Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 207
________________ - २०३ जे जणसे तथा गणसे तथा ते प्रांणी पांमसे शत्रुजयनी जात्रा जे सांजनसे। कस्यानु फल ॥२५॥ जो पढ गुण निसुणई। सोलह सित्तुंऊ जत्तफलं२५ ॥ इति श्री शत्रुजय लघुकल्प टबार्थ संपूर्ण ॥ ॥इति शत्रुजय लघुकल्प समाप्तः॥ ॥अथ नपगारी श्री रत्नागरसूरिजी क्रत॥ ॥ श्री रत्नाकर पचीसी॥ . मोक्षरूप लक्ष्मीवंत कल्याणने की नरना इंद्र ते चक्रवर्ती यादे देव मा करवानु घर। ना इंद्र ते चमरादोक तेमणे न म्याने चरणकमल जेहना हेवा।। श्रेयःश्रियां मंगल केलिसद्मः। नरेंद्र देवेंद्र नतां ध्रीपद्म॥ हे सर्व जाण हे सर्व जे चोत्री हे स्वामी घणोकाल जयवंता वर्तो स अतीशय ते नत्कृष्ट करी प्र हे ज्ञानकला नीधान ते केवलज्ञान धान । लीपनादी श्कला तेहनोनमार? सर्वज्ञ सर्वातिशय प्रधान। चिरंजय ज्ञानकला निधान हे जगत्रयाधार नर्व अधोत्री दुःखे वारवायोग संसार जन्म जरा च्चो तेत्रण लोकवासी जीवोने मरणरूप रोग वा वीकार ते वारवा || आधार हेक्रपावतार एटले दयावंत। हे वीतराग नाव वैद्य ॥ जगत्रयाधार क्रपावतार। दुर्वार संसार विकार वैद्य। हे बीतराग रागद्वेष रहीत नीजगुण लक्ष्मीवंत तुमारा वीषये वा तुम|| श्री वीतराग त्वयि मुग्धनावा। [यागे नोलेनावे।|| हे वीशेष जाम हे प्रजो वा ठाकोर वीनती करुंतुं कींचीत् वा लगार | द्विज्ञ प्रनो विज्ञपयामि किंचित् ॥२॥

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