Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 213
________________ - ១០០ || गइ वय बाल बादे पण वीषयनी वांडा गइ नही ॥ गतं वयो नो विषया निलाषः ॥ वली प्रयत्न वा नद्यम कस्यो ओषध करी देह पुष्टहेते पण आत्माने धर्मने वीषे पुष्ट करवा यत्न करयो नहीं। यत्नश्च नैषज्य विधौ न धर्मे । हे स्वामी मोहोटा मोहे वीटंब्यो वा पीमयो मुजने ॥१६॥ स्वामि न्महामोह विम्बनामे ॥ १६ ॥ नथी आत्मा वा जीव नथी तथा पुन्य वा सुक्रत नथी तथा नव वा अवतार नथी पाप वा दुरीत । ना त्मा न पुण्यं न नवो न पापं । हुँ जे तेणे नास्तिकादीक दुष्टाचारीनी माती वाणी वा कटुक वाणी मया विटानां कटु गीर पीयं ॥ [पीधी। धारण करी कानने वीषे केवलज्ञानरूप नास्कर वा सुर्य तमे । __ आधारि कर्णे त्वयि केवलार्के । हे देव अती प्रगटपणे वर्त्तते बते पण धीकार हो मुजने एटले श्राप ज्ञानी ते मागना वचनमां राच्यो॥१७॥ परि स्फुटे सत्यपि देव धिग्मां ॥१७॥ वली हुं केहवो ढुं ते केहे अरीहंतदेव न पूज्या वली पात्रपूजा ते | न देवपजा नच पात्रपूजा। [सुसाधुने दांन नदीधुं।। न पाल्यो श्रावकनो धर्म वली ननो मुनिनो धर्म न पाल्यो। नश्राप धर्मश्च न साधुधर्मः॥ |पामे थके पण था मनुष जन्म सघलो ने। लब्ध्वापि मानुष्य मिदं समस्तं । e - mutuamanawsamunanimummisamm -

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