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अथ गौतमकुलक लिख्यते ॥ लोनीयापुरुष लक्ष्मी मेलववाने मूढपुरुष नर कांमनोगने विषे तत्पर हुई।
तत्पर हूइं॥ __ तुघानरा अनपरा हवंति। मूढानरा कामपरा हवंति॥ पंमितपुरुष क्षमा ते जे क्रोध मिश्रपुरुष पूर्वोक्त त्रणेवानां पिण जीतवाने तत्पर हुई। आचरे ते ॥१॥
बुघानरा पंतिपरा हवंति। मिस्सानरा तिन्निवि श्रायरंति तेज पंमित जे नर निवरत्या वि तेज साधू जे नर आग [॥२॥ रोधथी।
म आधारे आदरे चाले॥ ते पंमिया जे विरया विरोहे। ते साहुणोजे समयं चरंति॥ तेज शक्तिवंत जे नर नही तजे तेज बंधव मित्र जे नर कष्ट वा धर्म प्रते।
व्यसनमा पमेयापणा थाय।। ते सत्तिणो जे नचयंति धम्माते बंधवा जे वसणे हवंतिश क्रोधे करी अनीनूत आकुल ते अनीमानी नर सोकना परा नर न सुख पांमे।
नवने पांमे॥ कोहानिनूया न सुहं लहंति। माणंसीणो सोय पराहवंति कपटिनर थाय परना दास जेनर लोजीया मोहोटी इच्छावंत ते र वा चाकर। . तिजे स्याता न पांमे वा नर्के नपजे।।
मायाविणोडंति परस्स लुघा महिबा नरयं विंति॥३॥ क्रोधसमान कोइ विष न पेसा। अनीमान नपरांत कोइ वैरी न थी अमृत जीवदया नपरांत नथी। थी हीतकारीअप्रमादि जेवो नथी
कोहोविसं किं अमयं अहिंसा।माणो अरी किं हिय मप्प मायासमांन कोइ नय नथी सर लोनसमान कोई दुख [मा॥ ण संत्य समान नथी। नथी सुख संतोषसमांन नथी ।