Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 464
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडशीतिनामा चतुर्थः कमेग्रंथ ४ ॥१५॥ 5- HORORESEARCASE-5 एगिदिएसु पंच उ, कम्मइगविउवि उरलजुयलाणि । कम्मुरलदुगं अंतिमभासा विगलेसु चउरो ति ॥ ३७॥ कम्मुरलदुर्ग थावरकाए वाए विउविजुयलजुयं । पढमंतिममणवइदुगकम्मुरलदु केवलदुगंमि ॥ ३८॥ थीवेअन्नाणोवसमअजयसासण अभवमिच्छेसु । तेरस मणवइमणनाणछेयसामइयचक्खुसु य ॥ ३९ ॥ परिहारसुहुम्मे नव, उरलवइमणा ते सकम्मुरलमिस्सा । अहखाए सविउवा, मीसे देसे सविउविदुगा ॥४०॥ कम्मुरलविउविदुगाणि चरमभासा य छ उ असन्निम्मि । जोगा अकम्मगाहारगेसु कम्मणमणाहारे ॥४१॥ नाणं पंचविहं तह, अन्नाणतिगं ति अट्ट सागारा । चउदंसणमणगारा, वारस जियलक्खणुवओगा ॥४२॥ मणुयगईए बारस, मणकेवलदुरहिया नवन्नासु । थावरइगिबितिइंदिसु, अचक्खुदंसणमनाणदुगं ॥ ४३॥ चक्खुजुयं चउरिदिसु, तं चिय बारसपर्णिदितसकाए । जोए वेए सुक्काएँ भवसन्नीसु आहारे ॥४४॥ केवलदुगहीणा दस, कसायपणलेसचक्खुचक्खूसु । केवलदुगे नियदुर्ग, खइगे नव नो अनाणतिगं ॥४५॥ पढमचउनाणसंजमवेयगउवसमियओहिदंसेसु । नाणचउदसणतिगं, केवलदुजुयं अहक्खाए ॥ ४६ ॥ नाणतिगदंसणतिगं, देसे मीसे अनाणमीसं तं । केवलदुगमणपज्जववजा अस्संजयंमि नव ॥४७॥ अन्नाणतिगअभवे, सासणमिच्छे य पंच उवओगा।दो दसण तियनाणा, ते अविभंगा असन्निम्मि ॥४८॥ मणनाणचक्खुरहिया, दस उ अणाहारगेसु उवओगा । इय गइयाइसु नयमयनाणत्तमिणं तु जोगेसु ॥४९॥ RARE ॥१५॥ । For Private And Personal Use Only

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