Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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जह रन्नो पडिहारो, अणभिप्पेयस्स सो उ लोगस्स । रणो तहिँ दरिसावं, न देइ दडे पि कामस्स ॥ २०॥ जह राया तह जीवो, पडिहारसमं तु दसणावरणं । तेणिह विबंधएणं, न पिच्छए सो घडाईयं ॥ २१॥ निद्दापणगं तत्थ उ, चउभेया सणस्स आवरणे । सुहपडिबोहो' निदा, बीया पुण निनिद्दा य ॥२२॥ सा दुक्खबोहणीया, पयला पुण जा ठियस्स उद्धाइ। पयलापयल चउत्थी, तीए उदओ उ चंकमणे ॥२३॥ थीणद्धी पुण दिणचिंतियस्स अत्थस्स साहणी पायं । सा संकिलिटुकम्मस्स उदयओ होइ नियमेणं ॥ २४ ॥ निद्दापणगं एयं, चक्खू आवरइ चक्खुआवरणं । सेसिंदियआवरणं, होइ अचक्खुस्स आवरणं ॥ २५ ॥ सामन्नुवोगं जं, बरेइ तं ओहिदसणावरणं । केवलसामन्नं जं, वरेइ तं केवलस्स भवे ॥ २६ ॥ भणियं दंसणवरणं, तइयं कम्मं तु होइ बेयणियं । तं असिधारासरिसं, जह होइ तहा निसामेह ॥ २७॥ महुलित्तनिसियकरवालधारजीहाइ जॉरिसं लिहणं । तारिसयं वेयणियं, सुहदुहउप्पायगं मुणह ॥ २८॥ महुआसायणसरिसो, सायावेयस्स होइ हु विवागो । जं असिणा तहि छिजइ, सो उ विवागो असायस्स ॥२९॥ ऐयं सुहदुक्खकरं, चउगइमावन्नयाण जीवाणं । सामनेणं भणिमो, सुहदुक्खं दुसु दुसु गईसु ॥ ३०॥
देवेसु य मणुएसु य, तत्थ विसिढेसु कामभोगेसु । जं उवभुंजइ जीवो, सो उ विवागो उ सायस्स ॥ ३१ ॥ १ "पडाई" ।२ "सुहपडिबोहा"। ३ “निद्दनिद्दत्ति"। ४ "जारिसय लिहणं” इति । ५“एवं” इत्यपि । ६"तहिँ भुंजइ" इत्यपि । ७“य” इति ।
क.१५
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