________________
२१ कोइने पण न प्रार्थना की कोइइं कांई पण प्रार्थना करी होय जीइं।
तो न जंग करीइं॥ कोविन अनबिऊ। किऊ कस्सवि न पत्रणा नंगो॥ दीन दयामणु वचन न बो जीवीजीइं जीहां सुधी या जीवलो लीजीइं।
कमां तीहां सुधी ॥७॥ दीणं नय जंपिऊ। जीविऊ जाव जिअलोए। आपणी न करीये प्रसंसा गु नंदीजे दुर्जनने पीण निश्चे न कोइ प्रवर्णव ।
काले पण ॥ अप्पा न पसंसिऊ३ । निंदिऊश् दुऊणोवि न कयावि॥ घणु घणु न हसीइं दुखनु मूल पामीजीइं मोटाइपणु तेम चा हासमोहनी ।
लतां ॥॥ ___ बहु बहुसो न हसिऊ। लन गुरुअत्तणं तेण।॥ वैरीनो न विश्वास वा जरूंसो कोइकाले पण ठगीइं नहीं विस करीइं।
वास राखे तेने ॥ रिनणो न वीससिऊ। कयावि वंचिजए न वीसबो॥ न करयागुणना लोपक थईइं। एप्रकारे न्यायमार्गनी रचना जा
एवी ॥१०॥ न कयग्घहिं हविऊ। एसो नायस्स नीसंदो॥१॥ राजी थईई नला गुण वा बांधीइं राग नही साचा सनेह नला गुणीने देखीने। रहीत नर साथे॥ __ रच्चिऊ सुगुणेसु। बस रागन नेह बनेसु॥ करीइं पात्रनी परीक्षा। दक्ष माह्याने एमज कसवटी हीम
परीक्षा पाषाण तुल्य डे ॥११॥ किऊ पत्त परिरका । दरकाण श्मोत्र कसवहो॥११॥