Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
क० ३७
www.kobatirth.org
॥ अर्हम् ॥
षडशीतिनामा चतुर्थः कर्मग्रन्थः ॥
निच्छिन्नमोहपासं, पसरियविमलोरु केवलप्यासं । पणयजणपूरियासं, पयओ पणमित्तु जिणपासं ॥ १ ॥ वोच्छामि जीवमग्गणगुणठाणुवओगजोगलेसाई । किंचि सुगुरूवएसा, सन्नाणसुझाणहेउ ति ॥ २ ॥ इह सुहुमवायरेगिंदिवितिचउअसन्निसन्निपंचिंदी । अपजत्ता पज्जत्ता, कमेण चउदस जियट्ठाणा ॥ ३ ॥ सबभणियचमूले तेसु गुणठाणगाइ ता भणिमो । पढमगुणा दो वायरबितिचउरअसन्नि अपजत्ते ॥ ४ ॥ सन्नि अपज्जत्ते मिच्छदिट्ठिसासाणअविरया तिन्नि । सधे सन्नि पजत्ते, मिच्छं सेसेसु सत्तसु वि ॥ ५ ॥ जोगा उस अप्पजत्तए कम्मइगउरलमिस्सा दो । वेउचियमीसजुया, सन्नि अपजत्तए तिन्नि ॥ ६ ॥ विंति अपज्जत्ताणव, तणुपज्जत्ताण केइ ओरालं । बायरपज्जत्ते तिन्नि उरल वेउचियदुगं च ॥ ७ ॥ उरलं सुहुमे चउसु य, भासजुयं पनरसावि सन्निम्मि । उवओगा दससु तओ, अचक्खुदंसणमनाणदुगं ॥ ८ ॥ चक्खुजुया चउरिंदियअसन्नि पज्जत्तएसु ते चउरो । मणनाणचक्खुकेवलदुगरहिया सन्नि अपजते ॥ ९ ॥ स सन्नि एत्तो, लेसाओ छावि दुविह सन्निमि । चउरो पढमा बायर, अपजत्ते तिन्नि सेसेसु ॥ १० ॥
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476