Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 447
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आइम्मि थावरचऊ, सुहुमतिगं उवरिमं भवे इत्थ । अथिराइछक्कमुवरिं, विवागभे अओ भणिमो ॥ १३३॥ तसनामुदए जीवो, बेइंदियमाइ जाइ जीवेसु । थावरनामुदए पुण, पुढवीमाईसु सो जाइ ॥ १३४ ॥ बायरनामुदएणं, वायरकाओ उ होइ सो नियमा। सुहुमेण सुहुमकाओ, अंतमुहुत्ताउओ होइ॥ १३५॥ आहारसरीरिंदियपज्जत्तीआणपाणभासमणे । चत्तारि पंच छप्पि य, एगिदियविगलसन्नीणं ॥ १३६॥ एयासिं निप्फत्ती, उदएणं जस्स होइ कम्मस्स । तं पजत्तं नाम, इयरुदए नत्थि निप्फत्ती ॥ १३७॥ इकिकयंमि जीवे, इकिकं जस्स होइ उदएणं । ओरालोद सरीरं, तं नाम होइ पत्तेयं ॥ १३८ ॥ जीवाणमणंताणं, इकं ओरालियं इह सरीरं । हवइ हुँ जस्सुदएणं, तं साहारं हेवइ नामं ॥ १३९ ॥ दंतहाइथिराणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं । निष्फत्ती उ सरीरे, जायइ तं होइ थिरनामं ॥ १४॥ जीहाभमुहाईणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं । निप्फत्ती उ सरीरे, जायइ तं अथिरनामं तु ॥ १४१॥ सिरमाईण सुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं । निप्फत्ती उ सरीरे, जायइ तं होइ सुभनामं ॥ १४२॥ पायाई असुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं । निप्फत्ती उ सरीरे, जायइ तं असुमनामं तु ॥ १४३॥ १ "विवागपेओ इमो भणिओ" "विवागभेओ इमो होइ" इति वा पाठः । २ "य"। ३ "ओरालियं सरी" इति । १ "य" ५ “भवे” इति ॥ CHECKASTROCHERE For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476