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अनुक्रमणिका. विषय.
पृष्ट विषय. पौषधविधि .... १ सामायिकनाबत्री० ३४ पोसहलेवानीविधि ५ प्रजातनांपञ्चरकाण. ३७ पडिलेहणनीविधि ६ सांऊनांपञ्चरकाण. ४० गमणागमणे .... पञ्चकाणपारवानी ४१ देववांदवानीविधि. पंचतीर्थयोयो. .... ४५ मन्ह जिणाणंनी स० ए प्रजाती स्तवन. ४३ पञ्च पारवानीविधि. १२ सिझाचलस्तवन. ४४ पोसहपारवानीविण १० दिवालीनुं स्तवन. ४५ सागरचंदो. .... १७ दिवाली- स्तवन. ४५ संथारा पोरिसी. २३ चौद मार्गणानां नाम स्थंडिलजवानी विधि. २७ उत्तर नेदसहित. ४७ माथेकाम तीराख० २७ बत्रीश अनंत कायनां अचित्तणीनाकाल. २०
नाम. ४ए परचुरण समजुती. २ए बावीशअनदयनांग ४ पोसहमोजोश्तांउप० ३० आयुर्जाव. .... ५० मुहपत्तीनापचाशण ३१ जिनमंदिरनी चोरयाशी पोसहनोटाढारदोष ३५ आशातनानां नाम. ५१ पोसहसंबंधीपांच ३४ सात नयनां नाम. ५४
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विषय. पृष्ट. विषय..
पृष्ट चार निदेपना नाम. ५४ सिझनाएकत्रीशगुण.५७ चार कारणनां नाम. ५४ सातजयनानाम .... ५७ आठ मदनां नाम. ५४ संसारी जीवनां सात अष्ट मंगलिकनां ना० ५५ मोटां सुख. ५७ श्रावकनाबारव्रतनां दर्शननां नाम. ५७
_ नाम. ५५ सात नयनां नाम. ५७ चौदगुणगणानांनाम.५५ ब जापानां नाम. ५७ संमूर्बिम मनुष्यनां उप- चक्रवर्तीनां चौदरत्न.५७ जवानां चौद स्थान०५६ चार थोश्नो जोडो. ५॥ साधूनांसत्तावीशगुण ५६ अग्यारशनुं स्तवन. ६० त्रीशअकर्मभूमीनां अंतरिदपार्श्वनाथ ।
__नाम, ५६ स्तवन मोहनमुने पंदरकर्मभूमीनांना ५७ पर्युषण स्तवन । ६ए
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नमः श्रीसर्वज्ञाय । अथश्री पौषधविधि प्रारंभः ।
धर्मनी पुष्टिने जे धारण करे तेने “ पौषध" कहीए. श्रावकना बार व्रतमां ए अग्यारमुं व्रत बे. अष्टमी, चतुर्दशी विगेरे पर्व तिथीने दीवसे ए व्रत चार पहोरनुं अथवा आठ पहोरनुं करवामां आवे छे. एना मुख्य चार भेद . १ आहारपोसह, ५ शरीरसत्कारपोसह ३ ब्रह्मचर्यपोसह अने ४ अव्यापारपोसह. १ आहारपोसह-उपवास विगेरे तप करवो ते. २ शरीरसत्कारपोसह-शरीरनी स्नान विले. पनादी वसे विभूषा, सत्कार न करवो ते ३ ब्रह्मचर्यपोसह-शील पालवू ते अने ४ अव्यापार पोसह-सर्व सावद्य व्यापारनों त्याग करवो ते. श्रा चारे प्रकारना पोसहना देशथी अने सर्वथी एम बे बे जेद थता मुख्य आठ नेद थाय ने, अने संयोगी जेद ७ थाय . परंतु पूर्वाचार्यनी परंपरायें हालमा मात्र आहारपोसहज देशथी अने सर्वथी करवामां आवे बे. बाकीना त्रण प्रकारना
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पोसह तो सर्वथीज थइ शके ले. श्राहारपोसहमां चविहार उपवास करवो ते सर्वथी अने तिविहार उपवास, आयंबिल, नीवी, एकास' कर, ते देशथी समजवो. मात्र रात्रीना चार पहोरनुं पोसह करनारे पण दिवसे एमांगें कांश पण व्रत करेलु होवू जोशए एवो नियम . ___ पोसह करवाने श्छनारें प्रजातमां वहेला ऊठीने राश्पमिकमपुं जरूर करवू जोशए. विधिना जाण श्रावको तो पमिलेंहण श्रने देववंदन पण ते साथेज करे ले. त्यार पड़ी जिनमंदिरनी जोगवा होय तो जिनपूजा करीने पड़ी उपाश्रये श्रावी गुरुसमद पोसह ऊच्चारवो. तेमां प्रथम पमिलेहण न करनारे या प्रमाणे विधि करवी.
पोसह लेवानी विधि. प्रथम खमासमण दक्ष, प्रगट "लोगस्स" कहेवा पर्यंत शरियावहि पमिकमी, “श्लाकारेण संदिसह भगवन् पोसह मुहपत्ती पमिलेहुं ? ". एम बोले, गुरु 'पमिलेहे ' एम आदेश आपे एटले * आ प्रमाणें बीजे ठेकाणे पण मुरुना योग्य आदेश जाणी लेवा.
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'छ' कहीने मुहपत्ति पमिलेहवी. पठी *खमा०
श्या पोसह संदिसाहुं ? श्वं कहीं खमासमण दश् श्छा० पोसह गलं? एम केहq. 'गय' एम गुरु कहे, त्यारे “छ” कही बे हाथ जोमी नवकार गणी, “ इनकारी जगवन् पसाय करी पोसहदंमक उच्चरावो जी” एम कहे, एटले गुरु पोसहदंगक नीचे प्रमाणे उच्चरावे. ___“ करेमि नंते पोसहं, आहारपोसहं देसओ (स. वो ) सरीरसकारपोसहं सवओ । बंजचेरपोसहं सवयो । अबावारपोसहं सबथो । चविहे पोसहं गमि । जाव दिवसं (अहोरत्तं ) पखवासामि । मुविहं तिविहेणं । मणेणं वायाए कारणं । न करेमि न कारवेमि । तस्स जंते पमिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥"
* खमा० खमासमण देवू. + इच्छा० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् कहे.
1 चार पहोरनो दिवसनो करनारने माटे 'जाव दिवसंकहेवू, आठ पहोरनो करनारने माटे 'जाव अहोरत्तं' कहेछु, रात्रीना चार पहोरवालाने 'जाव शेषदिवसं रत्तं ' कहे, अने दिवसनो चार पहोरनो करनारज रात्रीनो चार पहोरनो पण करे तो कोठी सहित के मारे 'भाष महार' कहे,
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पड़ी खमासमण दश् श्वा सामायिक मुहपत्ति पमिलेहुं ? गुरुकहे 'पमिलेहे ' त्यारे श्वं कही मुहपत्ति पमिलेहीने, खमाण श्वा० सामायिक संदिसाहुं ? गुरु कहे 'संदिसावेह' श्लं. खमाण श्वा सामायिक गलं ? गुरु कहे गय' त्यारे श्छ कही बे हाथ जोमी नवकार गणी श्छकारी नगवन् पसाय करी सामायिकदमक उच्चरावोजी. गुरु — करेमि ते सामाश्यं-'नो पाठ कहे. तेमां एटलो विशेष जे 'जावनियम-'ने ठेकाणे जाव पोसहं कहेवू. पडी खमाण दर श्वा बेसणे संदिसाहुं ? गुरु कहे ' संदिसावेह ' श्वं. खमाण श्छा बेसणे गउं? श्छ. खमाण श्छा सफाय संदिसाहुं ? गुरु कहे संदिसावेह, खं० खमा० श्वा० सजाय करूं ? गुरु कहें 'करेह' श्वं कही, त्रण नवकार गणवा. पली खमा० श्वा० बहुवेल संदिसाहुं ? गुरु कहे 'संदिसावेह' श्वं खमा श्वा बहुवेल करशुं. गुरु कहे 'करजो' पनी पमिकमणुं न कर्यु होय तो पमिकमणुं करवू. पमिकमणुं करथा पडी रिआवही पमिकमीने पमिलेहणना आदेश मागवा. पमिकमj कर्यु होय तो पमिलेहण करवी. खमा० खार पमिले.
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हण करूं ? गुरु कहे ‘करेह' श्छ कहीने मुहपत्ति विगेरे पांच वाना पमिलेहवा. (*मुहपत्ति ५० बोलथी, चरवलो १० बोलथी, कटासणुं २५ बोलथी, 'सूत्रनो कंदोरो १० बोलथी अने धोतियुं श्५ बोलथी पमिलेहवं.) पनी खमासमण दक्ष, श्छकारी जगवन् पसाय करी पमिलेहणा पमिलेहावो जी. गुरु कहे पमिलेह. एम कही वमीलनुं अणपमिलेर्दा एक वस्त्र (उत्तरासंग) पमिलेहवं. पठी खमा० का उपधि मुहपत्ति पमिलेहुं ? गुरु कहे पमिलेह श्वं कही मुहपत्ति पमिलेहवी. पड़ी खमाण श्छा उपधि संदिसाहुं ? श्छ खमा श्वा० उपधि पमिलेहुँ ? श्वं कहीने पूर्वे पमिलेहतां बाकी रहेल उतरासंग, मा करवा ज. वानुं वस्त्र अने रात्रीपोसह करवो होय तो कामली विगेरे २५-२५ बोलथी पमिलेहवा. पनी एक जणे दंमासन जाची लेवं तेने पमिलेही, रिया वही पमिकमीने काजो लेवो. काजो शुद्ध करीने
* मुहपत्तिना ५० बोल पाछळ लख्या छे. ओछा बोल होय त्यां ते ५० माहेना प्रथमना ग्रहण करवा. __ + पोसहमां आभूषण पहेरवा न जोइये. कंदोरो सूत्रनो जोइये. ते छोडी, पडिलेही, पाछो बांधीने ते संबंधना इरियावही तेज बलत पडिकमवा. (एम बंने टंकनी पडिलेहणमां समजबु.)
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"
( ६ ) एटले* तपासीने त्याज स्थापनाचार्यनी सन्मुख - are बेसीने इरियावही पकिमना पछी काजो यथायोग्य स्थानके 'अणुजाह जस्सग्गो कहीने परववो परवव्यापीत्रण वार वोसिरे कहेवुं. पबी मूल स्थानके चावीने सौ साथे देव वांदे ने सकाय करे.
"
केलीएक खत पोसह लीधा गाउ पहिलेहा करवामां आवे छे तो तेनी विधि या प्रमाणेपमिलेहानी विधि.
प्रथम इरियावही पकिमीने खमासमण द इछा० पमिलेहण करूं ? इवं कही मुहपत्ति, कटासपुं, चरवलो तथा सघला वस्त्रनी एक साथ पूर्वे कला तेटला बोलथी मिलेह करे. पबी दंगासन जाची, पमिले ही+, काजोल, शुद्ध करी. त्यांज इरियाही पकिमीने विधिपूर्वक परठववो. अने काजामा सचित्त एकेंद्री नीकले तो गुरु पासे आलोयण लेवी. त्रस जीव नीकले तो यतना करवी.
*
+ प्रथम पडिलेहण करनारे काजो लीघा अगाउ अहीं इरिया वही न पडिकमवा.
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त्यार पठी पूर्वोक्त विधिये पोसह लेवो, पण तेमां पमिलेहण न करवी, अने काजो न लेवो. डेवटे विधि करतां जे कांश अविधि थप होय तेनो 'मिछामि मुकर्म दश्ने देव वांदवा, अने सफाय करवी.
प्रथम जणाव्या प्रमाणे प्रातःकाले राममिकमणुं करबुज जोइए, पण कोश्नाथी बनी शक्यु न होय तो तेणें पमिलेहण करी, पोसह लश्ने, देव वांद्या अगाउ प्रतिक्रमण करवू. तेमा प्रथम रियावही पमिकमीने ( मुहपत्ति पमिलेंहवा विगेरे क्रिया करया विना ) खमासमण दर, आदेश मागीने, कुसुमिणनो काउसग्ग करवो, अने आगल सात लाख अढार पापस्थानकने बदले. श्वा० गमणागमणे आलो ? छ कहीने गमणागमणे कहेवा.
गमणागमणे. समिति, जापासमिति, एषणासमिति, श्रादाननंममत्तनिखेवणासमिति, पारिष्ठापनिकासमिति, ए पांच समिति, मनगुप्ति; वचनगुप्ति. कायगुप्ति ए त्रण गुप्ति, अष्ट प्रवचन माता; श्रावक तणे धर्मे, सामायक पोसह लीधे, रूमीपरे पाली नही, खंमन
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( 2 )
विराधना थइ होय, तें सवी हुं मन वचन कायाए करी मिठामि कुक्कमं. बेवटे भगवानादि वंदन करया अगाज खमा० इछा० बहुवेल संदिसाहुं ? छं. खमा० वा० बहुवेल कर ? छं कही नग वानादि वांदीने जेसु कहेवुं. यहीं सुधीनी विधि करवी.
त्यार पी सौनी साथै देव वांदवा तेनी विधि या प्रमाणें देव वांदवानी विधि.
प्रथम खमासमण दई, इरियावदी पक्किमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करीने प्रगट लोगस्स कही, उत्तरासंग नाखीने खमा० वा० चैत्यवंदन करूं 'करेह' छं कही चैत्यवंदन करी नमुथ्थुणं अने जयवीयराय ' याजवमखंमा' सूधी कही खमा० दइ चैत्यवंदन करी नमुथ्थुणं कहीं यावत् चार थोइयो कहेवी. वली नमुथ्थुणं कहीने बीजीवार चार थोश्यो कहेवी. पढी नमुथ्थुणं कही वे जावंती० कही उवसग्गहरं अथवा बीजुं स्तवन कहेवुं,
जयवीराय रधा (या जवमखंमा सूधी ) कहेवा. पढी खमा० दइ चैत्यवंदन करी, नमुथ्थुणं
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(ए) कहीने जयवीयराय संपूर्ण कहेवा. त्यार पढी विधि करतां विधि थइ होय तेनो मिठामिकुक्कुमं दईने प्रजातना देववंदनमां बेवटे सजाय कहेवी. ( बपोरे तथा सांजे न कहेवी . ) ते सकायने माटे एक खमा० दइ इछा० सजाय करूं ? श्छं कही नवकार गणीने उनक पगे बेसी एक जण मन्हजिणानी सजाय कहे.
श्री मन्हजिणांनी सझाय.
मन्द जिलाणं आणं, मित्रं परिहरधरसमत्तं ॥ विहावस्सयंमि, उज्जुत्तो होइ पदिवसं ॥ १ ॥ पसु पोसहवयं, दाणं सीलं तवो जावो ॥ सप्लायनमुक्कारो, परोवयारो जयणा ॥ २ ॥ जिपूया जिणथुणणं, गुरुथु साह म्मित्राणवचनं ॥ ववहारस्स य सुद्धी, रहजुत्ता तिबजुत्ताय ॥ ३॥ जवसम विवेक संवर, जासासमिई बजीवकरुणा य ॥ धम्मसंसग्गो करणदमों चरणपरिणामो ॥ ४ ॥ संघोवरि बहुमाणो पुछयलिहणं पजावणा तिछे || सद्गुाण किञ्चमेां, निच्चं सुगुरूवएसेणं ॥ ५ ॥ हवे व घी दिवस चढया पी पोरिसी भणा
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( १० ) ववी तेनी विधि. प्रथम खमा० वा० बहु परिपुन्ना पोरिसी ? गुरु कहे तहत्ति. इवं कही बीजुं खमा० दइ इरियावदी पमिकमधा, पढी खमा० द श्वा० पमिलेहण करूं ? इयं कहीने मुहपत्ति मिलेहवी.
त्यारपढी गुरु होय तो तेमनी समक्ष "राइमुहपत्ति मिलेहवी. तेनी विधि या प्रमाणे
प्रथम खमा० द, इरियावदी पकिमी, खमा० द छा० राइमुहपत्ति पकिलेहुं ? इछं कही मुहपत्ति पमिलेहवी, पढी वे वांदणा देवा. पती छा० राज्ञ्यं आलोटं ? छं कही तेनो पाठ कहेवो. पबी सवस्सवि राज्यं० कहीने पंन्यास होय तो बे वांदणा देवा. पंन्यास न होय तो एक खमासमणज देवुं. पढी छकारी सुहरा० कहीने पुट्ठोहं खमावj. वे वादणा देवा. पढी इछकारी जगवन् पसाय करी पञ्चरकाणनो आदेश देजो जी. एम कहीने पच्चखाण कर. (लेवुं.)
अ.
पठी सर्व मुनिराजने वे खमासमण, श्छकारी तथाहिंना पाठपूर्वक वंदन कर.
*
आ विधि गुरुनी समक्ष राइप्रतिक्रमण कर्यु होय तेने करवानी नथी.
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( ११ ) त्यारपढी लघुनीति करवा जवा सारु पुंजणी
अने चित्त जलनी याचना करवी.
ज्यारे ज्यारे उपात्रणवार ' श्रावकरतां त्रणवार
मात्रं करवा परिलेही अथवा श्रयमांथी बहार जवुं पमे त्यारे सही' कहेवी ने अंदर प्रवेश 'निसिही' कहेवी.
मात्रं करवा जनारें प्रथम मात्रं करवा जवानुं वस्त्र पहेरी, कुंमी जोइने लेवी. तेमां मात्रं करीने परववानी जग्याए प्रथम कुंमी नीचे मूकी निर्जीव भूमि जोने ' अाह जस्सग्गो' कहने मात्रं परवववुं. परठव्या पढी पाढी कुंमी नीचे मूकी, त्रवार ' वोसिरे ́ कही, कुंकी मूल जग्याए मूकी, अचित्त जलवने हाथ धोइ, वस्त्र बदली, स्थापना सन्मुख यवयुं ने खमासमण दइने इरियावही पमिकमवा.
पोसह जीधा पढ़ी जिनमंदिरे दर्शन करवा जरूर जवुं जोइए, न जाय तो आलोयण यावे. तेथी कटास जमणे खने नाखी, उत्तरासंग करी, चरवलो माबी काखमां ने मुहपत्ति हाथमां राखी ने, ईर्षासमिति शोधतां मुख्य जिनमंदिरे जनुं त्यां
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( १२ )
वार निसिही कही ने देरासरना आद्यद्वारमां प्रवेश करावो मूलनायकजीनी सन्मुख जइ दूरथी प्रणाम करीने त्रण प्रदक्षिणा देवी पछी रंगमंरुपमा प्रवेश करी दर्शनस्तुति करीने जो उपाश्रयथी सो डगला उपरांत यावेल होयतो खमा० दइ श्रयावदी पडिकमवा. पछी त्रण खमासमण दइ चैत्यवंदन करवुं पढी जिनमंदिरमांथी नीकलतां त्रणवार
वस्सही कही उपाश्रये आवj. त्यां त्रणवार निसिही कहीने प्रवेश करी इरियावदी पडिकमवा.
ते
पठी जो चोमासुं होय तो मध्यान्हना देव वांद्या गान बीजी वारनो काजो लेवो जोइए तेने माटे एक जणे इरियावदी पडिक्कमीने काजो लेवो, ने शुद्ध करीने योग्य स्थानके परववो. त्यारपठी मध्यान्हना देव वांदवा. (विधि पुर्ववत्) पी जेने चविहार उपवास न होय तेणे पचरकाण पारखं. तेनी विधिया प्रमाणे
"
पचरुखाण पारवानी विधि.
प्रथम खमा० दइ इरियावदी पडिकमवा. याबत्
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(१३) लोगस्स कही, खमा० दश्, श्वा० चैत्यवंदन करूं ? श्वं कही जगचिंतामणीनुं चैत्यवंदन ( जयवीयराय संपूर्ण कहेवा सूधी ) करवु. वीशेष सभ्वाय न करवी. पनी खमा श्वाण सकाय करूं ? श्वं कही एक नवकार गणीने मन्ह जिणाणंनी सजाय कहेवी. पड़ी खमा श्वा० मुहपत्ति पडिलेहुँ ? श्वं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पठी खमा श्वा पञ्चकाण पारूं? यथाशक्ति. खमा० श्ला पञ्चरकाण पारयुं. तहत्ति कही, जमणो हाथ मूठी वालीने चरखला उपर स्थापी, एक नवकर गणीने जे पञ्चकाण करयुं होय ते नाम लश्ने नीचे प्रमाणे पार. ___“जग्गए सूरे नमुकारसहिथं पोरिसिं साढपोरिसिं सूरे जग्गये पुरिमट्ठ मुहिसहिथं पञ्चरकाण कर्यु चनविहार; आंबील, नीवी, एकासणुं कर्यु. तिविहार. पञ्चरकाण फासिवे, पालिश्र, सोहिणं, तिरिक्षं किट्टिकं, श्राराहियं जं च न राहिथं तस्स मिला मि मुक्कडं." (तिविहार उपवासवालाने नीचे प्रमाणे) “ सरे जग्गये उपवास कर्यो तिविहार; पोरिसि
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(१५) साढपोरिसि पुरिमट्ठ मुछिसहियं पच्चरकाण कर्यु पाणहार, पञ्चरकाण फासिरं, पालिअं, सोहिरं, तिरिक्षं, किट्टिों, आराहिअं, जं च न आराहिलं तस्स मिठा मि मुक्कडं." (चनविहार उपासवालाने पच्चरकाण पारवानी बीलकल विधि करवानी नथी. पारनारे बेहो एक नवकार गणवो. इति. ____पाणी पीयूँ होय तो याचेलु अचित्त जल कटासणापर बेसीने पीए ने पीधेलुं पात्र खंबीने मूके. पाणीवाला पात्र उघाडां न राखे. हवे जो आंबिल, नीवी के एकासणुं करवा पोताने घरे जQ होय तो तेणे समिति शोधतां जq. अने घरमा प्रवेश करतां 'जयणामंगल” बोलीने आसन (कटासणुं ) नाखी, बेसीने, स्थापना स्थापी, रियावही पडिकमवा. पली खमा० दश् गमणागमणे आलोववा. पठी काजो लइ पाटलो, थाली विगेरे नाजन तथा मुख प्रमार्जीने यथासंनवे अतिथिसंविनाग फरसीने निश्चल आसने मौनपणे आहार करवो. लीधेल वस्तुमाथी बीलकुल पालुं मूकी शकाय नहीं. * एटना अक्षरोज बोलवा.
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(१५) जेने घरे जवु न होय ते पोसहशालाए पूर्वप्रेरित पुत्रादिकं आणेलो आहार करे. ते प्रथम जग्या प्रमार्जीने कटासणा पर बेसी जाजन, मुख विगेरे प्रमार्जी, स्थापना स्थापीने इरियावही पडिकमे, अने निश्चल आसने मौनपणे आहार करे.
तथा प्रकारना कारण विना स्वादिष्ट मोदक अने लविंगादिक तांबूल ग्रहण न करे. पडी मुख शुद्ध करीने दिवसचरिम तिविहार- पच्चरकाण करे.
त्यार पठी घरे जनार पोसहशालाये श्रावीने अने पोसहशालावाली आहार करयानी जग्याएज अथवा मूल स्थानके इरियावही पडिकमी जगचिंतामणीनु चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करे. - पोसहमां मध्यान्हना देव वांद्या अगाउं पञ्चरकाण पारी शकाय नहीं. - पली बीजी वारनी पडिलेहण त्रीजा पहोर पड़ी मुनिराजें स्थापनाचार्यनी पडिलेहणा करी होय तेनी समद करवी. तेनी विधि या प्रमाणे
* पोसह विना एकास' विगेरे करनारे पण करीने उद्या अगाउ दिवसचरिम तिविहार- पञ्चख्खाण करवू जोइए. + स्थापनाचार्यनी पडिलेहणा को अगाऊ पडिलेहण न थाय.
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(१६) प्रथम खमाण् दश् श्छा बहु पडिपुन्ना पोरिसी ? कही खमा शाप इरियावहियं पडिकमामि कही, शरियावही पडिकमवा पली खमाण श्छा गमणागमणे आलोचं ? श्वं कही गमणागमणे आलोववा. पड़ी खमाण श्छा पडिलेहण करूं ? श्लं. कही खमाण मा प्रसार-पमार्जु ? लं कहीने जपवासवालाए सुन्ति , कटीस'ने चरवलो पडिलेहवा. अनें अनारे कुवारी मतियुं की पांच वाना पडिलेहवा.त्पी रखमा अपराधी भवन् पसाय करी पडिलेहमा- पडिसहावा जी-एम कहीने वडिलनु एक वस्त्र पडिलेहवं. पड़ी खमाण श्ला उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं ? शं कही, मुहपत्ति पडिलेहीने खमाण श्छा सकाय करूं? श्वं कही नवकार गणीने मन्ह जिणाणंनी सजाय उनडक बेसीने कहेवी. पठी खाधुं होय तों वांदणा दश्ने पाणहारनु पञ्चरकाण करे, अनें तिविहार उपवास* आ शख्दनो अर्थ 'घणा भागे पोरिसि पूर्ण थइ ?' एवो छे + जो पाणी वापरवानी जरुर जे होय तो मुठिसहिअंनुं पञ्च ख्खाण करे, अने पडिलेहण करी रह्या पछी मुठी वाली त्रण नवकार गणीने पाणी वापरे. ते पाणहारनुं पचख्खाण पडिकमणा वखतें करे. पण देव वांया पछी पाणी वापरी शकाय नहीं.
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(१७) वाला खमा दश् श्चकारी जगवन् पसाय करी पच्चरकाणनो आदेश देशो जी, एम कही पाणहारनुं पच्चरकाण करे. (चउविहार उपवासवालाने तो पच्चकाण करवानुं नथी. पण प्रनाते तिविहार उपवासन पच्चरकाण लाधु होय ने पाण। न पाधु होय तो आ वखते चनविहार नपवासन पञ्चरकाण करे.) पड़ी खमा श्वा० उपाधि संदिसाहूं.? छे. समा० श्छा उपधि पमिलेहु ? इछ कही प्रथम पमिलेहतां बाकी रहेला वस्त्रोनी... पमिलेरणा करे. तेमां रात्रिपोसह करनार प्रथम कामली पमिलेहे. पमिलेहण थर रहे एटले सर्वे उपधि, ( वस्त्रादि ) लश्ने उना थाय एटले एक जण इरियावही पमिकमी, काजो ल, शुद्ध करी, रियावही पमिकमीने विधियुक्त परत्वे. पली सर्वे देव वांदे. ( विधि पूर्ववत.)
पोसह पारया अगाउ प्रथमना याचेला दंमासण, कुंमी, पाण। विगेरे गृहस्थने पांडां जलावी दे.
पली अवसरे देवसी अथवा पादिकादि प्रतिक्रमण करे. तेमां प्रथम मात्र रियावही पमिकमे, अने पड़ी खमा दश्ने चैत्यवंदन करे. सातलाख, अढार प्रापस्थानकने बदले श्वा० गमणागमणे आलोउं ?
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( १७ )
वं कही ने गमागमणे लोवे. करेमि नंते सघलीमां ' जाव नियमं - ' ने ठेकाणे 'जाव पोसह' कहे, प्रतिक्रमण करी रह्या पछी सामायिक पारवाने बदले चार पहोरना पोसहवाला पोसह पारे तेनी विधि प्रमाणे,
पोसह पारवानी विधि.
मा० दश इरियावदी पक्किमी, चक्कसायर्थी जयवीराय पर्यंत कहीने, खमा० वा० मुहपत्ति प मिलेहुं ? इछं कही मुहपत्ति पमीलेहवी. पढी खमा० वा० पोसह पारुं ? यथाशक्ति खमा० वा० पोसह पारथो तह त्ति कही नवकार गणी चरवला उपर जमणो हाथ स्थापी ने सागरचंदो कहे.
सागरचंदो.
सागरचंदो कामो, चंदवमिंसो सुदंसणो धन्नो ॥ जेसिं पोसपमा, खंमिया जी वियंते वि ॥ १ ॥ धन्ना सलाह णिजा, सुलसा आणंद कामदेवाय ॥ जेसिं पसंसइ जयवं, दढवयं तं महावीरो ॥ २ ॥ पोसह विधिए लीधो, विधिए पार्यो, विधि कर
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( १७ ) तां जे कां विधि थइ होय, ते सवि हुं मन वचन कायाए कर मिठामि मुक्कमं ॥
पढी खमा० वा० मुहपत्ति पडिलेहुं ? इयं कही मुहपत्ति पकिलेहीने खमा० इछा० सामायिक पारुं ? यथाशक्ति. खमा० इछा० सामायिक पार्यु. तहत्ति कही, चरवला उपर हाथ स्थापी नवकार गणीने 'सामाश्यवयजुत्तो ' कहे . पी विधि करतां जे कां विधि थर होय तस्स मिठामि मुक्कडं कहे. इति. हवे जेणें सवारे व पहोरनोज पोसह लीधो होय ते सांजना देव वांद्या पबी कुंडल लीधा न होय तो लइने तथा दंडास ने रात्रीने माटे - चित्त पाणी चुनो नाखेलुं जाची राखीने पढी खमा० दरियावह पक्किमीने खमा० वा० स्थंडिल पडिलेहुं ? छं कही चोवीश मांडला करे ते या प्रमाणे
आ मांडला वडी नीति, लघुनीति विगेरे परठववा योग्य जग्या प्रतिलेखन निमित्ते करवाना बे. तेमां प्रथम संथारा पासेनी जग्याए ब मांडला करवा. कुंडल - रूना पुमडा. ते बे कानमा राखे. जो- गुमावे तो आलोयण आवे.
*
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( २० )
हियासे.
१ श्राघाडे सन्ने उच्चारे पासवणे २ घाडे यासन्ने पासवणे पहिया से. ३ आघाडे मषे उच्चारे पासवणे अहियासे. ४ आघाडे मषे पासवणे पहिया. ५ आघाडे दूरे उच्चारे पासवणे अहियासे. ६. घाडे दूरे पासवणे अहियासे.
बीजा व उपाश्रयना वारणानी मांहेनी तरफना मांडला उपर प्रमाणेज कहेवा. पण अहियासे ने बदले हिया से कहेवुं.
त्रीजा व मांडला उपाश्रयना वारणा बहार नजीक रहीने करवाना तथा चोथा व मांडला उपाश्रयथी सो हाथने आशरे दूर रहीने करवाना ते बार मांडलामा फक्त आघाडे ने बदले अाघाडे शब्द कहेवो. बाकींना शब्दो उपरना ब ब मांडलामां लख्या प्रमाणेज कहेवा *.
ए प्रमाणे २४ मांगला कर्या पढी इरियावदी प
*
आ मांडलावाळी जग्या प्रथमथी जोइ राखवी, अने मांडला स्थापनाजी पासे रहाने बोलती वखत ते ते जग्याए दृष्टीनो उप
योग राखवो.
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(२१) मिकमीने चैत्यवंदनपूर्वक प्रतिक्रमण पूर्ववत् करे.
जेणें सवारे चार पहोरनो पोसह उच्चों ने ते नोज विचार आठ पहोरनो पोसह करवानो थायतो तेणें सांऊनी पमिलेहण करती वखते इरियावही पमिकमी, खमासमण दक्ष, 'गमणागमणे' आलोईने पड़ी रियावही पमिकमवाथी मांमीने ‘बहुवेल करशुं, ए आदेश पर्यंत सवारनो पोसह लेवानी विधि लखी ले ते प्रमाणे सर्व विधि करवी. तेमां ‘सकाय करूं' ने बदले ‘सकायमां बुं' कहेवं, अने नवकार त्रणने बदले एक गणवो. त्यारपठी सांऊनी पमिलेहणमा खमा० दश् ' पमिलेहण करूं ?' ए आदेश मागवानो , त्यांथी सघली विधिपूर्वक पमिलेहण करे, देव वांदे, मामला करे, अने प्रतिक्रमण पूर्ववत् करे. . मात्र रात्रीना चार पहोरनोज पोसह करवो हो य तेणे पमिलेहण, देववंदन विगेरे विधि दिवस बतां करवानी होवाथी वहेला श्रावg जोइए, अने ते दिवशे ओगामा श्रोडो एकासणानो तप करेल होवो जाए. तेणें करवानी विधि आ प्रमाणे
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(२२) प्रथम खमासमण दर रियावही पमिकमीने पमिलेहण ( पमिलेहणनी विधि प्रमाणे) करे. पली खमा० दश् रियावही पमिकमवाथी मांगीने यावत् ‘बहुवेल करशुं' पर्यंत सवारना पोसह लेवानी विधि प्रमाणे विधि करे, अने त्यार परी सांऊनी पमिलेहणमां खमा दई 'पमिलेहण करूं? आदेश मागवानो डे त्यांथी 'उपधि पडिलेडं-' नो आदेश मागवा पर्यंत ते प्रमाणे विधि करे.* (पोसहना पच्चरकाणमां जे फेर , ते प्रथम सूचवेल बे.) ए प्रमाणे विधि करी रह्या पनी देव वांदे, मांडला करे, अने पडिकमणुं करे.
हवे रात्रिपोसहवाला पहोर रात्रिपर्यंत सकाय ध्यान करे. पड़ी खमा० श्ला० बहु पमिपुन्ना पोरिसी ? कही खमा दक्ष रियावही पमिकमे. पडी खमा० श्छा बहु पमिपुन्ना पोरिसी राश्य संथारए गलं ? गझशुं एम कहीने चउकसा- * जो पहेलां पडिलेहण करी होय तो अहीं सूधी बधा आदेश मागे पण पडिलेहण मुहपत्तिनीज करे अने प्रथम पडिलेहण करी न होय तो सांजनी पडिलेहणनी विधिमां लख्या मुजब पडिलेहण करे.
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(१३) य, चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करे. पठी खमाण श्वा० संथाराविधि नणवा मुहपत्ति पडिलेडं ? श्वं कही मुहपत्ति पडिलेहीने 'निसिही निसिही निसिही नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं' आटलो पाठ, नवकार तथा — करेमिजते' ए बधुं त्रणवार कहे. पठी संथारा पोरिसीनो पाठ बोले.
संथारा पोरिसी, अणुजाणह जिठिला अणुजाणह परमगुरु, गुरु गुणरयणेहिं मंडियसरीरा ॥ बहु पडिपुन्ना पोरिसी,
श्य संथारए गमि ॥१॥ अपजाणह संथारं, बाहवहाणेण वामपासेणं ॥ कुक्कुडिपायपसारेण, अंतरंतपमऊए भूमि ॥ ५॥ संकोश्यसंडासा, उबहते य काय पंडिलेहा ॥ दवाइउवयोग, ऊसासनिरंजणा लोए ॥३॥ जश् मे हुआ पमायो, श्मस्स देहस्सिमाश् रयणीए ॥ थाहारमुवहिदेहं, सवं तिविहेण वोसिरियं ॥४॥ चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिझा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं ॥ ५ ॥
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(२४) चत्तारिलोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिझा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा, केवलिपएणत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥ ६॥ चत्तारि सरणं पवजामि, अरिहंते सरणं पवजामि, सिझे सरणं पवजामि, साहू सरणं पवामि, केवलिपणत्तं धम्म सरणं पवजामि ॥ ७॥ पाणाश्वायमलियं, चोरिकं मेहुणं दविणमुद्धं ॥ कोहं माणं मायं, लोनं पिजं तहा दोसं ॥ ७ ॥ कलहं अपुरकाणं, पेसुन्नं र अरश समानत्तं ॥ परपरिवायं माया-मोसं मिबत्तसवं च ॥ ए॥ वोसिरिसु श्मा, मुकमग्गसंसग्ग विग्घभूआश् ॥ मुग्गनिबंधणार, अहारस पावगणा॥ १० ॥ एगोहं नहि मे को, नाहमन्नस्स कस्स ॥ एवं अदीणमणसो, अप्पाणमणुसासश् ॥ ११ ॥ एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ ॥ सेसा मे बाहिरा जावा, सवे संजोगलकणा ॥ १२॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता मुस्कपरंपरा ॥ तम्हा संजोगसंबंध, सवं तिविहेण वोसिरियं ॥१३॥ अरिहंतो मह देवो, जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो ॥ जिणपन्नत्तं तत्तं, श्य सम्मत्तं मए गहियं ॥ १४ ॥
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(२५) आ चौदमी गाथा त्रण वार कहेवी, पढ़ी सात नवकार गणवा. खमिश्र खमाविथ म खमिय, सवह जीव निकाय ॥ सिकह साख बालोयणह, मुषह वर न नाव ॥१५॥ सव्वे जीवा कम्मवस, चनदह राज नमंत ॥ ते मे सव्व खमाविश्रा, मवि तेह खमंत ॥१६॥ जं जं मणेण बर्फ, जं जं वारण नासिकं पावं ॥ जं जं काएण कयं, मिठामि दुक तस्स ॥ १७॥
M
arwa
आ प्रमाणे संथारा पोरिसी कही रह्या पली सफाय ध्यान करे, अने ज्यारे नकापीमित थाय त्यारे मात्रा विगेरेनी बाधा टालीने दिवसे पमिलेहेली जग्याए संथारो करे ते आ रीतें:
प्रथम जमीन पमिलेहीने कामली पाथरे, पादांते कटासणुं पाथरीने उत्तर पटो पाथरे, मुहपत्ति केमे जरावे, चरवलो पमखे मूके अने मातरीयु पहेरीने माबे परखे हाथर्नु उशिकुं करीने सुए.
रात्रीए चालवू पमे तो दमासणवमे पमिलेहतां
चालवू.
* एक पडो ओछाइ.
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( २६ )
पाबली रात्रे जागीने नवकार संजारी, जावना जावी मात्रानी बाधा टाली यावे. पडी इरयावही पमिकमी, कुसुमि कुसुमिmनो काउसग्ग करीने रात्रिप्रतिक्रमण करे.
*
त्यार पी स्थापनाचार्य पडिलेह्या पढी तेमनी सन्मुख पमिलेहण करे तेनी विधि या प्रमाणे
प्रथम इरियावदी पकिमी, खमा० इछा० पछिलेह करूं ? छं कही पूर्वोक्त पांच वाना पमिलेहे. पी खमा० दइ इछाकारी० पहिलेहणा पमिलेहावो जी. कही वकीलनुं एक वस्त्र परिलेहे . पढी खमा० छा० उपधि मुहपत्ति पहिलेहुं ? छं कही मुहपत्ति प मिले. पबी खमा० इछा० उपधि संदिसाहुं ? इवं, खमा० वा० उपधि पकिलेहुं ? छं कही बाकीनां वस्त्र पमिले. पढी एक जण इरियावदी पक्किमी काजो ले, ने काजो शुद्ध करी इरियावही पमिकमीने विधियुक्त परठवे.
त्यार पढी पूर्वोक्त विधियुक्त देव वांदे, अने * प्रभातमां पोसह लीधा पछी राइ पडिकपणुं करवानी विधिमां जे प्रमाणे फेरफार करवानुं लखेलुं छे, ते प्रमाणे मां प
समजवु.
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मकाय करे. पढ़ी दंडासण, कुंडी, पाणी, कुंडल, कामली विगेरे जे वस्तु जाचेली होय ते पाली गृहस्थने जलावे.
पड़ी इरिश्रावही पडिकमी, खमा श्वा मुहपत्ति पडिलेहुं ? त्यांथी पोसह पारवानी विधिमा लख्या प्रमाणे 'सामाश्यवयजुत्तो' कहेवा सूधी विघि करीने पोसह पारे, अने अविधि थयानो मिठा. मि मुक्कम दे. ति.
स्थंमिल जवानी विधि. - पोसहमां कदी स्थंडिल जq पमे तो मातरीयु पहेरी, कालनो वखन होय तो माथे कटासणुं नाखी, कामली ओढी मुहपत्ति केडे राखी, चरवलो काखमां राखी, याची राखेला अचित्त जलनुं मोटुं नानुं लोदादि पात्र लश्ने जाय. त्यां निर्जीव जग्या जोश, अणुजाणह जस्सग्गो' कहीने बाधा टाले. उपती
* प्रथम दिवसना चार पहोरनो पोसह पारवानी विधिमां चससायन चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करवानुं लखेलुं छे ते आठ पोरवालाने करवानुं नथी. * रात्रे स्थंडिल जर्बु पडे तो सो डगलानी अंदरज जवाय.
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(२०) वखत त्रण वार वोसिरे कहे, पनी पोसहशालाए श्रावी, हस्तपाद प्रदालन करी, वस्त्र बदली, स्थापनाजी पासे रियावही पडिकमे, पडी खमा श्वास गमणागमणे आलोचं इंछ कहींने गमणागमणे श्रालोवे. जतां श्रावस्सही ने श्रावतां निसिही कहे.
माथे कामली नाखवा संबंधी काल.
आसाढ शुद १५ थी कारतक शुद १४ सूधी सवारे ने सांजे ब ब घमी. कार्तिक शुद १५ थी फागण शुद १४ सूधी बने टंक चार चार घमी. फा. गण शुद १५ थी आसाढ शुद १४ सूधी बंने वखत बेबे घमी.
अचित्त पाणीना काल. आसाढ शुद १५ थी कार्तिक शुद १४ सूधी चूलाथी उतरया पली त्रण पहोरनो. . कार्तिक शुद १५ थी फागण शुद १४सूधी चार पहोरनो. फागण शुद १५ थी आशाढ शुद १४ सूधी पांच पहोरनो.
आ प्रमाणेना काल उपरांत अचित्त पाणी पाळ
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(ए)
सचित्त नावने पामे जे. तेथी पोसहमां याचेलुं पाणी काल उपरांत रहेवा न देवू. काल पूर्ण थवाना वखत अगाउ अचित्त पाणीनी अंदर कली चुनो नाखवो. जेथी वधारे वखत सूधी अचित्त रहे. पण जो चुनो नाखवो भूली जाय, अने काल व्यतीत थाय तो दश उपवासनी थालोयण आवे, माटे उपयोग राखवो.
परचुरण समजुती. १ आ विधिमां ज्यां ज्यां शरियावही पडिकमवाना लख्या जे त्या त्यां रियावही, तस्स उत्तरी, अन्नब कही एक लोगस्सनो चंदेसु० पर्यंत काउसग्ग करीने प्रगट लोगस्स कहेवा सूधी समजबु. ___५ वखत मोमो थइ जवाना जयथी पोतानी मेले एकला पोसह उच्चरी ले तो फरीने तेमणे गुरुसमक्ष पोसह उच्चरवो तेमां उपधि पडिलेहुं ? पर्यंत बधा
आदेश मागवा. (श्रा विधि रा मुहपत्ति पमिलेगा अगाउं करवी.) ३ पडिलेहण करनारें उन्नडक पगे बेसीने मौन
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(३०) प्रणे पडिलेहण करवी. जीवजंतु बराबर तपासवो, अने उत्तरासंग पहेरवू नहीं.
४ काजो लेनारने एक आयंबिल तपन विशेष फल मले, माटे काजो उपयोगपूर्वक बराबर लेवो. ___५ पोसहमां पोसहना १७ दोष, पांच अतिचार तथा सामायकना ३५ दोष टालवानो खप करवो.
पोसहमां जोश्तां उपगरणो. दिवसना पोसहवालाए नीचे प्रमाणे लेवा. १ मुहपत्ति ५ चरवलो ३ कटासणुं ४ धोतियुं ५ सूत्रनो कंदोरो. ६ उत्तरासंग ७ मा करवा जवानुं वस्त्र, ७ खेलियु, पाणी, दंडासण.
रात्रि पोसहवालाए नीचे प्रमाणे वधारे लेवा.
१ कामली जननी ( शीतकाले २ नष्णकाले १) उत्तरपट्टो सुतराज ३ कुंडल ४ दंमासण. ५ पाणी चुनो नाखेढुं. ६ वडीनीति जवू पडे तो खप श्राववा माटे लोटो.
श्राथी वधारे लेवानी जरुर पडे ते योग्य रीते याची लेवा.
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(३१)
३ मुहपत्तिना ५० बोल. १ सूत्र अर्थ तत्व करी सर्दहुं. ३ समकित मोहिनी, मिश्रमोदिनी, मिथ्यात्व मो
हिनी परिहरु. ३ कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरु. ३ सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आदलं. ३ कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहलं. ३ ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदलं. ३ ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्रविराधना __ परिहरु. ३ मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति, श्रादरं. ३ मनदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरु.
ए पच्चीश बोल मुहपत्ति पमिलेहवाना ले.
नीचेना पच्चिश बोल शरीर पडिलेहवाना बे. ३ हास्य, रति, अरति परिहीं. ५ जय, शोक, दुगंछा परिहरुं. ३ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कपोतलेश्या परिहरु. ३ रसगारव ऋछिगारव, सातागारव परिहरु. ३ मायाशल्य, नियाणशल्य, मिथ्यात्वशल्य परिहरु.
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(३५) ५ क्रोध, मान परिदलं. २ माया, लोज परिहरूं. ३ पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकायनी रक्षा करूं. ३ तेउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकायनी जयणा करूं. आ पच्चास बोल केवी रीते कहेवा तेनी समजण सु. ज्ञ मनुष्य पासेथी मेलववी ने तेना स्थानक जाणवां. ४ पोसहमा १७ दोष पालवा तेनां नाम.
१ पोसहमां व्रती विनाना बीजा श्रावक, श्राणेढुं पाणी न पीवं. २ पोसह निमित्त सरस आहार लेवो नहीं. ३ उत्तरपारणाने दिवसे विविध प्रकारनी थाहार सामग्री मेलववी नही. ४ पोसहमां अथवा पोसह निमित्ते श्रागले दिवसे
देहविभूषा करवी नहीं. ५ पोसह निमित्ते वस्त्र धोवराववा नहीं. ६ पोसह निमित्ते आभूषण घमाववा नहीं, अने पोसहमां आभूषण पहेरवा नहीं। ७ पोसह निमिते वस्त्र रंगाववा नहीं. - पोसहमां शरीर परथी मेल उतारवो नहीं.
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( ३३ )
[ पोसह मां काले शयन कर नहीं. निला लेवी नहीं. ( रात्रीने बीजे प्रहरे संथारा पोरिसी जणावीने निद्धा लेवी. )
१० पोसढमां सारी के नवारी स्त्रीसंबंधी कथा करवी नहीं. ११. पोसहमा १२ पोसहमां सारी या नवारी राजकथा के युद्ध कथा करवी नहीं.
हारने सारो नवारो कहेवो नहीं
१३ पोसहमां देशकथा करवी नहीं.
१४ पोसहमां पूंज्या मिलेह्या विना लघुनीति वडी - नीति परठववी नहीं.
१५. पोसहमां कोइनी निंदा करवी नहीं.
१६ पोसहमां (वगर पोसाती ) माता, पिता, पुत्र, जाइ, स्त्री विगेरे संबंधी साथे वार्तालाप करवो
नहीं.
१७ पोसहमां चोर संबंधी वार्ता करवी नहीं. १० पोसहमां स्त्रीना अंगोपांग निरखीने जोवा नहीं. ढार दोष जरुर टालवा.
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-
'
(३४) पोसह संबंधी पांच अतिचार. १ शय्या संथारानी जग्या सारी रीते दृष्टी करीने जुवे नहीं, कदी जुवे तो जेम तेम जुवे. ते प्रथम अतिचार. १ शय्या संथारानी जग्या रूडी रीते प्रमाणें नहीं अने प्रमानें तो जेम तेम प्रमार्जे. ते बीजो अतिचार. ३ लघुनीति, वडीनीति परग्ववानी भूमि सारी रीते जुवे नहीं, जुवे तो जेम तेम जुवे. ते त्रीजो अतिचार. ४ लघुनीति वडिनीति परग्ववानी भूमि तथा पोसहशालानी भूमि सारी रीतें प्रमार्जे नहीं, प्रमार्जे तो जेमतेम प्रमार्जे ते चोथो अतिचार. . ५ पोसहनी क्रिया विधिपूर्वक संपूर्ण न करे. पारयानी चिंता करे. घरे जश्ने करवाना सावध कार्यो चिंतवे, अने प्रथम लखेला पोसहना १७ दोष टाले नहीं, ते पांचमो अतिचार. श्रा पांच अतिचार टालवा: सामायकना बत्रीश दोष.
(मनना १०) १ शैली समज्या विना सामायक करे.
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( ३५ ) २ सामायक करीने यशकीर्तिनी वांडा राखे. ३ सामायकना पसायी धननी वांबा करे. ४ सामायक करधानो गर्व करे. ५ लोकनिंदाना जयथी सामायक करे.
६ सामायक करीने धनादि पामवानुं नियाएं करें. प्र सामायकना फलनो संदेह करे.
८ कषाययुक्त चित्तें सामायक करे. गुरुनो अथवा स्थापनाचार्यनो विनय न करे. १० जक्तिनावपूर्वक सामायक न करे.
( वचनना १० )
१ सामायकमां कुवचन बोलें. २ उपयोग विना अविचारथं बोले. ३ कोइनी उपर खोटुं आल मूके.
४ सामायकमां शास्त्रनी अपेक्षा विना स्वछंदें बोले. ५ सूत्रपाठना वचनो संक्षेप करीने बोले. ६ सामायकमां कोइ साधें कलह करें. 9. राजकथादिक चार विकथा करे. सामायक्रमां कोश्नी मरकरी करें. सूत्रपाठनो उच्चार अशुद्ध करे. १० उतावली सूमपावनो उच्चार करे,
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(३६,
( कायाना १२) १ सामायकमां पग उपर पग चढावीने बेसे, ऊंचे आसने बेसे.
आसन वारंवार फेरवे. चपलता राखे. ३ मृगनीपरे चारे दिशाए चल विचल दृष्टि फेरवे. ४ सामायकमां कायावमें कांश सावद्य क्रियानी संज्ञा करे. ५ श्रांजला विगेरेने ओविंगण दश्ने बेसे. ६ सामायकमां विनाकारण हाथ पग संकोचे ने पसारे.
सामायकमां आलस मरमे. कम्मर वांकी चुंकी करया करे.
आंगली प्रमुखना टाचका फोमे. ए खस विगेरे वलुरे. खरज खणे. १० सामायकमां हाथनो टेको दश्ने बेसे. गले हाथ दश्ने बेसे. ११ बेग बेग निज लिये. फोकां खाय. १२ टाढ प्रमुखना कारणथी श्राद्म शरीर ढांकीने बेसे.
मनना, वचनना तथा कायाना मलीने आ ३५ दोष सामायकमां तेमज पोलहमा टालवा.
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(३७) ॥ अथ प्रभातनां पच्चरकाण ॥ ॥प्रथम नमुक्कारसहिमुहिसहिनुं ॥ जग्गए सूरे, नमुक्कारसहिरं, मुठिसहिथं पञ्चस्काइ ॥ चनविहं पिाहारं, असणं, पाणं, खाश्मं, साइमं ॥ अन्नद्रणालोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥ १॥
॥ बीजं पोरिसि साढ पौरिसिनुं ॥ - उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिरं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुठिसहिरं, पच्चरका ॥ जग्गए सूरे, चनविहं पिाहारं असणं, पाणं, खाइमं, सामं ॥ अनन्छणालोगेणं, सहस्सागारेणं, पन्चन्नकालेणं, दि. सामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥२॥ ___॥त्रीजुं बियासणा एकासणाचें ॥
उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिरं, पोरिसिं, मुहिसहिरं, पञ्चरकाश् ॥ जग्गए सूरे, चनविहं पि आहारं, असणं, पाणं, खाश्मं, साश्मं ॥ अन्नछणा जोगेणं, सहस्सागारेणं, पन्चन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयपेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिषतियागारेणं ॥ वि.
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(३०) गज़ पच्चरकाश ॥ अन्नन्छणाजोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहलसंसहेणं, उरिकत्तविवेगेणं, पमुच्चमकिएणं, पारिछावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, बियासणं पच्चरका ॥ तिविहं पि आहारं असणं, खाश्मं, साइमं, अन्नबणाजोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, आउंटणपसारेणं, गुरुअपुछाणेणं, पारिछावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अछेण वा; बहुलेण वा, ससिडेण वा, असिछेण वा, वोसिरे ॥ ३ ॥ जो एकासणानुं पच्चरकाण करवू होय तो, बियासणंने ठेकाणे एकासणंनो पाउ केहवो ॥ इति बियासणा एकासणानुं पच्चरकाण समाप्त ॥
__॥चोथं आयंबिलनु पञ्चरकाण ॥
जग्गए सूरे, नमुक्कारसहिरं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुछिसहिथं पच्चरकाश् ॥ उग्गए सूरे चविहं पि श्राहारं, असणं, पाणं, खाश्म, साश्म, अन्नघणालोगेणं, सहसागारेणं, पचन्नकालेणं दिलामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमा
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(३५) हिवत्तियागारेणं ॥ श्रायं बिलं पञ्चरकाश् ॥ अन्नघणाजोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहन्छसंसरणं, छकित्तविवेगेणं, पारिघावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ एगासणं पच्चरका॥तिविहं पि आहारं, असणं, खाश्म, साश्मं, ॥ अन्नछणाजोगेणं, सागारिश्रागारेणं, आउंटणपसारेणं, गुरुअपघाणेणं पारितावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अछेण वा, बहुलेण वा, ससिलेण वा, असिछेण वा, वो सिरे ॥ इति आयंबिलनु पञ्चरकाण ॥ ४॥
॥पांचमुं तिविहारउपवासमुं॥ उग्गए सूरे, अपत्तवं पञ्चकाइ ॥ तिविहं पि श्राहारं असणं, खाश्म, साश्मं ॥ अन्नधणालोगेणं, सहसागारेणं, पारिहावणियागारेणं, महात्तरागारेणं सवसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणहारपोरिसिं, साढपोरिसिं, मुछिसहिअं, पञ्चस्का ॥ अन्नछणानोगेणं, सहसागारेणं, पञ्चन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अछेण वा, बहुलेण वा, स
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(४०) सिडेण वा, असिजेण वा, वोसिरे ॥ इति तिविहार उपवास, पञ्चकाण ॥ ५॥
____ (बहुं चनविहारउपवास,) सूरे जग्गए अपत्त पञ्चकाच॥ चविहं पि थाहारं, असणं, पाणं, खाश्म, साश्मं, अन्नछणाजोगेणं, सहसागारेणं, पारिछावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ इति चविहारउपवास, ॥ ६॥
॥अथ सांफना पच्चरकाण ॥ तिहां प्रथम बीपासणं. एकासणं, आयंबिलं, तिविहार उपवास अने बह जे करे तेणें पाणहारनु पचरकाण करवू. ते वी रीतें:पाणहारदिवसचरिमं पच्चरका ॥ अन्नकणाजोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ इति ॥१॥
॥ बीजुं चविहार- पञ्चरकाण ॥ दिवसचरिमं पञ्चरकाश् ॥ चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाश्मं, साश्मं, ॥ अन्नद्रणा लोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ इति ॥५॥
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(४१) ॥त्रीजुं तिविहार- पञ्चरकाण ॥ दिवसचरिमं पञ्चकाइ ॥ तिविहं पि आहारं, असणं, खाश्म, साश्मं, अन्नबणानागेणं, सहसा गारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमा हिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ इति तिविहार- पच्चरकाण ॥३॥
॥चो) दुविहार- पञ्चकाण ॥ दिवसचरिमं पञ्चरकाश् ॥ दुपिहं पि आहारं, असणं, खाश्मं, अन्नछणानोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ शति ॥४॥ ॥ पांचमुं जे नियम धारे तेने देशावगासियतुं पच्च
___ रकाण करवू तेनो पार कहे ॥ देसावगासिनं उवजोगं परिनोगं पच्चरका॥ अन्नघणाजोगणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥ ति ॥ ५॥
॥ अथ पच्चरकाण पारवानी विधि ॥ प्रथम “रियावहियाए ” पडिकमी, यावत् "जगचिंतामणि-" नुं चैत्यवंदन " जयवीयराय" सूधी करवू ॥ पड़ी “ मन्हजिणाणं-" नी सकाय कही मुहपत्ति पमिलेहवी. पड़ी खमासमण दश्श्छा
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(४२) कारेण संदिसह नगवन् पच्चरकाण पारं. यथाशक्ति ॥ इलामि० श्ला पञ्चरकाण पार्यु. “ तहत्ति" एम कही, जमणो हाथ कटासणां अथवा चरवला उपर थापी, एक “ नवकार” गणी, पञ्चरकाण कयु होय तो तेनुं नाम कहीने पार. ते लखीयें जीयें:
उग्गए सूरे नमुक्कारसहिरं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, गंठिसहिअं, मुछिसहिअं, पञ्चरकाण कर्यु. चउबिहार, आंबिल, नीवी, एकासगुं, बेत्रासणुं कर्यु, तिविहार पच्चरकाण, फासिकं, पालिअं, सोहिरं, तिरिकं, किट्टिकं आराहिलं, जंच न आराहिलं, तस्स मिला मि दुकम् ॥ एम कही एक नवकार गएवो ॥ इति ॥ ७ ॥
॥ अथ पंचतीर्थ थोयो॥ ॥ श्लोक ॥ श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थतिलकं श्रीनालिराजांगजं, वंदे रैवतशैलमोलिमुकुटं श्रीनेमिनाथं तथा ॥ तारंगे अजितं जिनं भूगपुरे श्रीसुव्रतं स्तंनने, श्रीपार्श्व प्रणमामि सत्यनगरे श्रीवर्डमानं त्रिधा ॥१॥ वंदेऽनुत्तरकल्पतल्पभुवने अवेयकव्यरतज्योतिष्कामरमंदरा शिवसतीस्तीर्थकराना.
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(५३) दरात् ॥ जंबूपुष्करधातकीषु रुचके नंदीश्वरे कुंमले, ये चान्येऽपि जिना नमामि सततं तान् कृत्रिमाकृत्रिमान् ॥ ५ ॥ श्रीमहीरजिनस्य पद्महतो निर्गम्यते गौतम, गंगावर्तनमेत्य या प्रबिनिदे मिथ्यात्ववैताढयकम् ॥ उप्तत्तिस्थितिसंहृतित्रिपथगा झानांबुदा वडिगा, सा मे कर्ममलं हरत्व विकलं श्रीछादशांगी नदी॥३॥ शक्रश्चंधर विग्रहाश्च धरणब्रॉजशांत्यं बिका, दिक्पालाः सकपर्दिगोमुखगणैश्चक्रेश्वरी जारती ॥ येऽन्ये झानतपःक्रियावतिविधिश्रीतीर्थयात्रादिषु, श्रीसंघस्य तु ते चतुर्विधसुरास्ते संतु नईकराः ॥ ४॥ इतिश्रीपंचतीर्थस्तुतिः ॥ १॥
॥अथ प्रजाति स्तवन ॥ राग वेरावल ॥ ते दिन क्यारें आवशे, श्री सिकाचल जाशुं ॥ ऋषन जिणंदने पूजवा, सरज कंडमां न्हाशं ॥ ते ॥ १ ॥ समवसरणमां बेसीने, जिनवरनी वाणी ॥ सांजलशुं साचे मनें, परमारथ जाणी ॥ ते ॥२॥ समकित व्रत सूधां धरी, सद गुरुने वंदी ॥ पाप सरव आलोश्ने, निज आतम निंदी ॥ ते ॥३॥ पडिक्कमणां दोय टंकनां, करशुं मन को ॥ विषय कषाय विसारीने, तप करशुं हो ॥ ते ॥ ४॥ वा
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(४४) हलाने वैरी विच्चें, नवि करशुं वेहेरो ॥ परना अवगुण देखीने, नवि करशुं हेरो ॥ ते॥५॥ धरम स्थानके धन वावरी, बकायने हेतें ॥ पंच महाव्रत लेईनें, पालशुं मन प्रीतें ॥ ते ॥६॥ कायानी माया मेलीने, परीषदने सहेशुं ॥ सुख दुःख सघला विसारीने, स. मनावें रहेशुं ॥ ते० ॥ ७॥ अरिहंत देवनें उलखी, गुण तेहना गाशुं ॥ उदय रतन श्म उच्चरे, त्यारे निरमल थाशुं ॥ ते ॥ ७॥
॥ अथ सिकाचल स्तवन ॥ सिझाचल वंदो रे नर नारी, हां रे नरनारी हो नर नारी, सिझाचल वंदो रे नरनारी ॥ नाजिराया मरुदेवानंदन, ऋषनदेव सुखकारी ॥ सि ॥ १॥ पुंडरीक पमुहा मुनिवर सीधा, आत्मतत्व विचारी ॥ सि० ॥ २ ॥ शिवसुख कारण नवदुःख वारण, त्रिभुवन जग हितकारी ॥ सि ॥ ३ ॥ सम कित शुरू करण ए तीरथ, मोह मिथ्यात निवारी ॥ सि० ॥ ४ ॥ ज्ञान उद्योत प्रभु केवल धारी, नक्ति करूं एक तारी ॥ सि० ॥ ५॥ इति ॥
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(४५) ॥अथ श्री दीवालीन स्तवन ॥ ॥ वाल्हाजीनी वाटमी अमें जोतां रे ॥ ए देशी॥
जय जिनवर जग हितकारी रे, करे सेवा सुर अवतारी रे, गौतम पमुहा गणधारी ॥१॥ सनेही वीरजी जयकारी रे॥ ए आंकणी ॥ अंतरंग रिपुने त्रासे रे, तप कोपाटोपें वासे रे, लद्यु केवल नाण उल्लासें ॥ २ ॥ स ॥ कटिलंके वाद वदाय रे, पण जिनसाथें न लढाय रे, तेणे हरिलंबन प्रभु पाय रे ॥३॥ स ॥ सवि सुरवहू थे थे। कारा रे, जलपं. कजनी परें न्यारा रे, तजी तृष्णा जोग विकारा॥४॥ सम् ॥ प्रभुदेशना अमृत धारा रे, जिनधर्म विधे रथकारा रे, जेणे तार्या मेघकुमारा ॥५॥ स०॥गौतमने केवल थाली रे, वर्या स्वातियें शिव वरमाली रे, करे उत्तम लोक दीवाली ॥६॥ स० ॥ अंतरंग अलबी निवारी रे, शुन सजानने उपगारी रे कहे वीर विभु हितकारी ॥ ७॥ स० ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीवीरप्रभुनुं दीवालीनुं स्तवन ॥ मारग देसक मोदनो रे, केवल ज्ञान निधान ॥ जाव दया सागर प्रभु रे, परउपगारी प्रधानो रे॥१॥
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(४६) वीर प्रभु सिद्ध थया ॥ सकल संघ आधारो रे, हवे श्ण जरतमां कोण करशे उपगारो रे, ॥ वी० ॥२॥ नाथ विहूणुं सैन्य ज्युं रे, वीर विहूणो रे, संघ ॥ साधे कोण आधारथी रे, परमानंद अनंगो रे ॥ वीर ॥ ३॥ माता विहूणो बाल ज्यु रे, अरहो परहो अथमाय ॥ वीर विहूणा जीवमा रे, आकुल व्याकुल थाय रे ॥ वीर ॥ ४ ॥ संशयदक वीरनो रे, विरह ते केम खमाय ॥ जे दीठे सुख ऊपजे रे, ते विण केम रहेवायो रे ॥ वीर ॥ ५ ॥ निर्यामक नवसमुनो रे, जवअमवी सबवाह ॥ ते परमेश्वर विण मले रे, केम वाधे उत्साहो रे ॥ वीर ॥६॥ वीरथकां पण श्रुत तणो रे, हतो परम आधार ॥ हवे शहां श्रुत आधार डे रे, अहो जिनमुखा सारो रे ॥ वीर॥७॥त्रण कालना सवि जीवने रे, आगमथी आणंद ॥ सेवो घ्यावो विजना रे, जिनपडिमा सुख कंदो रे ॥ वीर ॥ ७॥ गणधर आचारज मुनि रे, सहुने इणी परें सिझा ॥ जव जव आगम संगथी रे, देवचं पद लीध रे ॥ ए॥ इति ॥
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(४७) अथ चौंद मार्गणानां नाम उत्तरभेदसहित.
. पहेली गतिमार्गणा चार प्रकारे . १ देवगति,श्मनुष्यगति, ३ तिर्यंचगति, ४ नरक गति.
बीजी इंडियमार्गणा पांच प्रकारे ले. १ एकेंजी. २ बेंजी. ३ तेंडी.४ चौरिंजी. ५ पंचेची.
त्रीजी कायमार्गणा ब प्रकारें में. १ पृथिवीकाय. ५ अप्काय. ३ तेजकाय. ४ वायुकाय. ५ वनस्पतिकाय. ६ त्रसकाय.
चोथी योगमार्गणा त्रण प्रकारें बे. १ मनोयोग. २ वचन योग, ३ काय योग.
पांचमी वेदमागेणा त्रण प्रकार जे. १ पुरुष वेद. ५ स्त्री वेद. ३ नपुंसक वेद.
ही कषायमार्गणा चार प्रकारे डे. १ क्रोध. ५ मान. ३ माया. ४ लोभ.
सातमी ज्ञानमार्गणा आठ प्रकारें . १ मतिज्ञान.२ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान. ४ मनःपर्यवज्ञान. ५ केवलज्ञान. ६मतिअज्ञान. ७ श्रुतश्रज्ञान. ७ विभंगज्ञान.
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( ४ )
मी संयममार्गणा सात प्रकारें बे. १ सामायिक चारित्र. २ बेदोपस्थापनीय०३ परिहार विशुद्धि० ४ सूक्ष्मसंपराय चारित्र. ५ यथाख्यात चारित्र. ६ देशविरति चारित्र असंयम अविरति. नवमी दर्शनमार्गणा चार प्रकारें बे.
*
१ चतुर्दर्शन. २ चतुर्दर्शन. ३ अधि दर्शन. ४ केवल दर्शन.
दशमी लेश्यामार्गणा व प्रकारें बे.
१ कृष्ण लेश्या - २ नील लेश्या. ३ कापोत लेश्या. ४ तेजोलेश्या ५ पद्मलेश्या. ६ शुक्ल लेश्या. ग्यारमी भव्यमार्गणा बे प्रकारें बे.
१ भव्य २ अभव्य.
·
arrat सम्यक्त्वमार्गणा व प्रकारें दें.
१ उपशम २ कायोपशम ३ क्षायिक. ४ मिश्र ५ सास्वादन. ६ मिथ्यात्व.
तेरमी सन्नी मार्गणा बे प्रकारें बे. १ सन्नी. २ सन्नी.
महारमार्गणा प्रकारें बे.
१ आहारक, २ अणाहारक.
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( ४८७ ) बत्री अनंत कायनां नाम. १ सर्व कंदनी जाति. २ सूरणकंद. ३ वज्रकंद ४ लीली हलदर ५ लीलुं कुं. ६ लीलो कचुरो. 9
शतावरी वेली.
·
विराली वेली ए कुंच्या रि. १० थोहरिकंद. ११ गलो. १२ लसणकली. १३ वांसना का - रेला १४ गाजर. १५ लूणोसाजी वृक्ष. १६ लोढो पझनी कंद. १७ गिरिकर्णिका एटले सर्व वनस्पतिना नवा जगतां कुंपलपान १० खरसुकंद. १० थेलंद. २० नीलीमोय. २१ लूणवृनी बाल अनंतकाय जाणवी. परंतु एना बीजा अवयव अनंतकाय नहृीं २२ खीलुडा कंद विशेष २३ अमृतवेलि. २४ मूलानी पाड. २५ भूमिफोमा जे वर्षाकालें बत्राकारें उगे ते. २६ विरुहा अंकूर्या धान्य. २७ टंक वहुलशाक ते वनस्पति पहेलुं उग्युं तेहज, बीजूं नहीं. २० सूयरवेली. २० पल्लंक विशेष. ३० कुवली खांबली ३१ श्रलुकंद . ३२ पिंडालुकंद.
बावीश भक्ष्यनां नाम.
१ वडनं । पीपु अभक्ष २ पिंपलनी पीपु. ३ उंबरैना फल. ४ पीपरीनी पेपडी. ५ कटुंबरना फल ६
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( ५० )
·
मधु एमां त्रसजीवनी उप्त ते थाय ७ मद्य एमां तेवाज वर्णना जीव उपजे बे, ८ मांस एमां त्रस जीवनी उप्तत्ति थाय. ए माखण ए महासावद्य बे. १० हिम ए बहु काय मय बे. ११ विष ते सोमल प्रमुख एथी उदरगत जीवोनो विनाश थाय बे. १२ करदो बहुजीवमय बे. १३ सर्वमाटीनी जाति. १४ रात्रि जोजन अभक्ष्य बे. १५ बहु बीज ते पंपोटादिक. १६ बत्री अनंतकाय. १७ बोलानुं प्रथाएं. १० घोलवमा जे काचां गोरसमांहें कर्या होय ते. १७ वेंगण ते रिंगणा. २० जेने उलखीयें नहीं. एवा - जाण्यां फूल फल पान प्रमुख. २१ तुछफल ते कुली वस्तु ति काचां फल महुडां, जांबू प्रमुख. २२ चलित रस थयेली वस्तु ते सडेलुं अन्नादिक जाणवुं
॥ व ॥
( जीवजाती. ) ( श्रायुवर्ष ) ( जीवजाती. ) ( श्रायुवर्ष) १२० क्रौंचययु.
हस्तिप्रायु.
मनुष्यायु.
अश्वत्र्यायु. व्याघ्रप्रायु.
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१२० बगलाआयु.
३२- ४० सर्पश्रायु. ६४ कीडी आयु.
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६०
६०
१०० - १२०
१
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( 43 ) (जीवजाती. ) ( श्रायुवर्ष ) | ( जीवजाती.) (आयुवर्ष )
१०० उंदरायुं
२ - २०
६४
१०- १४
५०
५०
५०
३०
१०००
१०००
२५
ՋԱ
कागश्रायु. गर्दनायु
बाली आयु.
श्वानत्र्यायु. शियालआयु.
हरणयायु. हंसश्रायु. मांजारच्यायु.
सुकायायु.
मायायु.
सारसआयु. घेटायुवर्ष.
१६
१२
२४
२४
१००
ससलाच्या यु. देवी श्रायु.
सूवरत्र्यायु,
वागोलयायुं बपैया आयु.
सिंहखायु.
१२
१३
२० उंटअायु ५० नेंस आयु.
माबलाश्रायु.
६
१६ गायत्र्यायु. ३वींबी श्रायुमास. जूच्यायुमास. कंसारी आयुमास. ३ | चौरिं संमूर्छिम, गर्जज जलचरनुं उत्कृष्टायु पूर्व कोमी वर्षनुं
युमास.
६
२५
अथ श्री जिन भुवनने विषे चोराशी आशातना न करवी, तेनां नाम लखीयें बीयें.
१ बरुखो न नाखवो. २ हिंचोलादि क्रीडान० ३ कलह प्रमुख न करवो. ४ धनुष्कलादि न करवी. ५
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(५१.) पाणीना कोगला न ६ तांबूलादिक न खावां. ७ तांबूल थुकवा नही. G मुखथी गालो न देवी. ए मूत्रविष्ठा न नाखवी. १० शरीर न धोवू. ११ वाल न उतारवा. १२ नख न उतारवा. १३ रुधिर न नाखकुं. १४ सुखमी न खावी. १५ चामडी न नाखवी. १६ पित्त वमन न कर. १७ वमन न करवू. १७ दांत नाखवा अथवा समारवा नही. १ए विश्रामण न करवो. २० गाय प्रमुख न बांधवी. २१ दांतनो मेल न नाखवो. २२ अांखनो मेल न नाखवो. २३ नखनो मेल न नाखवो. २४ गंडस्थलनो मेल न० २५ नाकनो मेल न नाखवो. २६ माथाने मेल न नाखवो. २७ काननो मेल न नाखवो. २७ शरीरनी चाममीनो मेल न नाखवो. ए मित्र साथें मसलत न० ३० विवादार्थे एकग न थq. ३१ नामुं न लखवू ३५ कोई चीज वेचवी नही. ३३ थापण न मूकवी. ३४ मा आसने न बेसवू. ३५ गणां थापवां नही. ३६ कपडा सूकववां नही. ३७ धान्य सूकवां नही. ३० पापम सूकववां नही. ३ए वडीयो करवी नही. ४० राजजया विकें बुपवू नही. ४१
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(५३)
रुदन करवू नही. ४२ विकथा करवी नही. ४३ शस्त्र घडवां नही. ४४ तिर्यंच बांधवा नही. ४५ तापणी करवी नही. ४६ अन्नादिक रांधवू नही. ४७ नाणुं परखवू नही. ४७ निसिही नांगवी नही. ४ए बत्र धरवू नही. ५० खांसडां मूकवां नही. ५१ शस्त्र मूकवां नही. ५२ चामर धरावq नही. ५३ मन एकाग्र करवू. ५४ तैलादिक न चोपडवां. ५५ सचित्त जोग तजवो. ५६ अयोग्य अचेत त्यजवो. ५७ जिन पीठे हाथ जोमवा. ५७ एक साडी उत्तरासण का ५ए मुकुट थारण न करवो. ६० पाघडीनो अविवेक. ६१ तोरादिक न घालवा. ६२ होड न करवी. ६३ गेडी दडे रमवू नही. ६४ जुहार सलाम न करवी. ६५ लांड चेष्टा न करवी. ६६ तुंकार रेकार कहेवो न ६७ धरणे बेसबुं नही. ६० युद्ध करवू नही. ६ए चोटलादि समारवा नही. ७० पलातीयें बेसवू नही ७१ चांखडी पहेरवी नही. ७२ लांबे पगे बेस नही. ७३ पुमपुमी वगाडवी नही. ७४ कादव न करवो. ७५ अंगनी रज उडाववी न ७६ मैथुन सेवq नही. ७७ जुघटुं रमवू नही. जोजन करवू नही. पुए मसयुज करवू नही. ७०
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(५४) वैद्यकर्म करवू नही. ७१ व्यापार करवो नही. ज्य शय्या पाथरवी नही. ७३ आहार राखवो नही. ७४ स्नान करवू नही. __ ए चोराशी आशातना ते जिनपूजादिक कार्यविना शरीर शुश्रूषादिकने अर्थे करे तो आशातना जाणवी. माटे तेनो त्याग करी झारुचि थई श्राशातनारहित थका जिनमंदिरने विषे प्रवर्तवू.
॥ सात नयनां नाम ॥ १ नैगमनय.२ संग्रहनय ३ व्यवहारनय. ४ जुसूत्रनय. ५ शब्दनय. ६ समनिरूढनय. ७ एवंभूत नय.
॥ चार निदेपनां नाम ॥ १ नाम निक्षेप, २ स्थापना निदेप. ३ अव्य निदेप. ४ जाव निदेप.
॥चार कारणनां नाम ॥ १ उपादान कारण. ५ निमित्त कारण, ३ असाधारण कारण. ४ अपेक्षा कारण.
॥आठ मदनां नाम ॥ १ जातिमद. २ कलमद. ३ बलमद ४ रूपमद. ५ श्रूतमद. ६ तपोमद ७ लाजमद. ७ ऐश्वर्यमद,
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(५५) ॥ अष्टमांगलिकनां नाम ॥ १ आरिसो.२ जनासन. ३ वर्कमान ४ श्रीवत्स. ५ मत्स्ययुग्म. ६ प्रधानकुंन. ७ साथीओ. नंद्यावर्त्त.
॥ श्रावकना बार व्रतनां नाम ॥ १ स्थूल प्राणातिपात वि० २ स्थूल मृषावाद विरमण. ३ स्थूल अदत्तादान वि० ४ मैथुन विरमण व्रत ५ परिग्रह परिमाण व्रत. ६ दिक्परिमाण व्रत. ७ नोगोपनोग परिमाण. ७ अनर्थ दंड विरमण व्रत. ए सामायिक व्रत. १० देशावगाशिक व्रत. ११ पौषधोपवास व्रत. १५ अतिथि संविनाग व्रत.
॥चौद गुणगणानां नाम.॥ १ मिथ्याल गुणगणुं. २ सास्वादन गुणगणुं. ३ मिश्र गुणगणुं. ४ अविरति सम्यग्दृष्टि. ५ देशविरति गुणगणुं ६ प्रमत्त गुणगणुं. ७ अप्रमत गुणगणुं. - निवृत्तिबादर गुणगणुं ए अनिवत्ति बादर गुण० १० सूक्ष्मसंपराय गुणगणुं. ११ उपशांतमोह गुणगणुं १२ वीणमोह गुणगणु. १३ सयोगी केवली गुणगणुं. १४ अयोगी केवली गुणगणुं.
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( ५६ ) ॥ संमूर्छिम मनुष्यने उपजवाना चौद स्थानक. ॥ १ वडिनीति मांहे. २ लघुनीति मांहे. ३ श्लेष्म मांहे. ४ नासिकाना मलमांहे. ८ वमनमांहे ६ पित्तमांहे. ७ परुमांहे. रक्तमांहे. ए शुक्रपुद्गल मांहे. १० सामेसुवा वीर्य मांहे. ११ मृतकलेवर मांहे. १२ स्त्री पुरुषने संयोगे १३ नगरनाखालमांहे. १४ सर्वशुचि स्थान मांहे.
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॥ साधुना सत्तावीस गुणनां नाम ॥
५ प्रणातिपात विरमणादिक पांच महाव्रत ६ रात्रि जोजन विरमण व्रत १२ बक्कायना जीवोनी रक्षाकरे बे, ते व गुण. १७ पांच इंडियोनो निग्रह करे, ते पांचगुण. १० लोजनो जय. १५ मा राखे. २० जाव विशुद्धि एटले चित्त निर्मलता. २१ पंडिलेहण प्रमार्जन करवायी विशुद्धि थाय २२ संयमयोगयुक्तता २५ अकुशल मन, वचन छाने कायानुं रुंधj, ए त्रण. २६ शीतादिक वेदननुं सहन कर. 29 मरणांत उपसर्ग सहन करवा
॥ त्रीश अकर्म भूमि क्षेत्रनां नाम ॥ ५ हेमवंत क्षेत्र. ५ उत्तर कुरुक्षेत्र ५ हरिवर्ष
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(५७) क्षेत्र. ५ रम्यक क्षेत्र. देवकुरु क्षेत्र. ५ ऐरण्यवतः पंदरकर्मभूमि देवनां नाम. ५ जरत क्षेत्र. ५ औरवत क्षेत्र. ५ महाविदेह देत्र,
॥ सिद्धना एकत्रीश गुणनां नाम ॥ ____५ पांच संस्थान रहित. ५ पांच वर्ण रहित. ५ बे गंध रहित. ५ पांच रस रहित. ७ आठ फरस रहित. ३ त्रण वेद रहित. १ शरीर रहित. १ संग रहित. १ जन्म रहित. ॥ प्रकारांतरें वली सिझना एकत्रीश गुण कहे जे ॥
५ पांच प्रकारनां कानावरणीय कर्मथी रहित. ए नव प्रकारनां दर्शनावरणीय कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना वेदनीय कर्मथी रहित. ५ बे प्रकारना मोहनीय कर्मथी रहित. ४ चार प्रकारना आयु कमथी रहित. बे प्रकारना नाम कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना गोत्र कर्मथी रहित. ५ पांच प्रकारना अंतराय कर्मथी रहित.
॥सात नयनां नाम ॥ १ हस्तिनो जय. २ सिंहनो नय. ३ सर्पनो नय. ४ अग्निनो नय. ५ समुनादिजलनो नय. ६ राजानो जय. चोरनो जय.
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( 4 ) संसारीजीवने सात मोहोटां सुखकयां बे, तेनां नाम. १ रोगरहित शरीर होय. २ कोणनो देणदार न होय. ३ यात्रादिक विना आजी विकार्थे परदेश न जाय. ४ घरमा स्त्री सुपात्र होय ५ पुत्रपौत्रादिकनुं सुख होय. ७ पंचमहाजनमां प्रतिष्ठा होय. ॥ ब दर्शननां नाम ॥
१ जैनदर्शन. २ मीमांसकदर्शन. ३ बौद्धदर्शन. ४ नैयायिक दर्शन. ५ वैशेषिकदर्शन. ६ सांख्यदर्शन. ॥ सात जयनां नाम ॥
१ इह लोक जय. २ परलोक जय. ३ यादानजय. ४ अकस्मात् जय. ५ वेदना जय. ६ मरण जय 9 अपजश प कीर्तिनो जय.
॥ व भाषानां नाम. ॥
१ संस्कृत. २ प्राकृत. ३ शौरसेनी. ४ मागधी. ५ पैशाचिकी. ६ अपभ्रंशी.
॥ चक्रवर्तिना चौदरत्नमां सात एकेंद्रिय रत्न बे, तेनां नाम. ॥
१ चक्र रत्न. २ बत्र रत्न. ३ चर्म रत्न. ४ दंग रत्न. ५ असि रत्न. ६ मणि रत्न. ७ कांगणी रत्न
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(एए)
॥ सात पंचेंद्रिय रत्ननां नाम ॥
१ सेनापतिरत्न. २ गाथापतिरत्न. ३ सूत्रधाररत्न. ४ पुरोहितरत्न. ५ स्त्रीरत्न. ६ अश्वरत्न. 9 गजरत्न.
चार थोइनो जोडो.
सकल सुरासुर से पाया, नगरी अयोध्या नाम सुहाया ॥ नाभी राया घेर यया ॥ दशेने चारें सुपन देखाया, मरुदेवी मातादे जाया ॥ लंबन ऋखन सुहाया ॥ बप्पन्न दिश कुमरी हजराया, चोसव इन्द्रास मोलाया, मेरुशीखरें न्हवराया || हेम वर - सोहें तनु काया ॥ श्रीकल्याण विमल सुनिसर ध्याया ॥ यदिजिनेसर राया ॥ १ ॥ नमो ॥ विडुम वरणा दोय जिणंदा, दोए शाम दोय ऊजल चंदा, दोए नीला सुख कंदा सोलें जिनवर सुवर्ण वरणा, शिवपुरवासी सवि सुप्रसन्ना ॥ जे पूजें ते धन्या ॥ महा विदेहें जिन विचरंता, वीसे पूरा श्री जगवंता, त्रिभुवन जे अरिहंता ॥ श्री सिद्धाचल नमो शीस ॥ जाव धरीने विश्वा वीस, श्रीकल्याण विमल मुनीश २ ॥ नमो० ॥ सांजल सुधर्म शत्रुंजोमहातमसार ||
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( ६० )
अंग इग्यारनुं अंगमकार ॥ दस पन्ना सार ॥ ब बेद ग्रंथ वली सुविचार, मूल सूत्र बोल्या ते सार, नंदी अनुयोग द्वार ॥ पयिा लिसें आगम नाण, श्री जिन भाख्यो जेहवखाण, शत्रुंजय सुणि देइ कांन, श्री कल्याण विमल मुनीश वखाणे, जे कोइ जविका मनमां जाणें । त्यां घर लखमी आणें ॥ ३ ॥ न० ॥ सोरव देशमां शत्रुंजो सार ॥ महिमा मोटो तु य मंडाण, चकेसरी गोमुख यक्ष प्रमाण || यह निश सेवें सूर्य विमान, पूरो परतो तूं सुपराण, पूरव पुएय प्रमाण || श्री जिन शासन विघन निवारे ॥ - दिनाथजीनी सेवा सारें, सेवक पार उतारें ॥ श्री गुरु प्रमोद मणि सुपसाया, तस शीस गुरु प्रणमुं सुपसाया, श्रीकल्याणं विमल सुख पाया ॥ ४ ॥ नमो० ॥ इति ॥ ॥ गीरनुं स्तवन ॥ चंदराउलानी देशी ॥
द्वारिका नयरी समोसरथा रे ॥ बाविसमो जिनचंद ॥ वे कर जोमी जावशुं रे || पूढे प्रश्न नरिंद ॥ टक || पूढे प्रश्न नरिंद विवेकें ॥ स्वामी अग्यारश मानानेके || हतो कारण मुऊ जाखो | महि मा तिथीमो पथारथ वाखो ॥ १ ॥ जी जियंब. जी
॥
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(६१) जी रे॥ महिमा सुणवा तास नविक मन ऊलशे रे॥ अग्यारश दिन सार सदा हियडे वसे रे ॥ ए आंकणी ॥ ॥ नेम कहे केशव सुणो रे ॥ परव वपुंडे तेण ॥ कल्याणक जिननां कह्यां रे ॥ दोढसो एणे दिन जेण ॥ ॥ दोढसो ऋण दिन सूत्र प्रसिद्धा॥ कल्याणक दश खेत्रना लीधां ॥ अतीत अनागत ने वर्तमान ॥ सर्व मली दोढसो तस मान ॥ ॥जी जिणंद जी जी रे ॥ कल्पवृक्ष तरुमा वडो रे ॥ देव मांही अरिहंत ॥ चक्रवर्ती नृपमां वमो रे ॥ तिथीमां तेम ए हुंत ॥ ॥ तिथीमां तेम ए हुंत वमो रे ॥ नेद कर्म सुनटनो घेरो ॥ मौन आराध्युं शिवपद आपे ॥ संकट वेल तणां मूल कापे ॥३॥जी॥ अहोरतो पोसह करी रे ॥ मान तपें उपवास अगीभार वरस श्राराधीये रे ॥ वली अग्यारे मास ॥
० ॥ वली अग्यारह मास जे साधे ॥ मनवचकायानी शुळं आराधे ॥ लव नवे ते नर सुखीया थाशे ॥ सुव्रत शेव परे गवराशे ॥ ४ ॥ जी० ॥ कृष्ण कहे सुव्रत किश्यो रे ॥ केम पाम्यो सुखशात ॥ नेम को केशव सुणो रे ॥ सुबतना अवदात ॥ ३० ॥
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(६५) सुव्रतना अवदात वखाणुं ॥ धातकी खेमे विजयपुर जाणुं ॥ पुहवीपाल तिहां राज विराजे ॥ चंद्रावती राणी तस बजे ॥ ५ ॥ जी० ॥ वास वसे व्यवहारी रे ॥ सुर नामें तिहां एक ॥ सदगुरु मुखें एक दिन ग्रही रे॥ अगीआरश सुविवेक ॥ ॥ श्रगीपारश सुविवेकें लीधी ॥ रूडी जमणा विधी की. धी॥ पेटशूलथी मरण लहीने ॥ पोहतो अगिारमे स्वर्ग वहीने ॥६॥जी॥ एकवीस सागर तणो रे॥पाली निरुपम आय ॥ उपन्यो तिहां ते कई रे॥ सुणजो यादवराय ॥०॥ सुणजो यादवराय एक चित्तें ॥ शौरीपुर वसे शेठ समृझिदत्ते ॥ प्रीतिमती तस धरणीने पेटे ॥ पुत्र पणे उपन्यो पुण्य टे॥७॥ जी० ॥ जन्मसमे प्रकट हुई रे ॥ भूमीथी सबल निधान ॥ उचित जाणी तस थापी रे ॥ सुव्रत नाम प्रधान ॥ ॥ सुव्रत नाम उव्यो माय ताये ॥ वाध्यो कुमर कलानिधि थाये ॥ कन्या अग्यार वरयो सम जोडी ॥ अग्यार हुए वर सोवन कोडी ॥ ७ ॥ जी० ॥ विलसे सुख संसारनां रे ॥ दोगुंदक सुर ते. म ॥ अन्यदिवस सद्गुरु मुखें रे ॥ वेशना तेणे सुणी
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(६३) एम ॥ ॥ ॥ देशना ते सुणी पर्व महातम ॥ बीज प्रमुख तिथीनी अतिउत्तम ॥ सांजलीने ईहापोह करतां ॥ जातिस्मरण लघु गुणवंतां ॥ ए॥जी॥ कर जोमी सुव्रत जणे रे ॥ वरस दिवसमांही सार ॥ दिवस एक मुऊ दाखिए रे ॥ जेहथी होय नवपार ॥ ॥ जेहथी होय जव पार ते दाखो ॥ गुरु कहे मौन एकादशी राखो ॥ तेह तिथी करी विधीशुं आराधे ॥ मागशीर सुदी एकादशी साधे ॥ १० ॥ जी० ॥ शेठने सुखियो देखीने रे, जिन कहे ए धर्म सार ॥ प्रेमसहित आराधतां रे, कांतिविजय जयकार ॥त्र॥ कांतिविजय जयकार सदा ॥ नित नित संपदा होश सवार ॥ एह तिथी सफलतणे मन ना॥ पेहली ढाल थई सुखदाई॥११॥जी॥ति॥
॥ ढाल ॥ बीजी एकवीसानी देशी ॥ एक दिवसे रे शेठ सुव्रत पोसह धरे ॥ सह कुटुंबे रे रयणी समे काउसग करे ॥ तव श्राव्यो रे चोर लेवा धन आंगणे ॥ कशी बांधे रे धनना गाउडा ततदणे ॥ त्रूटक ॥ ततखिण बांधी अव्य बहो शिर उपाडी संचरे ॥ तव देव शासन तीहां
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( ६४ )
थंना चित्त चिंता अति करे || दीवा प्रजाते कोटवालें बांधी सोंप्या रायने ॥ वध हूकम दीयो रायें तब तीहां शेव याव्या धायने ॥ १ ॥ नृप आगल रे शेव मूकी नेटणं ॥ बोमाव्या रे चोर सहुनुं बंधणुं ॥ जग व्याप्यो रे महिमा श्री जिनधर्मनो ॥ केश बांडे रे मिथ्यात मारग जर्मनो ॥ ० ॥ मिथ्यात्व मारग तजीय पुरीजन जैनधर्म अंगे करे ॥ एकदिवस धगधग करत उभट अगन लागी तेणे पुरे ॥ बले ते मंदिर हाट सुंदर लोक नाग धसमसी ॥ सह कुटुंब पोषध सहित तेथे दिन शेठ बेवा समरसी ॥ २ ॥ जन बोले रे शेठ सलूणा सांजलो ॥ हठ न करो रे नासे अग्नीमां कां बलो ॥ शेठ चिंते रे ए परीषद ए सहशुं सही ॥ व्रत खंडण रे ए अवसर करशुं नहीं ॥ ० ॥ नहीं जुगतुं मुकने व्रत विलोपन रह्यो एम दृढता ग्रही ॥ पुर बल्युं सवलुं शेठनुं घर हाट ते उगरथा सही ॥ पुर लोक चरिज देखी सबलो प्रति प्रशंसे दृढपणुं ॥ हवे शेव संग्रह करे रूमो उजमणुं करवा त शुं ॥ ३ ॥ मुगताफल रे प्राणीकने हीरला ॥ पिरो
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(६५) जा रे वीथुम गोलक अति जला ॥ स्वर्णादिक रे सप्तधातु मेरुली ॥ खीरोदक रे वीथुम गोलक अंबर वली ॥ ॥ ॥ वलीतेधान ने पकवान बहुविध फूल फल मन उजले ॥ अग्यार संख्या एक एकनी ग्वे श्रीजिन आगले ॥ जिन नगती मांमे फुरितखंडे लान लहे नर नवतणो ॥ महिमा वधारे सुविधि धारे तपशुं धारे आपणो ॥ ४ ॥ सात खेत्रे रे रचे धनमन उखसी ॥ संघपूजा रे साहमी जगती करे हसी ॥ दे मुनीने रे ज्ञानोपगरण शुजमती ॥ अगीआरसे रे उजवी तेणे सुव्रतें ॥ ० ॥ तेणे सुव्रतें एक दीवस वंद्या सूरीजयशेखर गुरु ॥ सुणी धर्म अनुमती मागी सुतनी संजम सुखकरु ॥ अग्यार तरुणी ग्रहीय संजम तप तपी अति नीरमळु ॥ लहि नाण केवल मुगती पोहता लह्यां सुख धन उजळु ।। ॥ ५ ॥ दोय सो बह रे एक सो अहम सार रे ॥ खटमासी रे एक चोमासी चार रे ॥ इत्यादिक रे सुव्रत मुनिवर तप करे ॥ अग्यारश रे तिथी सेवे मुनी मन खरे ॥ ॥ ॥ मन खरे पाले शुरू संजम एक दिन राखी तेणे ॥ थर उदर पीडा तेणे दिवसे अचेत सुव्रत व्रतपणे ॥ एक देव वैरी पूर्वनवनो
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( ६६ )
चलावा श्राव्य तिहां ॥ मुनिराय सुव्रत तो अंगे वेदना कीधी जीहां ॥ ७ ॥ समताधर रे निश्चल मेरु परें रह्यो । सुर परीषद रे थीर यइ निश्चल सह्यो । न वीलोपे रे मौन सुव्रत मुनी राजी ॥ उषधपण रे सुर दाख्यो पण नव की ॥ ० ॥ नवी कीर्ड उषध रोग देतें सुरति कोपें चढ्यो || पाटु प्रहारे यो त्यारे मिथ्यात्व मति पापें मढ्यो । कृषि क्षपक श्रेणी चढीयो केवल नाणं लही मुगती गयो ॥ ए ढाल बीजी कांती जगतां सकल सुखमंगल थयो ॥ ८ ॥ ॥ ढाल ॥ त्रीजी ॥
सीता हो प्रिया सीतारा परजात ॥ सीता कहे सुण सारथीजी ॥ ए देशी ॥ जाखी हो जिन जाखी नेमि जिद || एणी परे हो जिन एणी परे सुव्रतनी कथा जी ॥ सर्द हो जिन सर्दहे कृष्ण नरिंद ॥ बेद नहीं जब बेदन जवजयनी वृथा जी ॥ १ ॥ प खदा हो जिन परखदा लोक तीवरे ॥ जावें हो तीहां जावे अग्यारश उचरेजी ॥ तेहथी हो एम तेहथी जवीक पार ॥ सहेजे जव सायर तरे जी ॥ २ ॥ तारक हो जिन तारक जवथी तार ॥ मुकने हो प्रभु
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( ६७ ) मुऊने जवहित करी जी ॥ साची हो प्रभु साची चित्त अवधार ॥ कीधी हो मे किधी ताहरी चाकरी जी ॥ ३ ॥ तरशुं हो तप साध ॥ तुमची हो प्रभु तुमची तीहां मोटमकीधी जी ॥ देश हो जिन देश तुही समाधी ॥ एवडी हो जिन एवडी गाढिम काइ कीसी जी ॥ ४ ॥ बेहडो हो तुम बेहको साचो मे आज ॥ मोटी हो प्रभु मोटी में खाइया करी जी ॥ दीधां हो वे दीघां वेण माहराज ॥ बुटीश हो म बुटीश केम वेण दुःख ह रे जी ॥ ५ ॥ जवजव हो जिन जवोजवो सरणुं तुऊ ॥ हो जो हो जिन हो जो कहुं के तुं वली जी ॥ देजो हो जिन देजो सेवा मुऊ ॥ रंगें हो प्रभु रंगें प्रणमुं लली लली जी ॥ ६ ॥ त्रीजी हो प्रभु त्रीजी पूरी ढाल ॥ प्रेमें हो प्रभु प्रेमें कांतिविजय कही जी ॥ नमतां हो जिन नमतां नेम दयाल ॥ मंगल हो घर मंगल माला महमहे जी ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ कलश ॥
एम सयल सुखकर ॥ डुरित दुःखहर ॥ जविक
सारण जब जल धरु ॥ जव ताप वारक ॥ जगत
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( ६० ) तारक ॥ जयो जगपती जग गुरु || सत्तरसे उगणोतरे ॥ रही मनोइ चोमासुं ए ॥ सुद्ध मास मागशीर ॥ तथा अग्यारशे रचो गुण सुविलासे ए ॥ थइ थइ मंगल कोड जवनां ॥ पाप रज पुरे हरे ॥ जे वाद
कीर्त्ति थापे ॥ सुजस दसो दस विस्तरे || श्री तप ग नायक विजय प्रभु गुरु ॥ सीस प्रेम विजय तो कहे कांति सुतां ॥ जविक जलतां ॥ पामीए मंगल घणो ॥ १ ॥ इति ॥
श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्तवन.
शिरपुर नगरमां शोजतां रे अंतरिक्ष प्रभु पास, दक्षिण देश वऱ्हाडमां रे बिचमें लियो तुमें वास हो जिनजी ॥ १ ॥ जक्ति हृदयमां धारे जोरे अंतर वैरिने वार जो रे तारजो दीन दयाल || कडी ॥ पहाम पर्वत उलंघिया रे काडी जंगी ति क्रूर, तुम दरशन करवा जणी रे व्यो हुं इतनी दूर हो० ॥ २ ॥ वामानंदन वंदिये रे, अश्वसेन कुलचंद्र, सप्त फणें करि शोजता रे, सेवे सुर नर इंद्र हो जिनजी ॥३॥ श्यामवरण सोहामणो रे अद्भुत बिंब उदार, तरण तारण जिनेश्वरु रे, आवा गमन निवार हो जिनजी
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(६ए.) ॥४॥धरणीथी ऊंचा वसो रे नयणे निरख्या सोप्रमाण, बिरुद बमो ने राजनो रे, साहिब चतुर सुजाण हो जिनजी ॥ ५ ॥ संवत् उगणिस तिया समे रे माध वदि सुखकार, तिथि दशमी यात्रा करी रे, आनंद हरख अपार हो जिनजी ॥ ६ ॥ प्रभु नेट्या घणा नावसु रे, साथे सबल परिवार, मोहन मुनि कहे माहरी रे, कीजे तुज प्रतिपाल हो जिनजी ॥ ७॥ इति ॥
पजुसण स्नवन. वरश दिवशमा अषाढ चोमासुं ॥ तेमांने वली भादरवो मास ॥ आठ दिवस अधिकार. परब पजुशण करवा उलास ॥ अहा धरनो ॥ करो उपवाश ॥ पोशो लीओ गुरु पास ॥ वमा कलपनो बकरीने ॥ तेह तणो ॥ वखाण ॥ सुणीने ॥ चनदशपण वांचीने ॥ पडवेने दिन जनम चाय ॥ ओबव मोबव मंगल गवाय ॥ श्री विरजीणेशर राय ॥१॥
बीज दिने दीक्षा अधीकार ॥ सांऊ समे नीरवाण वंचाय ॥ वीरतणो ॥ परीवार तीज तणे दिन पार्श्व विख्यात ॥ वली ॥ नेमीशरनो ॥ अवदात ॥
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________________ (70) पली नव भवनी वात // चोवीश जिन अंतर तेवीश॥ आदि जिनेशर श्री जगदीश // तास वखाण सुणीश। धवल // मंगल॥गीत गहुलीकरीए // वली परभावना जित अनुशरीयें // अहम तपज वरीए // 2 // श्राप दिवश लगे अमर पलावो॥ तेह तणो पडहो वजडावो // ध्यान धरम मने धावो // सवत्सरी॥ दीन सार कश्ए // संघ चतुर विध जेलो थए // बारशे सुत्र शुणीने // थीरा वलीने सामा चारी // पटा वली परमाद नीवारी // सांभलजो नर नारी // आगम सुत्र ते पणालीश॥कल्प सूत्रसुं प्रीत धरीश. शास्त्र सरवे पणमीश // 3 // सतर भेद जिन पूजा रचावो // नाटक हेला खेल मचावो // विधिशुं स्नात्र भणावो // आडंबरशुं देहरे जए // संवत्सरी // पडकमणुं करीए // संघशअल खामीजेपारणे सामीवछल कीजे // जथाशक्ति दानअदिजे // पुण्य भंडार भरीजे // श्री विजय रतन सूरी गणधार // जशवंतसागर गुरुशु उधार // जि नेन्ज सागर जयकार // 4 // इति // / संपूर्ण. . .. . For Personal and Private Use Only Jain Educationa International