Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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१६३ ए प्रकारे दांनसमूह फल समाप्तम् ॥
इति दानकुलक समाप्तम् ॥
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हवे संमंदे श्राव्युं ब्रह्मचर्य कुलक ते लखीएडीए॥
अथ सीलकुलक लिख्यते ॥ सोनाग्य गुणन मोहोटुं ए चरणे प्रणाम करूं श्री नेमिनाथ बा हवं निधान एहवाने। वीसमा जिनपतीने॥ | सोहग्ग महा निहिणो। पाए पणमामि नेमिजिण वणो। बालपणामां नुजाबले करी जनार्दन जे कमवासुदेव प्रते जेणे ने।
सहजमां जीत्यो॥१॥ बालेण नुअ बलेण। जणादणो जेण निऊिणिना॥ जीवोने सीलगुण तेज सील तेज जीवोने मंगलीक न नत्तम वा पवित्र धन । त्कृष्टुं ३ ॥
सीलं नत्तम वित्तं । सीलं जीवाण मंगलं परमं॥ सील २ ते दोजागीपणानुं सील डे ते सुखनुं पीहर घर वा सु हरणहार ।
ख समस्तनुं स्थानक ले ॥२॥ सीलं दोहग्ग हरं। सीलं सुकाण कुलनवणं ॥३॥ सील ते धर्मनो निघांन । सील ते पापनो खमणहार कह्यो
श्री तिर्थकर गणधरे॥ सीलं धम्म निहाणं। सीलं पावाण खंमणं नणियं॥ सील ते प्रांणीयोने जगने अक्रतीम अलंकार वा घरेणु श्रेष्ठ विषे जयतुं करणहार । बे ॥३॥
सीलं जंतूण जए। अकित्तिमं ममणं पवरं ॥३॥
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