Book Title: Prakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 7
________________ प्रकाशकीय अर्धमागधी जैन आगम साहित्य भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की अमूल्य धरोहर है। इस अर्धमागधी आगम साहित्य का एक भाग प्रकीर्णक साहित्य के नाम से जाना जाता है / प्रकीर्णक साहित्य में विषय-वैविध्य इतना है कि दर्शन, धर्म, साधना एवं आध्यात्मिक उपदेश के साथ ही खगोल, भूगोल, ज्योतिष और इतिहास सभी इसमें समाहित हैं / इस दृष्टि से प्रकीर्णक साहित्य जैन समाज और संस्कृति का सम्पूर्ण परिचय प्रदान करता है, किन्तु हमारा दुर्भाग्य यह है कि यह साहित्य और तत्संबंधी अध्ययन प्रायः उपेक्षित ही रहे। सर्वप्रथम शुबिंग जैसे विदेशी प्राच्य विद्याविदों ने ही इन ग्रन्थों के महत्त्व को हमारे समक्ष उजागर किया / यद्यपि विगत वर्षों में कुछ प्रकीर्णक ग्रन्थों का प्रकाशन तो हुआ है, किन्तु न तो उनके अनुवाद के प्रयत्न हुए और न ही उनके मूल्य एवं महत्त्व को जनसाधारण के समक्ष लाने का प्रयास किया गया / ___प्रकाशित प्रकीर्णक ग्रन्थों में केवल मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित एवं महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित पइण्णयसुत्ताइ भाग 1 एवं 2 ही एकमात्र ऐसे संस्करण हैं, जिनका विस्तृत भूमिका के साथ वैज्ञानिक रीति से संपादन हुआ है / इसीप्रकार एल. डी० इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडोलाजी, अहमदाबाद से इसिभासियाइं के मूलपाठ के साथ शुब्रिग की भूमिका का जो प्रकाशन हुआ है, वह भी महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है / इसी क्रम में प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा इसिभासियाइं का हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रो० सागरमल जैन की विस्तृत भूमिका सहित जो प्रकाशन हुआ है, उसे भी हम महत्त्वपूर्ण कह सकते हैं, किन्तु अभी तक समस्त प्रकीर्णकों का हिन्दी अनुवाद एवं विस्तृत भूमिका के साथ प्रकाशन का कार्य अवशिष्ट ही था। इस दिशा में आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर द्वारा प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में प्रकीर्णकों को हिन्दी अनुवाद एवं विस्तृत भूमिका के साथ प्रकाशित करने की एक योजना बनाई गयी / योजना को मूर्तरूप देते हुए डॉ. सुभाष कोठारी एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया के द्वारा अनुदित होकर अद्यावधि देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, महाप्रत्याख्यान, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गणिविद्या, गच्छाचार, वीरस्तव और संस्तारक आदि नौ प्रकीर्णक संस्थान द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं तथा शेष प्रकीर्णकों के अनुवाद का कार्य प्रगति पर है / प्रकीर्णक साहित्य के मूल्य और महत्त्व को जनसाधारण के समक्ष व्यापक रूप से प्रस्तुत करने हेतु हमने सोचा कि इस विषय पर विद्वत संगोष्ठियों का आयोजन करना उपयोगी रहेगा / अतः हमने सर्वप्रथम संस्थान द्वारा "प्रकीर्णक साहित्य : अध्ययन एवं समीक्षा" विषयक एक द्वि-दिवसीयसंगोष्ठी का आयोजन 2-3 अप्रेल, 1995 को उदयपुर में किया। इस संगोष्ठी में प्रो० कमलचन्द सोगानी, प्रो० सागरमल जैन, प्रो० के० आर० चन्द्र, डॉ० प्रेमसुमन जैन, डॉ. सुषमा सिंघवी, महो० विनयसागरजी, श्री जौहरीमलजी एवं

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