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________________ (६ए.) ॥४॥धरणीथी ऊंचा वसो रे नयणे निरख्या सोप्रमाण, बिरुद बमो ने राजनो रे, साहिब चतुर सुजाण हो जिनजी ॥ ५ ॥ संवत् उगणिस तिया समे रे माध वदि सुखकार, तिथि दशमी यात्रा करी रे, आनंद हरख अपार हो जिनजी ॥ ६ ॥ प्रभु नेट्या घणा नावसु रे, साथे सबल परिवार, मोहन मुनि कहे माहरी रे, कीजे तुज प्रतिपाल हो जिनजी ॥ ७॥ इति ॥ पजुसण स्नवन. वरश दिवशमा अषाढ चोमासुं ॥ तेमांने वली भादरवो मास ॥ आठ दिवस अधिकार. परब पजुशण करवा उलास ॥ अहा धरनो ॥ करो उपवाश ॥ पोशो लीओ गुरु पास ॥ वमा कलपनो बकरीने ॥ तेह तणो ॥ वखाण ॥ सुणीने ॥ चनदशपण वांचीने ॥ पडवेने दिन जनम चाय ॥ ओबव मोबव मंगल गवाय ॥ श्री विरजीणेशर राय ॥१॥ बीज दिने दीक्षा अधीकार ॥ सांऊ समे नीरवाण वंचाय ॥ वीरतणो ॥ परीवार तीज तणे दिन पार्श्व विख्यात ॥ वली ॥ नेमीशरनो ॥ अवदात ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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