Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
5454545454
मायं चिय अनियट्टीभागं गंतूण संतवोच्छेओ। लोहं चिय संजलणं, सुहुमकसायंमि वोच्छिन्ना ॥ १९॥ खीणकसाय दुचरिमे, निदं पयलं च हणइ छउमत्थो । नाणंतरायदसगं, दंसण चत्तारि चरिमंमि ॥ ५० ॥ देवदुग पणसरीरं, पंचसरीरस्स बंधणं चेव । पंचेव य संघाया, संठाणा तह य छकं च ॥५१॥ तिन्नि य अंगोवंगा, संघयणं तह य होइ छकं च । पंचेव य वण्णरसा, दो गंधा अट्ट फासा य ॥ ५२ ॥ अगुरुयलहुयचउकं, विहायगइदुग थिराथिरं चेव । सुहसुस्सरजुयला वि य, पत्तेयं दूभगं अजसं ॥ ५३॥ अणएजं निमिणं चिय, अपजत्तं तह य नीयगोयं च । अन्नयरवेयणियं, अजोगिदुचरमंमि वोच्छिण्णा ॥ ५४॥ अन्नयरवेयणीयं, मणुयाऊ मणुयदुवय बोद्धबा । पंचिंदियजाई विय, तस सुभगाएज पजत्तं ॥ ५५॥ बायर जसकित्ती विय, तित्थयरं उच्चगोययं चेव । एया तेरस पयडी, अजोगिचरिमंमि वोच्छिन्ना।५६। सत्ता सम्मत्ता॥ सो मे तिहुयणमहिओ, सिद्धो बुद्धो निरंजणो निचो। दिसउ वरनाणलंभ, सणसुद्धिं समाहिं च ॥ ५७॥
REDEOCHOOkokokokoNOKAROKrikOMECHECKOHORONOKANANELFIERIENDME..* ANOKOKOKOKHADKODADKOKONKADEOHDHONOK KOCKOOKGEN
*
॥ इति कर्मस्तवाख्यो द्वितीयः कर्मग्रन्थः समाप्तः॥
CHIKEKOKAREKAREDEEMEDNEWSHINDEDEODEHEAVESHEKKAKKARENDER GESHKKkkakkakk0-40EEEEEK000
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476