माइक्रोसॉफ्ट, ऑरैकल जैसी सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इसको अपना रही हैं। भारत इस मामले में शेष दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। भारत ने हाल ही में 'यूनीकोड-संकुल' (कंसोर्शियम) की सदस्यता ग्रहण की है और इसे वोटिंग-अधिकार भी मिला है। वोट की इस ताकत के आधार पर कहा जा रहा है "यूनीकोड के नये संस्करण में भारतीय-भाषाओं के साथ हुई ज्यादतियों को दूर कर दिया जाएगा।" लेकिन विशेषज्ञ पूछते हैं कि “क्या यूनीकोड की शर्ते इसकी इजाजत देंगी। निष्पक्ष विशेषज्ञों का मानना है कि यूनीकोड की शर्तों में शामिल है कि जब एक अक्षर (करैक्टर) को कोडबद्ध कर दिया जाएगा, तो इस कोड को न फिर हटाया जाएगा और न ही उसका नाम व स्थान बदला जाएगा।" विशेषज्ञ पूछते हैं कि “ऐसी स्थिति है, तो यूनीकोड में देवनागरी के 'हलंत' को जो विराम' नाम दे दिया गया है उसे कैसे ठीक किया जाएगा?" इसीतरह की समस्यायें यूनीकोड में कई हैं। मसलन उड़िया-भाषा के कोड में देवनागरी के 'व' का उड़िया-समानक गायब है। तमिल के विसर्ग को लेकर भी समस्यायें हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषाओं के लिए देश में पहले से ही मानक तय किये जा चुके हैं। लेकिन 'यूनीकोड' में इसके पुराने (1988 के) संस्करण को ही शामिल किया गया है, जबकि 1991 का संस्करण तैयार था। विशेषज्ञों को आशंका है कि भारत को बेशक प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001 00 93

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