Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra षडशीति ॥ २० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिस्स आहारमिस्सवज्जाऽपमत्ति चडवीसा । वेउचियआहारगरहिया बाबीसऽपुत्रस्स ॥ २४ ॥ हासच्छकविमुक्का, सोलस अनियट्टिवायरस्स भवे । तिसंजलणवेयत्तियवज्जिया दस मुहुमरागस्स ॥ २५ ॥ लोभूणा नव उवसंतगस्स ते चेव खीणमोहस्त । चरमाइममणवइदुगकम्मुरलदुगं सजोगिस्स ॥ २६ ॥ अव य संताउगरहिया छम्मोहआउयविउत्ता । सायं एवं एवं चउरो ठाणाणि बंधस्स ॥ २७ ॥ अड सत्त मोहरहिया, चउरो विज्जाउनामगोया य । सत्ताए उदए चिय, तिन्नि य ठाणाणि पत्तेयं ॥ २८ ॥ अड सत्ताउ विणाऽणाउविज छ प्पण अमोहविज्जाउ । दो नामं गोयं तह, इय पंच उईरणा ठाणा ॥ २९ ॥ जीवस्स पुग्गलाण य, जुग्गाण परुप्परं अभेएणं । मिच्छाइहेउविहिया, जा घडणा इत्थ सो बंधो ॥ ३० ॥ करणेण सहावेण व, टिइवचए तेसिमुदयपत्ताणं । जं वेयणं विवागेण सो उ उदओ जिणाभिहिओ ॥ ३१ ॥ कम्माणं जाए, करणविसेसेण ठिइवचयभावे । जं उदयावलियाए, पवेसणमुदीरणा सेह ॥ ३२ ॥ वंधण संकमलद्धत्तलाहकम्मस्सरूवअविणासो । निज्जरणसंकमेहिं, सम्भावो जो य सा सत्ता ॥ ३३ ॥ atriyaणाय ओवट्टणा उईरणया । उवसामणा निहत्ती, निकायणा च त्ति करणाई ॥ ३४ ॥ बन्धनकरणं बन्ध एव ॥ पयइठिइरसपरसाणमन्नकम्मत्तणेण य ठियाणं । जं अन्नकम्मरूवत्तठावणं संकमो एसो ॥ ३५ ॥ For Private And Personal Use Only भाष्यम् । ॥ २० ॥

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