Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 210
________________ - २०५ ते रत्नत्री प्रमादरूप निद्राना वशथकी येले वा फोगट गमाव्यां एटले ॥ प्रमाद निद्रावशतो गतं तत् । [जन्म प्रमादे गमाव्यो। माटे माहारीज जुल तो हवे कोनापागल हे नायक हुं पोकार करूं। ॥ कस्या ग्रतो नायक पूत्करोमि ॥७॥ वैराग्य रंग लोकने उगवाने अर्थे थयो। वैराग्य रंगो पर वंचनाय । धर्मनो नपदेश कह्यो जे तेतो लोकने राजी करवाने काजे थयो॥ | धर्मोपदेशो जन रंजनाय॥ वली विद्यानण्यो ते वादकरवा अर्थे मुजने थइ एटले थात्महेते नथई ___ वादाय विद्या ध्ययनंच मे नूत् । हे ईश वा हे स्वामी माहारु कृत्य हास्यकारक केटयूँ कहुं एटले में घणु किय दुवे हास्यकरं स्वमीश ॥ ए॥ [अजुक्त कस्युं॥ए। परनाथपवाद वा अबतादोषादी बोलवे करी मुख दुःषण सहीत करघु परा पवादेन मुखं सदोषं । नेत्र जे आंख्यो परनारीनां रूप यादे माठी बुद्धीथी जोवेकरी सदोष नेत्रं परस्त्रीजन वीक्षणेन॥ [करी॥ चीत वा मन परने अपाय जे कष्ट थवानु चीतववे करी सदोष करथु। __चेतःपरापाय विचिंतनेन। हे प्रनु एहवां कर्म करयां माटे माहारी वागल शी गती थशे॥१०॥ कृतं भविष्यामि कथं विनोहं ॥ १० ॥ वीमब्यु वीगोव्यु जे कंदर्परुपि खानुकमनी वेदनानी। विमंबितं य स्मरघस्मरार्ति । दशाना वशथी शब्दादीक वीषयमा थंधपणे थयो -

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