Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 212
________________ %3 २०७ कमर वा केहेमनोनाग एहसंबंधी इत्यादीक स्त्रीयोना अवयवना वी लास मनोहर वा सुंदर देखी चीतव्या एटले तेमां रागीथयो पण थाप __ कटी तटीयः सुदृशां विलासाः॥१३॥ [ने न ध्याया।१३। लोल वा चंचल इक्षण वा नेत्र जे जेहनां एहवी स्त्री तेह नु मुख जोवे करीने वा चपल नेत्रपणे मुख जोवे करीने। | लोलेदाणा वक्र निरीदणेन । जे मनने वीषे रागनो लव एटले मोहना अंसनो रंग बेठो वाला , यो मानसो राग लवो विलग्नः ॥ [ग्यो ते॥ न गयो शुध वा पवीत्र सिद्धांतरूप समुद्रने वीषे । | न शुध सिघांत पयोधि मध्ये । हे संसारतारक धोयु मन तोपण ते रंग न गयो तेहनु शुं कारण ए टले सिद्धांत वांचे नणे पण मोहराग न गयो ते शा माटे ॥१४॥ | धौतोप्यगा तारक कारणं किं ॥१४॥ वली रत्नाकरसूरि केहेले सरीर नथी मनोहर तथा नथी वीनय नदार्या| | अंगं न चंगं नगणो गुणानां। [दीक गुणनो समोह।। |नथी नीर्मल वा नली कलानो वीलास कोइ पण ॥ न निर्मलः कोपि कला विलासः॥ प्रधान वा नली कांती तथा प्रजुता नथी कोइ पण । स्फुर प्रना न प्रनुता च कापि । तोहेपण अनीमान वा गर्वे करीने कदर्थना पांम्यो हुँ एटले ते गुण वी तथाप्य हंकार कदर्थितो हं॥२॥ [ना पण गर्वकरयो।१५। बायु गले वा जाय शीघ्र पण पापबुद्धी नथी जती। श्रायु गलत्याशु न पाप बुधिः। ..

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