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एन थाहारचा सरीरादिकपणे प्रणमा तोहे पीण न पांम्यो ते नो|| व्या।
गव्याथी त्रपती हुं ॥१॥ !! श्राहारिआय परिणामिप्राय।नय तेसु त्तित्तो हं॥१॥ लेपावापणु होय नोग वीषये। पण अनोगी जीव न लेपाइं सर्व कर्मे।।
नवलेवो होइ नोगेसु। अनोगी नो विलिप्पई॥ जे जोगी नर ते फरे संसार जे अनोगी नर ते मुकाय सर्व क|| दुःखमा।
मथी ॥१॥ | नोगी नम संसारे। अनोगी विप्पमुच्चई ॥१५॥|| लीलो तथा सुको ए बे बापस एहवा गोला माटीमयना॥ मां अथमाया। ___ अन्नो सुक्कोय दो बूढा। गोलया महिा मया ॥ ते बे नांख्या वा पटक्या नि तेहमां जे लीलो हतो तेतो तीहां तीइं।
चोटी रह्यो ॥२०॥ दोवि आवमिश्रा कूमे। जो अन्ना सो तब लग्गामा ए रीते चोटे वा वलगे माती एहवा जे नर कामनी लालसा मती वा बुद्धीना धणी। वा इच्छावाला॥ ___ एवं लग्गति दुम्मेहा। जेनरा काम लालसा॥ ने जे विरतीवंतोते काम जोगमांन लागे। जेम सुकागोलानीपरे२१
विरत्ता नलग्गति। जहा सुक्केत्र गोलए॥२१॥ घास तथा काष्टथी अग्नि न लवणसमुद्र हजारो नदियोथी न त्रपती पांमे।
त्रपती पांमे॥ तण कहिच अग्गी। लवणसमुद्दो नई सहस्सेहि। तेम न था जीवने सकीइं। त्रपती करवाने काम जोगथी॥॥
न इमोजीवो सका। तिप्पे काम नोगेहिं ॥२२॥
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