Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 462
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडशीतिनामा चतुर्थः कर्मग्रंथा। ॥१४॥ सत्तद्वअटरसत्तट्ठ३अटुट बंधुश्दयुरदीरणासंता ४। तेरससु जीवठाणेसु सन्निपजत्तए ओघो॥ ११ ॥ एत्तो गइइंदियकायजोयवेए कसायनाणेसु ७ । संजमदंसणलेसाभवसम्मे सन्निआहारे ॥ १२ ॥ सुरनरतिरिनरयगई, इगवितिचउरिंदिया य पंचिंदी। पुढवीआऊतेऊवाऊवणसइतसा काया ॥ १३ ॥ मणवइकाया जोगा, इत्थी पुरिसो नपुंसगो वेया। कोहो माणो माया, लोभो चउरो कसाय त्ति ॥१४॥ मइसुयओहीमणकेवलाणि मइसुयअनाणविन्भंगा । सामइयछेयपरिहारसुहुमअहखायदेसजयअजया ॥ १५ ॥ अचक्खुचक्खुओही, केवलदसणमओ य छल्लेसा । किण्हा नीला काऊ, तेऊ पम्हा य सुक्का य ॥ १६ ॥ भवअभवा खउवसमखइयउवसमियमीससासाणं । मिच्छो य सन्नसन्नी, आहारणहार इय भेया ॥ १७ ॥ सुरनिरए सन्निदुर्ग, नरेसु तइओ असन्निअपजत्तो । तिरियगईए चउदस, एगिदिसु आइमा चउरो ॥ १८ ॥ बितिचउरिंदिसु दो दो, अंतिम चउरो पार्णदिसु भवंति । थावरपणगे पढमा, चउरो चरमा दस तसेसु ॥१९॥ विगलतिअसन्निसन्नी, पजत्ता पंच होति बइजोगे। मणजोगे सन्निको, पुमित्थिवेए चरम चउरो ॥२०॥ काओगिनपुंसकसायमइसुयअनाणअविरयअचक्खू । आइतिलेसा भवियरमिच्छ आहारगे सवे ॥२१॥ मइसुयओहिदुगविभंगपम्हसुकासु तिसु य सम्मेसु । सन्निम्मि य दो ठाणा, सन्निअपजत्तपज्जत्ता ॥ २२ ॥ मणपजवकेवलदुगसंजयदेसजयमीसदिट्ठीसु । सन्नीपज्जो चक्खंमि तिन्नि छ व पजियर चरमा ॥ २३ ॥ M ॥१४॥ USEX For Private And Personal Use Only

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