Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 24
________________ चाणक्य ने नन्द के स्वामिभक्त-मन्त्री राक्षस के षड्यन्त्रों को विफल किया और उसे चन्द्रगुप्त की सेवा में कार्य करने के लिए राजी कर लिया। अन्य पुराने योग्य-मन्त्रियों, राजपुरुषों एवं कर्मचारियों को भी उसने साम-दाम-भय-भेद से नवीन-सम्राट के पक्ष में कर लिया। वह स्वयं महाराज का प्रधानामात्य रहा। मन्त्रीश्वर चाणक्य के सहयोग से सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने साम्राज्य का विस्तार एवं सुसंगठन किया और उसके प्रशासन की सुचारुव्यवस्था की। इस नरेश के शासनकाल में राष्ट्र की शक्ति और समृद्धि की उत्तरोत्तर-वृद्धि होती गयी। ई०पू० 312 में उसने 'अवन्ति' को विजय करके उज्जयिनी' को फिर से साम्राज्य की उपराजधानी बनाया। उज्जयिनी' पर अधिकार करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने दक्षिण-भारत की दिग्विजय के लिए प्रयास किया। 'मालवा' से सुराष्ट्र होते हुए उसने 'महाराष्ट्र' में प्रवेश किया। 'सुराष्ट्र' में उसने गिरिनगर' (उजयन्त-गिरि) में भगवान् नेमिनाथ की वन्दना की और पर्वत की तलहटी में 'सुदर्शन' नामक एक विशाल-सरोवर का उस प्रान्त के अपने राज्यपाल वैश्य पुष्पगुप्त की देख-रेख में निर्माण कराया। उक्त सुदर्शन-सरोवर के तट पर निर्ग्रन्थमुनियों के निवास के लिए गुफायें (लेण) भी बनवायीं, जिनमें से प्रधान-लेण चन्द्रगुफा' के नाम से प्रसिद्ध हुई। महाराष्ट्र, कोंकण, कर्णाटक, आन्ध्र एवं तमिलदेश-पर्यन्त चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी विजय-वैजयन्ती फहरायी। प्राचीन तमिल-साहित्य, दाक्षिणात्य अनुश्रुतियों एवं कतिपय शिलालेखों से मौर्यों का उक्त दक्षिणीय-प्रदेशों पर अधिकार होना पाया जाता है। दक्षिण-देश की इस विजय-यात्रा में एक अन्य प्रेरक-कारण भी था। चन्द्रगुप्त का निजी-कुल 'मोरिय' आचार्य भद्रबाहु-श्रुतकेवली का भक्त था। पूर्वोक्त दुष्काल के समय इन आचार्य के ससंघ दक्षिण-देश को विहार कर जाने पर भी वे लोग उन्हीं का आम्नाय के अनुयायी रहे और मगध में रह जानेवाले स्थूलिभद्र आदि साधुओं तथा उनकी परम्परा को उन्होंने मान्य नहीं किया। चन्द्रगुप्त, चाणक्य आदि इसी आम्नाय के थे। अतएव आम्नाय-गुरु भद्रबाहु ने कर्णाटक-देश के जिस 'कटवप्र' अपरनाम 'कुमारीपर्वत' पर समाधिमरणपूर्वक देहत्याग किया था, पुण्य-तीर्थ के रूप में उसकी वन्दना करना तथा उक्त आचार्य की शिष्य-परम्परा के मुनियों से धर्म-लाभ लेना और उनकी साता-सुविधा आदि की व्यवस्था करना ऐसे कारण थे, जो सम्राट की इस दक्षिण-यात्रा में प्रेरक रहे प्रतीत होते हैं। ___ चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की एक अन्य अति-महत्त्वपूर्ण घटना ई०पू० 305 में मध्य-एशिया के महाशक्तिशाली यूनानी सम्राट् सेल्यूकस निकेतर द्वारा भारतवर्ष पर किया गया भारी-आक्रमण था। चन्द्रगुप्त-जैसे नरेन्द्र और चाणक्य जैसे मन्त्रीराज असावधान कैसे रह सकते थे? उनका गुप्तचर-विभाग भी सुपुष्ट था। मौर्य-सेना ने तुरन्त आगे बढ़कर आक्रमणकारी की गति को रोका। स्वयं सम्राट चन्द्रगुप्त ने सैन्य-संचालन किया। वह 00 22 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001

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