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१३ अरे जीव प्रतीबोध पाम न मुझाइश। न परमाद करीश अरे पापी॥
रे जीव बुझि मामुश। मा पमाय करेसि रे पाव ॥ कीम परलोक गुरु वा मोहो नाजन वा वासण थाइश अजाणे टां दुःखनु।
॥१॥ किं परलोए गुरु दुक। नायणं होहिसि अयाण॥१॥ बुझ वा समझ रे जीव तुं। मा मुजीश जिनमत पण जाणीने ॥ ___ बुझसुरेजीव तुमं। मामुशसु जिणमयपि नाकणं ॥ जे कारण माटे फरीने ए जे सामग्री वा जोगवाइ दुर्लन जी जिनधर्म पांमवानी। वने ॥५॥ __ जरा पुणरवि एसा। सामग्गी दुलहा जीव ॥५॥ दुलर्न पांमवो डे वली श्री जिन हे जीव तु प्रमादनो आदर करे धर्म।
जे सुखनी इबाई करी॥ दुलहो पुणजिणधम्मो। तुम पमायायरो सुहे सीय॥ पण ते प्रमादथीतो दुःखे सहेवा तीवारे ताहरूं शुं थशे तेतो न योग्य वली नरकनां दुःख पामीश। जाणु हुँ॥५३॥
दुसहंच नरय दुवं। कह होहिसि तं नयाणामो॥३॥ अथीर जे सरीर ने थीर धर्म ने नीर्मल धर्म परवश देह स्वा मलसहीत सरीर। धीन धर्म ॥
अथिरेण थिरो समलेण।निम्मलो परवसेण साहीणो॥ एहवा सरीरे करी जीवारे धर्म तो शुं नही समाप्त वा परीपुर्ण ब्रही पांमे वा पमामे। थाय ॥ए॥
देहेण जश् विढप्प। धम्मो ता किं न पऊत्तं ॥४॥ जेम चिंतामणी जे रत्न पाम सुर्लन नहोय कोने थोमा वैनव
वालाने॥
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