Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ हण करूं ? गुरु कहे ‘करेह' श्छ कहीने मुहपत्ति विगेरे पांच वाना पमिलेहवा. (*मुहपत्ति ५० बोलथी, चरवलो १० बोलथी, कटासणुं २५ बोलथी, 'सूत्रनो कंदोरो १० बोलथी अने धोतियुं श्५ बोलथी पमिलेहवं.) पनी खमासमण दक्ष, श्छकारी जगवन् पसाय करी पमिलेहणा पमिलेहावो जी. गुरु कहे पमिलेह. एम कही वमीलनुं अणपमिलेर्दा एक वस्त्र (उत्तरासंग) पमिलेहवं. पठी खमा० का उपधि मुहपत्ति पमिलेहुं ? गुरु कहे पमिलेह श्वं कही मुहपत्ति पमिलेहवी. पड़ी खमाण श्छा उपधि संदिसाहुं ? श्छ खमा श्वा० उपधि पमिलेहुँ ? श्वं कहीने पूर्वे पमिलेहतां बाकी रहेल उतरासंग, मा करवा ज. वानुं वस्त्र अने रात्रीपोसह करवो होय तो कामली विगेरे २५-२५ बोलथी पमिलेहवा. पनी एक जणे दंमासन जाची लेवं तेने पमिलेही, रिया वही पमिकमीने काजो लेवो. काजो शुद्ध करीने * मुहपत्तिना ५० बोल पाछळ लख्या छे. ओछा बोल होय त्यां ते ५० माहेना प्रथमना ग्रहण करवा. __ + पोसहमां आभूषण पहेरवा न जोइये. कंदोरो सूत्रनो जोइये. ते छोडी, पडिलेही, पाछो बांधीने ते संबंधना इरियावही तेज बलत पडिकमवा. (एम बंने टंकनी पडिलेहणमां समजबु.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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