Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 451
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहम् ॥ 4% ॥ कर्मस्तवाख्यः द्वितीयः कर्मग्रन्थः॥ CAMERECCCC नमिऊण जिणवरिंदे, तिहुयणवरनाणदसणपईवे । बंधुदयसंतजुत्तं, वोच्छामि थयं निसामेह ॥१॥ मिच्छद्दिट्टी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठी य । अविरयसम्मद्दिट्टी, विरयाविरए पमत्ते य ॥२॥ तत्तो य अप्पमत्ते, नियट्टि अनियट्टिबायरे सुहुमे । उपसंत खीणमोहे, होइ सजोगी अजोगी य ॥३॥ मिच्छे सोलस पणुवीस सासणे अविरए य दस पयडी। चउछक्कमेग देसे, विरए य कमेण वोच्छिन्ना ॥४॥ दुग तीस चउर पुबे, पंच नियट्टिमि बंधवोच्छेओ । सोलस सुहुमसरागे, साय सजोगी जिणवरिंदे ॥५॥ पण नव इग सत्तरसं, अड पंच य चउर छक छ चेव । इग दुग सोलस तीसं, बारस उदए अजोगता ॥६॥ पण नव इग सत्तरसं, अट्ठट्ट य चउर छक छ चेव । इग दुग सोल गुयालं, उदीरणा होइ जोगंता ॥७॥ अणमिच्छमीससम्म, अविरयसम्माइअप्पमत्ता । सुरनरयतिरियआउं, निययभवे सघजीवाणं ॥८॥ सोलस अटेकेक, छक्केके केक खीणमनियट्टी। एगं सुहुमसरागे, खीणकसाए य सोलसगं ॥९॥ बावत्तरं दुचरिमे, तेरस चरिमे अजोगिणो खीणे । अडयालं पयडिसयं, खविय जिणं निबुयं वंदे ॥१०॥ ACING For Private And Personal Use Only

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