Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 420
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडशीतिप्रकरणम् ॥१९६॥ क्षीणमोहयोः प्रत्येक नवधा भवति, अष्टौ मनोवाचः औदारिककाययोगश्चेति ९ तथा सयोगिकेवलिनस्तु टीकाद्वयोयोगः सप्तधा भवति, पूर्वोक्तनवकमध्यान्मृषामिश्ररूपे मनोदये एवं वारद्वये चापनीते औदारिकमिश्रका- पेतम् ॥ मणे च क्षिप्ते सति । तथाऽयोगी तु प्रत्ययाभावादवन्धकः । अयमों गाथाभिरपि कथ्यते शिष्यानुग्रहार्थम्-"आहारगदुगहीणा, पणवन्ना होइ मिच्छदिद्विम्मि ५५ । सा मिच्छपणगहीणा, पन्नासा तह य सासाणे ५०॥१॥सा चउणंतकसाया ४, ओरालविउव्विमीसकम्मइगं । इय सत्तगेण रहिया, तेयाला मीसगुणठाणे ४३ ॥२॥ ओरालियवेउब्वियमीसदुगं तह य कम्मणसरीरं । एय तिगेणं सहिया, अविरयसंमंमि छायाला ४६ ॥३॥ ओरालमीसकम्मणचउघीयकसायतसअविरई य । इय सत्तगेण रहिया, इगुयाला देसविरइयंमि ३९॥४॥ तइयकसायचउकं, एक्कारस अविरई य मोसूण । आहारगदुगसहिया, पमत्तसाहुस्स छब्बीसा २६ ॥५॥ विउवाहारगमीसगरहिया चउवीस होइ अपमत्ते २४ । आहारगवेउब्वियहीणदुवीसा अपुवंमि २२॥६॥हासाइछक्करहिया, सोलस अनियहिबायरे होंति १६ । संजलणवेयतियतियरहिया इह होंति दस सुहमे १०॥७॥ उवसंते ९ तह खीणे ९, नव नव हेऊ य लोहपरिहीणा। दोमणदोवइरहिया, कम्मणओरालमीसजुया ॥८॥ एवं सत्त सजोगे७, एए सव्वे न हुंतऽजोगंमि । चउदस x ॥८ ॥ गुणठाणेसुं, पणवनिच्चाइ वक्खायं ॥९॥” इति गाथार्थः ॥७७॥ इत्युक्ता बन्धहेतवः । अधुना येषां कर्मणामेते बन्धहेतवस्तेभ्यस्तेषां बन्धं दर्शयन् संख्या विशिष्टानि तान्याह -- For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476