Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहम् ॥ श्वेताम्बरापण्यश्रीमगर्गमहर्षिविरचितः कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः। ववगयकम्मकलंक, वीरं नमिऊण कम्मगइकुसलं । वोच्छं कम्मविवागं, गुरूवइट समासेणं ॥१॥ कीरइ जओ जिएणं, मिच्छत्ताईहिं चउगइगएणं । तेणिह भण्णइ कम्मं, अणाइयं तं पवाहेणं ॥२॥ तस्स उ चउरो भेया, पगईमाईउ हुंति नायचा। मोयगदिटुंतणं, पगईभेओ इमो होई॥३॥ मूलपयडीउ अट्ट उ, उत्तरपयडीण अट्ठवन्नसयं । तासि सभावभेया, हुंति हु भेया इमे सुणह ॥४॥ पढमं नाणावरणं, बीयं पुण दंसणस्स आवरणं । तइयं च वेयणीयं, तहा चउत्थं च मोहणियं ॥५॥ आऊ नाम गोयं, अट्ठमयं अंतराइयं होइ । मूलपयडीउ एया, उत्तरपयडीउ कित्तेमि ॥६॥ पंचविहनाणवरणं, नव भेया दंसणस्स दो वेए । अट्ठावीसं मोहे, चत्तारि ये आउए हुंति ॥ ७॥ नामे तिउत्तरसयं, दो गोए अंतराइए पंच । एएसिं भेयाणं, होई विवागो इमो सुणह ॥ ८॥ १ "सुणह"इत्यपि पाठः । २ "पुण होइ दंसणावरणं"।३ “आउ य नाम"। *"चरिमं पुण अंत-" "उ' ।५ "हुंति हु भेया इमे सुणह" ACANCARBARICROCAXIRRORG For Private And Personal Use Only

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