Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 178
________________ २७३ सो जय रन्नवासी। पमिबोहित्र सावय सहस्सो॥२॥ थरहरी वा कंपी प्रथवी जलहल्या समुद्र हाल्या समस्त कुलगि वा हालकल्लोल थया। री हीमवंतादी॥ थरहरिअधरं कलहलिय।सायरं चलिय सयल कुलसेलं जे करतो हुन जयवंतो वर संघनु कष्ट निवारण अर्थे कस्युं लाख तो श्री विमुकुमार मुनिस्वर। जोजननुं रूप ते तप, फल जणवू १५ | जमकासि जयं विरह। संघकए तं तवस्स फलं ॥२॥ शुं घणु वा बहूधा केहेबाथी जे कोइने पिण किहांइ कांई सुख वा जणवाथी। प्रते॥ __किं बहुणा नणिएणं । जंकस्सवि कहवि कबवि सुहाई॥ दिसे जुवन वा लोक ते तिहां तप तेज कारण निश्चे एटले सम मध्ये। स्त सुरखनु मुख्य हेतु तप तेज ॥२०॥ दीसंति नवणमझे। तब तवो कारणं चेव ॥३॥ इति तपसमुदाय संपूर्ण ॥ इति तपकुलक समाप्तं ॥ - हवे ते तपमां नाव मले तो निजराहेतु तप थाय माटे लगतुज नावकुलक लखीएबीए ॥ अथ नावकुलक लिख्यते॥ कमग्नांमे अज्ञान तप करीब बीहांमणु प्रलयकाल वा कल्पांत सुरदेव थयो तेथी कमठ असुर कालना सरी मेघन पांणी तेमां देव तेणे पुरववैरे रच्युं । बोलवा माटे॥ कमगसुरेण रश्यमि। नीसणे पलय तुल्न जल बोले॥

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