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________________ ( ६४ ) थंना चित्त चिंता अति करे || दीवा प्रजाते कोटवालें बांधी सोंप्या रायने ॥ वध हूकम दीयो रायें तब तीहां शेव याव्या धायने ॥ १ ॥ नृप आगल रे शेव मूकी नेटणं ॥ बोमाव्या रे चोर सहुनुं बंधणुं ॥ जग व्याप्यो रे महिमा श्री जिनधर्मनो ॥ केश बांडे रे मिथ्यात मारग जर्मनो ॥ ० ॥ मिथ्यात्व मारग तजीय पुरीजन जैनधर्म अंगे करे ॥ एकदिवस धगधग करत उभट अगन लागी तेणे पुरे ॥ बले ते मंदिर हाट सुंदर लोक नाग धसमसी ॥ सह कुटुंब पोषध सहित तेथे दिन शेठ बेवा समरसी ॥ २ ॥ जन बोले रे शेठ सलूणा सांजलो ॥ हठ न करो रे नासे अग्नीमां कां बलो ॥ शेठ चिंते रे ए परीषद ए सहशुं सही ॥ व्रत खंडण रे ए अवसर करशुं नहीं ॥ ० ॥ नहीं जुगतुं मुकने व्रत विलोपन रह्यो एम दृढता ग्रही ॥ पुर बल्युं सवलुं शेठनुं घर हाट ते उगरथा सही ॥ पुर लोक चरिज देखी सबलो प्रति प्रशंसे दृढपणुं ॥ हवे शेव संग्रह करे रूमो उजमणुं करवा त शुं ॥ ३ ॥ मुगताफल रे प्राणीकने हीरला ॥ पिरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005385
Book TitlePaushadh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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