Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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२१७ हबा ते सु कयहा । जे किश्कम्मं कुणंति तुह चलणे॥ वाणी बहुगुण खाणी। सुगुरु गुणा वन्निा जीए॥४॥ अवयरिया सूरधेणू । संजाया महगिहे कणवुरी ॥ दारिदं अङगयं । दिठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥५॥ चिंतामणि सारिख । समत्तं पावियंमए अऊ॥ संसारो दूरिकन । दिहे तुह सुगुरु मुहकमले ॥६॥ जा रिधी अमरगणा । मुंजता पियतमाई संजुत्ता॥ सापुण कित्तियमिता । दिछे तुह सुगुरु मुहकमले ॥७॥ मण वय काएहिंमए । जंपावं अङियं सयानयवं॥ तं सव्वं अऊ गयं । दिछे तुह सुगुरु मुहकमले ॥॥ उन्नहो जिणिंदधम्मो। उलहो जीवाण माणुसो जम्मो॥ लपि मणुअजम्मे। अश् उलहा सुगुरु सामग्गी॥॥ जब नदीसंति गुरु । पञ्चूसे उठिएहिं सुपसन्ना। तब कहं जाणिऊ। जिणवयणं अमिश्रसारिखं ॥१॥ जह पासिंमि मोरा। दिणयर उदयमि कमलवणसंमा॥ विहसंति तेमतच्चिय । तह अम्हे दंसणे तुम्ह ॥११॥ जह सरइ सुरहि वहो । वसंतमासंच कोईला सरई॥ वंऊसरई गइंदो । तहअम्म मणं तुमं सरई ॥१२॥ बहुयां बहुयां दिवसमां। जश् मई सुहगुरु दिछ॥ लोचनबे विकसी रह्यां। हीअम अमित्र पश्छ॥१३॥ अहो ते निङिन कोहो । अहो माणो पराजिन ॥
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