Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 188
________________ २७३ वइनव लक्ष्मीए नीचे न थ न खेद करीइं निर्धनपणामां पिण॥|| |हंकार वा माचवु करीइं। विहवेवि न मच्चिऊ। न विसीऊ असंपयाए वि॥ प्रव्रतीजे शत्रु मीत्रइं सुख दुखे नहोय सारे माते योगे तो आपण समनावे राग द्वेष रहीतपणे। ने संताप ॥१६॥ वहिजार समनावे। नहोइ रण रण संतावो॥१६॥ वरणवीजे सेवकना गुण ते पाबल न कहीए दीकराना गुण न हने समक्ष। प्रतक्ष पाउल कहीए॥ वन्निऊ निच्चगुणो। न परुखं नय सुअस्स पच्चखं॥ स्त्री नारीनातो न प्रतक्ष न न नाश पांमे जेणे करी थापणु पाउल गुण कहीए। मोहोटापणु ॥१॥ महिलान नो नयाविहु। न नस्सए जेण माहप्पं॥१॥ बोलीए हीतकारी वचन। करीए वीनय देइए दांन ॥ जंपिऊ पित्र वयणं । किऊ विण दिए दाएं। कोइमां गुण जांणीए तो ते ए अमूल मंत्र सर्वने वश वा बाय गुण ग्रहण करीए। त करवानो डे ॥१॥ परगुण गहणं किऊ। अमूल मंतं वसीकरणं ॥१॥ प्रस्ताव वा नचीत अ सनमांन दीजे दुर्जन नीस्नेही नरने वसर आवे बोलतुं । पिण घणामां॥ पहावे जंपिऊ। सम्माणिऊ खलोवि बहुमशे॥ न तजीए नीजनु परनु विशे समस्त अर्थ तेम चाले तेना सिद्ध षपणु। थाय ॥१॥ नऊ स पर विसेसो। सयलबा तस्स सिशंति॥॥

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