Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 209
________________ - - - ३०४ सहीतपणे नजेनुं काम नाव्युं ॥ ५ ॥ जालेन बघो स्मि कथं नजेत्वां ॥५॥ वली केहे न करथु में परलोके सुखदायक कार्य वली इहनो अर्थ || | कृतं मया मत्र हितं न चेह। [थावते पदे केहेजे। हे लोकेश लोक जे बकायजीव तेहना रक्षक माटे लोकेश या लो के वा वर्तमान जन्मे पण मुजने सुख न थयु माटे ॥ लोके पि लोकेश सुखं न मे नूत् ॥ मुज सरीखानो जन्म वा नव केवलज । । अस्मादृशां केवल मेव जन्म । हे जिनेश थयो जव पुरवा वा योनी पूरवाने ॥ ६ ॥ जिनेश जज्ञे नव पुरणाय ॥ ६॥ वली केहेले हे मनोज्ञवृत हुँ इंम मानुढं वा जाणुढे जे कारण माटे चित्त मन्ये मनो य न मनोज्ञटत्तं । [जे ते न। तुमारा मुखरूप चंद्र अमृत रूप कीरण पांमे थके ॥ त्वदास्य पीयूष मयूख लानात् ॥ ग्रहण करतु हवु माहानंद रसने माटे कठोर । तं महानंद रसं कगेर। हे देव माहरा सरीखा मनुषनु मन पथरथी पण ॥ ७ ॥ मस्मादृशां देव त दश्मतो पि ॥ ७ ॥ तुमारा थकी घणु दुःखे पामवा योग्य ते या वेगे हुं पाम्यो शुं ते केहेजे। त्वनः सुदुःप्राप्य मिदं मयाप्तं । रत्नत्रई जे ज्ञान दर्शन चारीत्र एत्रण रत्न घणा नव भ्रमण करतेथके। रत्नत्रयं नूरि नव भ्रमेण ॥ %3D - ।

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