Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 169
________________ - हि रखा। १६४ नरकरूप नगरना बारणाने रुं कमामना जोमाना नाइ सरी धवाने। डे हेवु ने॥ नरय दुवार निरंजण। कवाम संपुम सहोअर हायं॥ देवलोकरूपी नजल घर तिहां। चमवाने सारी निसरणी समान सील २ ॥४॥ सुरलोअ धवल मंदिर। पारुहणे पवर निस्सेणि॥४॥ श्री नग्रसेन राजानी पुत्री। राजेमती पांमी सीलवंतीसतीमां हि रेखा समांन॥ सिरि नग्गसेण धूत्रा। रायमई लहन सीलवर रोहिं।। गिरी गुफा विवरमा रह्यो हेवो श्री नेमनाथनो नाई रहनेमी प्रते जेणीइं। थाप्यो संजम सील मार्गमां॥५॥|| गिरि विवर गन जीए। रहनेमी ठाविन मग्गे ॥५॥ प्रज्वलितो पिण निश्चे अग्नीनो सीलना महिमाए करी पांणीनो समूह ते। प्रवाह थयो॥ पऊलि विहु जलगो। सील पनावेण पाणियं हव॥ ते जयवंती वर्तो जगमां सी जेहनी प्रगट वा प्रसिद्ध बे जसनी ता श्री रामचंद्रनी स्त्री। पताका वा धजा ॥६॥ | सा जयजए सीा । जीसे पयमा जस पमाया॥६॥ चालणी व काढy पांणी ते जेणे नपामयां दरवाजानां बारणां णे करी चंपानगरीमा। त्रण ॥ | चालणि जलेण चंपाए। जी नग्घामियं दुवार तियं॥ ते वातथी केहनां न हरे चित ते चरित्र वा अवदात सती सुन प्रते अर्थात् हरे। द्रानुं ॥७॥ कस्स नहरेश चित्तं। तीय चरियं सुनहाए ॥७॥ -

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