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(६३) एम ॥ ॥ ॥ देशना ते सुणी पर्व महातम ॥ बीज प्रमुख तिथीनी अतिउत्तम ॥ सांजलीने ईहापोह करतां ॥ जातिस्मरण लघु गुणवंतां ॥ ए॥जी॥ कर जोमी सुव्रत जणे रे ॥ वरस दिवसमांही सार ॥ दिवस एक मुऊ दाखिए रे ॥ जेहथी होय नवपार ॥ ॥ जेहथी होय जव पार ते दाखो ॥ गुरु कहे मौन एकादशी राखो ॥ तेह तिथी करी विधीशुं आराधे ॥ मागशीर सुदी एकादशी साधे ॥ १० ॥ जी० ॥ शेठने सुखियो देखीने रे, जिन कहे ए धर्म सार ॥ प्रेमसहित आराधतां रे, कांतिविजय जयकार ॥त्र॥ कांतिविजय जयकार सदा ॥ नित नित संपदा होश सवार ॥ एह तिथी सफलतणे मन ना॥ पेहली ढाल थई सुखदाई॥११॥जी॥ति॥
॥ ढाल ॥ बीजी एकवीसानी देशी ॥ एक दिवसे रे शेठ सुव्रत पोसह धरे ॥ सह कुटुंबे रे रयणी समे काउसग करे ॥ तव श्राव्यो रे चोर लेवा धन आंगणे ॥ कशी बांधे रे धनना गाउडा ततदणे ॥ त्रूटक ॥ ततखिण बांधी अव्य बहो शिर उपाडी संचरे ॥ तव देव शासन तीहां
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