Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
View full book text
________________
-
-
एम बत्रीसे गणसात। सर्वसहीत प्रासाद त्रीच्डालोकमां १ || । एवं बत्तीससया गुणसहि। जुआ तिरिअलोए॥१०॥ एम पूर्वेकह्यां ते त्रण लोक जे आउकोमा सत्तावन्नलाख५७॥ नई यधोत्रीच्छे एत्रणलोकमां।। __एवं तिहुअणमने। अम कोमी सत्तवन्न लकाई॥ बसेंने ब्यासी २० एटले ते शास्वतां जिननवन प्रते वांदुनु ७५७००२८। ॥२०॥
दोअसया बासीया। सासय जिणनवण वंदामि॥३॥ हवे त्रलोकमां जिनप्रतीमा ले तेरसेंकोमएटले१३७५६०००००० ते प्रतेके केहेडे साठलाख नव्या जिनबिंब नूवनपतिमां ॥ सीकोम ने।
सही लरका गुणनवर कोमि। तेरकोमि सय बिंबनवणेसु त्रणसे वीस एकांणु। हजारपद एकाणुने जोमज्यो ने
त्रणलाख एटले ३५१३२०एटला
जिनबिंब त्रीच्छेलोके ॥१॥ तिसय वीसा गनव। सहस लक तिगं तिरिअंश हवे वैमानीकमां जिनबिंब नपर बावनकोम चोराणु लाखने॥ केहे एकसोकोम नीधे। __ एगं कोमि सय खलु। बावन्ना कोमि चनणवश्लका॥ चुंधालीस हजार सातसेंने। साठ वैमानीक वा न लोकमां जिन
बिंबडे एटले १५२ए४४४७६०॥२॥ चन चत्त सहस सगसय। सन वेमाणि बिंबाणि ॥३॥ हवेत्रणनूवननां बिंबनी संख्या बेहेतालीसकोम ने अहावनला समुदाये केहेडे पन्नरसेकोमने। ख ने ॥ .
पनरस कोमि सया। दुचत्त कोमि अमवन्न लकाइं॥

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226