Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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क० ३८
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जीवाणमभचाणं, मिच्छत्तमणाइअनिहणं नेयं । भवियाणमिणमणाईसंतं पत्तंमि सम्मत्ते ॥ ११ ॥ सासाणं छावलियं, तुरियं तित्तीससागरा अहिया । पंचममह तेरसमं, देसूणा पुचकोडी य ॥ १२ ॥ चरिमं हुस्सपणक्खरउग्गिरणपमाणयं भवत्थाणं । सिद्धाणमणंतद्धं, अंतमुहुत्तंत सेसाणि ॥ १३ ॥ समओ उ जहन्नेणं, पमत्तसासणुवसंत मोहाणं । देससजोगिअसंजयमिच्छत्ताणं मुहुत्तो ॥ १४ ॥ अस्संखाउयतिरिया, विमाणिणो पढमपुढविनेरइया । मणुया य तिसम्मत्ता, बेयगउवसामगा सेसा ॥ १५ ॥ अप्पजत्तमणुस्सा, वेउचियमीस मीसदिट्ठी य । तह सुहुमसंपराया, परिहारियछेय चत्तारि ॥ १६ ॥
करण अनि, य बायरा तहुवसंतमोहा य । आहारग मीसो वि य, सासणदिट्ठी य भयणिज्जा ॥ १७ ॥ सामन्नेणं एवं सत्तावन्ना विसेसहेऊण । सा आहारदुगूणा, पणवन्ना मिच्छदिट्ठिस्स ॥ १८ ॥ मिच्छत्त पंचगूणा, सासणदिट्ठिस्स होइ पन्नासा । परलोगगमणविरहा, सम्मामिच्छस्स पुण एसा ॥ १९ ॥ ओराल मिस्स उच्चभिस्सकम्मणसरीरजोगेहिं । तह अणंताणुबंधीहिं विरहिया होह तेयाला ॥ २० ॥ पुत्तजोगजुत्ता, सचिय पुणरवि य मरणसभावा । अविरयसम्मद्दिट्टिस्स बंधहेऊण छायाला ॥ २१ ॥ ओरालमिस्सकम्मणजोगा तससंजमेहिं परिहीणा । बीयकसाएहिं चिय, विरयाविरयम्मि गुणचत्ता ॥ २२ ॥ अविरइमिकारसहा, पचक्खाणे य चइय तत्थेव । पक्खिवियाहारदुगं, पमत्तविरयस्स छवीसा ॥ २३ ॥
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