Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ - - - - - १४ जाणुव्व देसियं तिल । संपत्ते पंचमं गई॥१७॥ से सिवे अयले निच्चे । अरूवे अयरामरे ॥ कम्म प्पपंच नम्मुक्के । जएवीरे जएजिणे ॥१॥ से जिणे वघमाणेय । महावीरे महायसे ॥ असंखउक खिन्नाणं । अम्हाणं देवनिव्वुश्॥३०॥ श्य परम पमोया संथन वीरनाहो ॥ परम पसमदाणा देउ तुलत्तणंमे ॥ असम सुह उहेसु सग्ग सिघीनवेसु । कणय कयवरेसुं सत्तु मित्तेसुवावि ॥२१॥ ॥ इति श्री वीरजिन स्तवन ॥ ॥अथ श्री मंधरस्वामीनु स्तवन । केवलनाण सणाहं । विदेह वासंमि संठियंधीरं ॥ सुर मणु नमिय चलणं। सीमंधर सामियं वंदे॥॥ जय सीमंधर सामिय। नविय महाकुमुय बोहण मयंक॥ समरामि तं महायस श्हविन नारहेवासे ॥२॥ सीमंधर देव तुमं । गामा गर पडणेसु विहरंतो॥ धम्मं कहेसि जेसिं । सहलं चिय जीवियं तेसिं ॥३॥ किं नयवं मह कम्मं । समव्यिं तारिसेहिं पावहिं॥ जं नहजा जम्मो । तुह पयमूले सया कालं ॥४॥ चिंतामणि सारितो। अहवा कप्पडुमव्व सुह फलन॥ - m

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226