Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 437
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जह रन्नो पडिहारो, अणभिप्पेयस्स सो उ लोगस्स । रणो तहिँ दरिसावं, न देइ दडे पि कामस्स ॥ २०॥ जह राया तह जीवो, पडिहारसमं तु दसणावरणं । तेणिह विबंधएणं, न पिच्छए सो घडाईयं ॥ २१॥ निद्दापणगं तत्थ उ, चउभेया सणस्स आवरणे । सुहपडिबोहो' निदा, बीया पुण निनिद्दा य ॥२२॥ सा दुक्खबोहणीया, पयला पुण जा ठियस्स उद्धाइ। पयलापयल चउत्थी, तीए उदओ उ चंकमणे ॥२३॥ थीणद्धी पुण दिणचिंतियस्स अत्थस्स साहणी पायं । सा संकिलिटुकम्मस्स उदयओ होइ नियमेणं ॥ २४ ॥ निद्दापणगं एयं, चक्खू आवरइ चक्खुआवरणं । सेसिंदियआवरणं, होइ अचक्खुस्स आवरणं ॥ २५ ॥ सामन्नुवोगं जं, बरेइ तं ओहिदसणावरणं । केवलसामन्नं जं, वरेइ तं केवलस्स भवे ॥ २६ ॥ भणियं दंसणवरणं, तइयं कम्मं तु होइ बेयणियं । तं असिधारासरिसं, जह होइ तहा निसामेह ॥ २७॥ महुलित्तनिसियकरवालधारजीहाइ जॉरिसं लिहणं । तारिसयं वेयणियं, सुहदुहउप्पायगं मुणह ॥ २८॥ महुआसायणसरिसो, सायावेयस्स होइ हु विवागो । जं असिणा तहि छिजइ, सो उ विवागो असायस्स ॥२९॥ ऐयं सुहदुक्खकरं, चउगइमावन्नयाण जीवाणं । सामनेणं भणिमो, सुहदुक्खं दुसु दुसु गईसु ॥ ३०॥ देवेसु य मणुएसु य, तत्थ विसिढेसु कामभोगेसु । जं उवभुंजइ जीवो, सो उ विवागो उ सायस्स ॥ ३१ ॥ १ "पडाई" ।२ "सुहपडिबोहा"। ३ “निद्दनिद्दत्ति"। ४ "जारिसय लिहणं” इति । ५“एवं” इत्यपि । ६"तहिँ भुंजइ" इत्यपि । ७“य” इति । क.१५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476