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अहो आ संसारमाही वीधी स्त्रीरूपे करीने मांझी ने जाल वा| इं वा कर्मे वा वीध्यात्राई। स्कंद ॥
ही संसारे विहिणा। महिलारूवेण मंमीअंजालं॥ बंधाय ने जीहां वा जेह मनुष्य तीर्यच वैमानीक देव नुवनवा मां मूर्ख।
सी देव ॥ए॥ बसंति जब मूढा ।मणुषा तिरिा सुरा असुरा॥॥ वीषम वीषयरूप सर्प। जेणे मस्या वा करमया एहवा जीव
जवरूप वनमां॥ विसमा विसय नुअंगा।जेहिं मसिया जिवा नव वर्णमि क्लेश पांमे दुःखरूप अग्निई चोरासीलाख जीवाजोनीने वीषे करी।
॥१॥ ___ कीसंति दुहग्गीहिं। चुलसीई जोणि लखेसु ॥१॥ संसार मारग वा पंथ तेरूप तेहमां वीषयरूप मावे पवने लुक्या ग्रीस्म वा नस्नरुतु। जे जीव तेथी॥ ___ संसार चार गिम्हे । विसय कुवाएण लुकिया जीवा॥|| हीतकारी कार्य तथा अहीत अनुनवे वा जोगवे अनंता दुःख कारी कार्य नहीं जाता। प्रते ॥ए॥
हिय महिअंअमुणंता।अणुहवंति अणंत दुकाईएश हा हा इतीखेदे के दुःखे अंत वीषयरूप घोमा वीपरीत वा नलटा पामवा योग एहवा दुष्ट। सीक्षीत लोकमां ॥
हा हा दुरंत दुध। विसय तुरंगा कुसिखिया लोए॥॥ नयंकर नवरूप अटवीमा। पामे वा नांखे जीवो जे मूढ वा जो
ला लोकने ॥३॥ नीसण नवामविए। पाति जिप्राण मुघाणं ॥३॥