Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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थावच्चाकुमर एकहजारथी शकमुनि एक मुनियो पण सिद्ध थया हजारथी पांचसेंथी सेलगमुनि एप्रमुख। तीम रामचंद्र मुनि ॥
थावच्चा सुय सेलंगाय। मुणिणोवि तह राममुणि। नरतजी ए बे दशरथ रा त्रणकोम साधु सहीत सिद्धि वस्या जाना पूत्र।
तेमने हुं वांदु शत्रुजा नपर ॥५॥ नरहो दसरहपुत्तो। सिघा वंदामि सेत्तुंजे ॥५॥ ए वादे बीजा पण घणा मु रूपनादिकना मोहोटा वंसमांहे निराज मोहने क्षय करीने। नपन्या ॥
अन्नेवि खवियमोहा । उसना विसाल वंस संनुश्रा॥ जे सिद्धपद पाम्या शत्रुजय नपर। ते मुनि असंख्याता प्रते हुं नमुनु ६
जेसिधा सेत्तुजे। तं नमह मुणि असंखिका ॥६॥ पचास जोजन प्रमाण। होतो हवो श्री शेव॒जो वीस्तारे मूले॥
पंनास जोयणाई। आसी सेतुंज विचमो मूले ॥ दश जोजन प्रमाणे सीखर तले। चत्वपणे आठ जोजननो ॥७॥
दसजोयण सिहरतले। उच्चत्तं जोयणा अ॥७॥ |जे पांमीइं फल अन्यतीर्थे । आकरा तपे तथा नत्कृष्ट शिलव्रते॥ । जं लहर अन्नति। नग्गेण तवेण बंनचरेण ॥ ते फल पांमीइं न्यमे क श्री विमलगिरिमां वसतां वा रेहेतां|| रीने तत्काल।
थकां ॥७॥ तं लहश् पयत्तेणं। सेत्तुंजगिरिम्मी निवसंते ॥७॥ जे कोमजणने जमामे पुंन्य। कांमीत वा वंडीत नोजने जमाने जे नर
जं कोमिएपुग्नं । कामिय आहार नोश्श्रा जेन॥ जे लहे वा पांमे तीहां ते एक नपवास करतां थकां फल पां

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