Book Title: Prakrit Vidya 2001 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 21
________________ उसके कुछ अंश उन्हीं के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत हैं___“आधुनिक-दृष्टि से भारतवर्ष के शुद्ध व्यवस्थित राजनीतिक इतिहास का जो प्राचीनयुग है, उसके प्रकाशमान नक्षत्रों में प्राय: सर्वाधिक तेजपूर्ण-नाम चन्द्रगुप्त' और 'चाणक्य' हैं। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के अन्तिमपाद के प्रारम्भ के लगभग जिस महान् राज्यक्रान्ति ने शक्तिशाली ‘नन्दवंश' का उच्छेद करके उसके स्थान में मौर्यवंश' की स्थापना की थी, और उसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय में 'मगध-साम्राज्य' को प्रथम ऐतिहासिक भारतीय साम्राज्य बनाकर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था, उसके प्रधान-नायक ये ही दोनों गुरु-शिष्य थे। एक यदि राजनीति विद्या-विचक्षण एवं नीति-विशारद ब्राह्मण-पण्डित था तो दूसरा परम पराक्रमी एवं तेजस्वी क्षत्रिय-वीर था। इस विरल मणि-कांचन संयोग को सुगन्धित करनेवाला अन्य दुर्लभ-सुयोग यह था कि वह दोनों ही अपने-अपने कुल की परम्परा तथा व्यक्तिगत आस्था की दृष्टि से जैनधर्म के प्रबुद्ध-अनुयायी थे। गत सार्थक एक सौ वर्षों की शोध-खोज ने यह तथ्य भी प्राय: निर्विवाद सिद्ध कर दिया है कि भारतवर्ष के प्राय: सभी महान् ऐतिहासिक सम्राटों की भाँति सर्व-धर्म-सहिष्णु एवं अतिउदाराशय होते हए भी व्यक्तिगतरूप से चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्म का अनुयायी' था। तराईप्रदेश के साम्राज्य के ही भीतर 'पिप्पलीवन' के मोरियों का गणतन्त्र था। यह लोग श्रमणोपासक व्रात्य-क्षत्रिय थे। स्वयं महावीर के एक गणधर मोरियपुत्र' इसी जाति के थे और इस जाति में जैनधर्म की प्रवृत्ति थी। इनका एक पूरा ग्राम मयूरपोषकों का ही था। घूमते-घूमते चाणक्य एक बार इसी ग्राम में आ पहुँचा और उसके मौर्यवंशी मयहर (मुखिया) के घर ठहरा। मुखिया की इकलौती लाडली पुत्री गर्भवती थी और उसीसमय उसे चन्द्रपान का विलक्षण दोहला' उत्पन्न हुआ, जिसके कारण घर के लोग चिन्तित थे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि दोहला कैसे शान्त किया जाए। चाणक्य ने आश्वासन दिया कि वह गर्भिणी को चन्द्रपान कराके उसका दोहला शांत कर देगा, किन्तु शर्त यह है कि उत्पन्न होनेवाले शिशु पर, यदि वह पुत्र हुआ तो, चाणक्य का अधिकार होगा और वह जब चाहेगा, उसे अपने साथ ले जाएगा। चाणक्य ने एक थाली में जल (अथवा क्षीर-दूध) भरकर और उसमें आकाशगामी पूर्णचन्द्र को प्रतिबिम्बित करके गर्भिणी को इस चतुराई से पिला दिया कि उसे विश्वास हो गया कि उसने चन्द्रपान कर लिया है। दोहला शांत हो गया। कुछ मास पश्चात् मुखिया की पुत्री ने एक चन्द्रोपम सुदर्शन, सुलक्षण एवं तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। जो चन्द्रगुप्त' नाम से प्रसिद्ध हुआ। ___ आठ-दस वर्ष पश्चात् पुन: चाणक्य उसी मयूरग्राम में अकस्मात् आ निकला। वह ग्राम के बाहर थकान मिटाने के लिए एक वृक्ष की छाया में बैठ गया और उसने देखा कि सामने मैदान में कुछ बालक खेल रहे हैं। एक सुन्दर, चपल, तेजस्वी बालक राजा बना हुआ था और अन्य सब पर शासन कर रहा था। समीप जाकर ध्यान से देखा तो उसे उस बालक प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001 00 19

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