Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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जश्नह परमपयं । निव्वंना तहय जम्म मरणाणं॥ ता समरह जिणनाहं । विदेहवासंमि विहरंतं॥१६॥ जो निच्चं नव्वाणं । विदेहवासंमि सामि विहरंतो॥ स धम्मदेसणाए। मित्त पपासणं का ॥१॥ पञ्चूसे मशणे । संका समयंमि सव्वकालंमि ॥ सीमंधर तिबयरं । वंदेहं परम नत्तीए ॥१७॥ पंचधणुस्सय माणो । चनरासी पुव्वलख वरिसाक॥ सो सीमंधरनाहो । अणंतनाणी सयाजय ॥२॥ मुणिसुव्वय नमि तिब्यर। अंतरे रऊलछि विचहुं ॥ छमिय पव्वन्न दिलं । सीमंधर सामियंवंदे ॥३०॥ श्य सीमंधरनाहो । थुन मए नत्तिराय कलिएणं॥ सासय सुहक्क जण । जयनाहो होन नवियाणं ॥२॥
॥ इति श्री मंधरजिन स्तवनं ॥
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॥ अथ श्री गुरु प्रददाणा ॥ गोश्रम सुहम्म जंबू । पनवो सिङनवाइ आयरिश्रा॥ अन्नेवि जुगप्पहाणा । पइंदिठे सुगुरु ते दिन ॥१॥ अऊ कयलो जम्मो। अऊ कयद्धं च जीवियं मन ॥ जेण तुह दंसणा मय । रसेण सत्ताई नयणाइं॥॥ सो देसो तं नगरं । तं गामो सोअ आसमो धन्नो॥ जब पहु तुम्हपाया। विहरंति सयावि सुपसन्ना ॥३॥
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