Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 7
________________ भूमिका प्राचीन भारतीय भाषाओं में प्राकृत भाषा अनेक शताब्दियों तक भारतीय जनमानस की प्रमुख जनभाषा रही है। सम्पूर्ण भारतीय भाषायें इनका साहित्य, इतिहास, संस्कृति, परम्परायें, लोक-जीवन और जन-मन-गण इससे प्रभावित एवं ओत-प्रोत है। यही कारण है कि प्राकृत भाषा को अनेक भारतीय भाषाओं की जननी होने का गौरव प्राप्त है। साहित्य सर्जना के रूप में सर्वाधिक प्राचीन वैदिक भाषा में भी प्राकृत भाषा के अनेक तत्त्व प्राप्त होते हैं। इससे लगता है कि उस समय भी बोलचाल की लोक-भाषा के रूप में प्राकृत जैसी कोई जन-भाषा निश्चित ही प्रचलन में रही होगी। इसी जन-भाषा को अपने उपदेशों और धर्म प्रचार का माध्यम बनाकर तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध भाषायी क्रान्ति के पुरोधा कहलाये। यही कारण है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर वर्तमान काल तक प्राकृत भाषा में धर्म-दर्शन, तत्त्वज्ञान, अलंकार-शास्त्र, सामाजिक विज्ञान, इतिहास-कला-संस्कृति, गणित, ज्योतिष, भूगोल-खगोल, वास्तुशास्त्र, मूर्तिकला एवं जीवन मूल्यों आदि से सम्बन्धित अनेक विषओं के अतिरिक्त आगम एवं इनकी व्याख्या से सम्बन्धित साहित्य की सर्जना समृद्ध रूप में होती आ रही है और यह क्रम आज भी प्रवर्तमान है। किन्तु आश्चर्य है कि जो प्राकृत भाषा स्वयं अनेक वर्तमान भाषाओं की जननी है और लम्बे काल तक जनभाषा के रूप में राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित रही, तथा जिसका विशाल वाङ्मय विद्यमान है, राष्ट्र की वह बहुमूल्य धरोहर प्राकृत भाषा आज इतनी उपेक्षित क्यों है कि इसे आज अपनी अस्मिता एवं पहचान बनाने और मूलधारा से जुड़ने हेतु संघर्ष करना पड़ रहा है? इन्हीं प्रश्नों के समाधान हेतु एक विनम्र किन्तु प्रशस्त प्रयास प्राकृत भाषा एवं साहित्य की ग्रीष्मकालीन अध्ययनशालाओं के माध्यम से पिछले पच्चीस वर्षों से निरन्तर दिल्ली के विजय वल्लभ स्मारक जैन मंदिर के विशाल परिसर में स्थित भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी कर रहा है। संस्थान में समय-समय पर विविध विशिष्ट शैक्षणिक कार्यक्रमों का आयोजन होता ही रहता है। इसमें आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों को प्राकृत के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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