Book Title: Paushadh Vidhi
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 68
________________ ( ६६ ) चलावा श्राव्य तिहां ॥ मुनिराय सुव्रत तो अंगे वेदना कीधी जीहां ॥ ७ ॥ समताधर रे निश्चल मेरु परें रह्यो । सुर परीषद रे थीर यइ निश्चल सह्यो । न वीलोपे रे मौन सुव्रत मुनी राजी ॥ उषधपण रे सुर दाख्यो पण नव की ॥ ० ॥ नवी कीर्ड उषध रोग देतें सुरति कोपें चढ्यो || पाटु प्रहारे यो त्यारे मिथ्यात्व मति पापें मढ्यो । कृषि क्षपक श्रेणी चढीयो केवल नाणं लही मुगती गयो ॥ ए ढाल बीजी कांती जगतां सकल सुखमंगल थयो ॥ ८ ॥ ॥ ढाल ॥ त्रीजी ॥ सीता हो प्रिया सीतारा परजात ॥ सीता कहे सुण सारथीजी ॥ ए देशी ॥ जाखी हो जिन जाखी नेमि जिद || एणी परे हो जिन एणी परे सुव्रतनी कथा जी ॥ सर्द हो जिन सर्दहे कृष्ण नरिंद ॥ बेद नहीं जब बेदन जवजयनी वृथा जी ॥ १ ॥ प खदा हो जिन परखदा लोक तीवरे ॥ जावें हो तीहां जावे अग्यारश उचरेजी ॥ तेहथी हो एम तेहथी जवीक पार ॥ सहेजे जव सायर तरे जी ॥ २ ॥ तारक हो जिन तारक जवथी तार ॥ मुकने हो प्रभु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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